✍✍✍स्वरचित ✍✍✍
कितना सुंदर पावन तन
जाग सबेरे कर भजन ।
अंत समय आयेगा काम
तू नहीं जायेगा यमग्राम।।1।।
हर वक्त कर नाम सुमिरण
इसी के लिए मिला नरतन
माया की बिषलहरी में डूब ना जाना
चौरासी का चक्कर पड़ेगा लगाना ।।2।।
मानस योग से अंधकार मिटेगा
थोड़ा सुख का अनुभूति होगा
जिंदगी में यही से सबेरा होगा
तब सदगुरु द्वार रास्ता लखेगा ।।3।।
यह संसार हैं बिषलहरी का धाम
जो नहीं संभला जायेगा यमग्राम
छोड़ चलो पाप पुण्य का धाम
त्रिकुटी महल बैठे करो ध्यान ।।4।।
पंचपाप षट विकार का करो त्याग
तब होगा प्रभु परमेश्वर से अनुराग
धीरे-धीरे करो नित ध्यानाभ्यास
एक दिन मिलेगा ज्योति प्रकाश ।।5।।
त्रिकुटी महल बैठे करो ध्यान
सावधान हो करो निज काम
जीते जी ही पायेगा निर्वाण
तब होगा जीवन का कल्याण ।।6।।
तरुण करो,उम्र का छोड़ो विचार
पता नहीं कब जायेगा स्वर्गसिधार
सुमिरण भजन का बना लो संस्कार
यही एक रास्ता है मुक्ति का द्वार ।।7।।
✍✍✍✍तरुण यादव रघुनियां ✍✍✍✍
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