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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

न्याय के देवता ही न्याय मांग रहा

न्याय के देवता ही न्याय मांग रहा
भ्रष्टाचारी अपना अड्डा जमा रहा ।।1।।


सभी ओर से झोंका आया मगर
मैं तो अपने पथ पर डिगा रहा।।2।।


चोर उचक्का कब्जा जमा रहा
आखें दिखा  निबाला खा रहा ।।3।।


पथभ्रष्ट ही चारों ज्ञान बांच रहा
अंधभक्त माथे  पुष्प बर्षा रहा।।4।।


आज निर्दोष को दोषी बना रहा
दोषी को सत्ता पर बैठा रहा  ।।5।।


सरकार पुर्जों पर कानून बना रहा
गद्दारों,हत्यारा धज्जियां उड़ा रहा।।6।।


आज आंखों सामने उल्लू बना रहा
गठबंधन से देश खोखला बना रहा।।7।।

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