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गुरुवार, 11 जनवरी 2018

प्रकृति देवी

प्रकृति देवी राजकुमारी
पढ़ने रहती चीता साड़ी
उसको लगती हर  प्राणी प्यारी
सबको दे अब अवसर बाड़ी बाड़ी
समय-समय मौसम बदलती
हर जीवो के कष्टों को समझती
अंधे बहरे लंगड़े ऐसे चाल चलती
उनके जिस्मों से बड़ा बराबर खिलवाड़ करती
जिधर जिस्मों पर आघात होती
आंधी भूकंप तथा ज्वालामुखी फटती
काली साइ जैसी छाई रहती
अंधे की आंख फोड़ती बहरे की कान भर्ती लंगड़े की टांग तोड़ती
इस प्रकार वह मंडराती रहती
उस की ऐसी एसी साया होती
उससे कोई नहीं बचती
उसकी हर अरमान निराली
किसान वृक्ष ज्यादा प्यारी
किसान उसकी सेवा करती
वृक्ष सांसो को भर्ती
जिससे सदा चलती रहती

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