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सोमवार, 28 जनवरी 2019

परिवा प्रेम विचार

परिवा प्रेम विचार
सो जावे गुरू द्वार
दुजा माया मोह दे छोड़
सो पावे निज गुरू की ठोर
तीज मह त्रिगुण दे त्याग
सो पावे हरि आनंद अपार
चौथ बुद्धि चित मन अहंकार
हो पार सुख पावे अपार
पांचई रूप रस गंध स्पर्श अरू शब्द
छोड़ छाड़ि के कटे आवागमन फंद
छठि षड बरग ले जीत
रामकृपा बिन होत पराजित
सातवाँ सप्त धातु की देह
तेहि के परोपकार की ठेह
आठइ आठ प्रकृति पार राम
बिनु त्याग न पावें निज धाम
नवमी नवद्रार पर करे वास
सो नर जावे जम के पास
दसइ दसहु कर संजम
बिन त्याग न पावें भवभंजन
एकादशी जो करे मन वश
उनकर आवागमन करे फट
द्वादशी ज्ञान दे दान
तीन लोक में हो उनका नाम
तेरसि तीन अवस्था दे त्याग
सो नर जावे हरिद्वार
चौदसि चौदह भूवन ईशवास
द्वैत बुद्धि त्याग जावे हरि पास
पूनो विषय से रहे विरक्त
'तरुण' ईश्वर नजर आवे ठसमठस।।        

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