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सोमवार, 11 मई 2020

अंदर से हूं कंगाल




नमस्कार मित्रों 

आईये आज आपको  स्वरचित रचनाएं प्रकाशित कर रहा हूँ ।पढिए 

और अपने अंतर्मन से पूछिए 

सब उत्तर इस रचना में हैं ।


✍✍✍स्वरचित ✍✍✍
अपने को समझता था बेमिसाल
अंदर झांक देखा तो निकला कंगाल
बहुत किया करते ज्ञान की बात
कभी नही समझा अपना जज्बात ।।1।।


दुनिया को हमेशा आइना दिखाया
अपने अंदर कभी झांक न पाया।।
अपने में कहता करता हूँ कमाल
अंदर झांका  तो निकला कंगाल ।।2।।

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हर बात में लगाता रहता जोर
मन ही मन कहता हूँ बेजोर
आज दिल ने कहा मन को खंगाल
अंतर में झांका  तो निकला कंगाल।।3।।


अपने मन को कभी रोक न पाया
शहंशाह हूँ मन को खूब समझाया
दुनिया में खूब बजवाया अपना ताल
जब अंदर झांका तो निकला कंगाल।।4।।


दुनिया में खूब पाप कमाया
चारो ओर खूब नाच लगाया
जब अंत में मिला नहीं ताल
अंदर झांक कर देखा तो निकला कंगाल ।।5।।

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तरुण थोड़ा-सा जिंदगी में बोराया
क्यों नहीं दुनिया में नजर दौराया
अंत समय कोई काम नहीं आता 
चाहे कोई कितना धन  कमाता ।।6।।
दुनियामें खूब बजाया गाल
अंदर झांका तो निकला कंगाल ।।...........


✍✍✍तरुण यादव रघुनियां ✍✍✍

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