राजनीति पर नीति
रस्सी आगे कसा कशी
1आए दूसरा जाए
जनता मुंह का रोटी खाए
आए तो गाल बजाई
जाए तो मुंह लटकाए
यही है राजनीति का खेल
जिस में रहता सदा मेल
पर्दा पीछे रचता खेल
जनता सामने दिखता बेमेल
अपना-अपना रास रचाए
भोले जनता का वोट ऐंठ लाये
सत्ता आए तो बाघ
बाकी को समझो सियार
सत्ता पर हो जाए होशियार
घर बार से होने लगता प्यार
सत्ता को समझता होलसेल
यही है राजनीति का खेल
जनमत का इधर-उधर कर्ता सेल
ऐसा चलता आ रहा खेल
राज में कोई नीति नहीं
जन का नीति में उपस्थिति नहीं
यही है राजनीति का खेल
जन बन रहा नटसेल
जनमत में राजनीति नहीं
ऊपर बात को समझता नहीं
यही है राजनीति का खेल
गुरुवार, 11 जनवरी 2018
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