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शनिवार, 6 जनवरी 2018

मैं हूं वृक्ष

मैं हूं वृक्ष
सदा सहता हूं दुख
मेरे दिल में है दया
देता हूं सबको छाया
अपने पत्तों को रखता हूं हरा-भरा
इसलिए संसार लगता है सुनहरा
प्राण वायु करता हूं दान
फिर भी नर ना करता मान
हमसे ही है जीवन सार
नर काटता जा रहा हमको यार
अब हम जाऊं किधर
सब जगह काट रहा हमारा धर
मेरा हो गया जीना दूभर
सहायता मांग रहा हूं नर
हम बात करता हूं यारी की
प्रहार न करो कुल्हाड़ी की
तरुण एक है तुमसे आस
बचा लो मेरा जीवन श्वास

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