संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी
महाराज का अमृत मयी वचन का
सारगर्भित वाणी आप लोगों के सामने प्रस्तुत है
सदगुरु महाराज ने समझाते हुए कहा था
कि सबको एक दिन जाना होगा
आइए उसी पर पूरा व्याख्यान
अर्थात प्रवचन को सुनते हैं पढ़ते हैं:-
आपलोग खेती करते हैं, आपलोग किसान हैं।
खेती से ही सब लोग जीते हैं, खेती नहीं।
करने में आपलोग डरते हैं, क्यों?
इसलिए कि यदि खेती नहीं करेंगे तो
खाने-पहनने के लिए तकलीफ हो जाएगी।
फिर आप लोगों की संतति है।
अपनी संतान के पालन-पोषण के लिए पिता की इच्छा रहती है।
साथ में डर रहता है कि यदि संतान को अच्छी शिक्षा नहीं दें,
तो संसार के योग्य काम को वह नहीं कर सकेगा।
सरकारी नौकर या अपना नौकर ही लीजिए,
वे भी डरते हैं कि यदि ठीक से काम नहीं करेंगे तो
पद से हटा दिए जाएँगे।
चुनाव में क्या होता है?
हर पाँच वर्ष के बाद चुनाव होता है।
उसमें भी डर रहता है कि
इस चुनाव में मतदान नहीं मिलेगा,
तो हटा दिए जाएँगे।
सिपाही अपने बड़े अफसर से डरता है।
डरने से ही सब काम संसार का चलता है।
संत कबीर साहब ने कहा है -
"डर करनी डर परम गुरु, डर पारस डर सार।
डरत रहै सो ऊबरै, गाफिल खावै मार।"
यहाँ तो खेती करने का डर,
नहीं पढ़ने का डर आदि-आदि डर बना रहता है।
यह डर करना कब तक के लिए है?
मात्र एक जीवन के लिए।
एक साल सुख से रहने के लिए कितना परिश्रम करते हैं? डरकर खेती करते हैं, अच्छी बात है।
किन्तु इसके साथ-साथ एक बात और है कि
आज हम हैं, लेकिन हमारे पिता या पिता के पिता कहाँ चले गए?
उसी तरह हमको भी एक दिन जाना होगा।
अभिमन्यु के मरने पर युधिष्ठिर को नारदजी ने बहुत समझाया और कहा कि
भगवान श्रीराम ग्यारह हजार वर्ष पर्यन्त राज्य कर फिर इस असार संसार से चले गए। तुम पुत्र-शोक व्यर्थ करते हो।
जब यह समझ में आता है कि एक दिन हमको भी जाना होगा,
तब घर-दरवाजा आदि बेकार मालूम होने लगता है।
यदि कोई किसी को कहे कि मरने पर तुम नरक में जाओगे,
तो यह सुनकर महादुःखी होगा।
इसके लिए ऐसा उपाय करो कि शरीर छूटने पर दुःख में न चले जाओ।
अभी जो आपलोगों ने पाठ में सुना है, उसमें कबीर साहब कहते हैं -
"निधड़क बैठा नाम बिनु, चेति न करै पुकार।
यह तन जल का बुदबुदा, बिनसत नाहीं बार।।"
पानी का फोंका (बुदबुदा) कुछ काल ठहरता है,
फिर फूट जाता है। उसी तरह शरीर थोड़ी देर रहेगा, फिर नाश हो जाएगा।
इसलिए भजन करो और डरो कि कब शरीर छूट जाएगा।
भय से भक्ति करै सबै, भय से पूजा होय।
भय पारस है जीव को, निर्भय होय न कोय।।
- कबीर साहब
भजन करने के लिए हमको वैसा बनना पड़ेगा,
जिससे हम भजन करने के योग्य होंगे।
अतरदान में अंगुलि देनी हो, तो
गोबर जिस हाथ से फेंके हो, उस हाथ की अंगुलि को धो लो, तब इत्र की सुगंध मालूम होगी।
उसी तरह ईश्वर भजन करने के लिए अपने मन - हृदय को शुद्ध करना होगा।
इसके लिए पाँच पाप मत करो।
पहला पाप है झूठ।
झूठ मत बोलो।
यदि गाँव भर के लोग झूठ नहीं बोलेंगे तो
किसी से किसी को लड़ाई-झगड़ा आदि नहीं होगा।
झूठ में सब पाप छिपे हैं।
झूठ छोड़ा तो सब पाप भाग जाएँगे।
संत कबीर साहब ने कहा है -
"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।"
चोरी मत करो।
व्यभिचार मत करो।
व्यभिचार कहते हैं - अनैतिक मिलन को।
मनुष्य के लिए जो शास्त्रानुकूल वैवाहिक नियम है,
उस तरह विवाह कर पुरुष-स्त्री एक साथ रहें।
इसके विरुद्ध जो है, वही है - व्यभिचार।
नशा नहीं पियो और न खाओ।
संत कबीर साहब ने कहा है -
"मांस मछरिया खात है, सुरापान से हेत।
सो नर जड़ से जाहिंगे, ज्यों मूरी की खेत।।
खेत से मूली उखाड़ने पर उसका कुछ नहीं बचता है।
उसी तरह जो मांस मछली खाता है,
मद्य पीता है, वह धर्म के खेत से उखड़ जाता है।
"भांग तम्बाकू छूतरा, अफयूँ और शराब।
कह कबीर इनको तजै, तब पावै दीदार।।"
नशीली चीज सत्यमार्ग से गिरानेवाली है।
हिंसा मत करो।
हिंसा नहीं करने के सम्बन्ध में मांस-मछली भोजन मत करो।
मांस-मछली खाने से केवल हिंसा ही नहीं होती है,
उसकी तासीर भी कुछ और है।
गाय के दूध में जो गुण है,
भैंस के दूध में वैसा गुण नहीं है।
बकरी के दूध में फिर दूसरा ही गुण है।
उसे आप पी सकते हैं, किन्तु गदही का दूध नहीं पी सकते।
दूध-दूध में भी गुण है।
गदही के दूध को अपवित्र समझते हैं।
आप अपनी देह को समझिए और
एक मछली की देह को समझिए।
दोनों पर विचार कीजिए।
मछली की देह में कितनी गन्ध रहती है?
मछली खानेवाले मछली को धोकर खाते हैं।
मछली क्या खाती है, सो विचारिए।
वह निकृष्ट-से-निकृष्ट वस्तु को खाती है।
जैसा अन्न वैसा मन।
उस खराब वस्तु को खाने से मन कैसा होगा, विचारिए।
मछली छूने पर हाथ धोते हैं। उसके शरीर के गुण और अपने शरीर के गुण में अंतर है।
इसलिए अपने उत्तम शरीर में नीच गुणवाले शरीर को देकर अपने को नीचे गिराना है।
परमात्मा ने अनेक प्रकार के फल दिए हैं, मिठाई दी है,
उसे खाइए।
खराब चीज खाने से मन भी खराब हो जाता है।
इन पंच पापों से अपने को बचाकर रखिए।
मनुस्मृति में आठ घातक बताए गए हैं
- 1. वध करने की आज्ञा प्रदान करनेवाला,
2. शस्त्र से मांस काटनेवाला,
3. मारनेवाला,
4. बेचनेवाला,
5.मोल लेनेवाला,
6. मांस पकानेवाला,
7. परोसने के लिए लानेवाला और
8. खानेवाला।
ये आठो घातक कहलाते हैं।
इसलिए हिंसा से बचो।
जो पंच पापों से बचेगा, वही भजन कर सकेगा।
भजन करने में टालमटोल मत करो।
"आज कहै मैं काल्ह भजूँगा, काल्ह कहै फिर काल्ह। आज काल्ह के करत ही, औसर जासी चाल।। "
- कबीर साहब
इसलिए उन्होंने कहा –
काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलय होयगा, बहुरि करैगा कब्ब।।"
यह अच्छे कर्म के लिए कहा है, बुरे कर्म के लिए नहीं।
पाव पलक की सुधि नहीं, करै काल्ह की साज।
काल अचानक मारसी, ज्यों तीतर को बाज।।
- कबीर साहब
काल राजा एक दिन सब पर झपट्टा मारता है।
कब झपेटा लगेगा, ठिकाना नहीं।
इसलिए होशियार रहो।
भक्त शब्द की सीढ़ी पाता है।
सबके अंदर ईश्वर की ध्वनि होती है।
उस शब्द को जो पकड़ता है, वह परमात्मा तक पहुँचता है।
इसके लिए घर छोड़ने की जरूरत नहीं।
"घर में रहो, भजन करो।"
हल जोतो, खेती करो और भजन करो।
जो सोवै, सो खोवै।
जो जागै सो पावै।
जग-जगकर भी ध्यान करो।
हमारे ऋषियों ने त्रयकाल संध्या बतायी है।
भैंस चराने जिस समय जाते हो, उस समय भजन करो।
यदि कहो कि भैंस चरावेंगे कि ध्यान करेंगे?
तो भैंस चराने के कुछ काल पहले उठो, भजन करके फिर भैंस चराने जाओ।
भैंस चराने जाओ तो किसी दूसरे का खेत मत चराओ। नहीं तो सब ध्यान उसीमें खतम हो जाएगा।
दोपहर में स्नान करके, फिर शाम में ध्यान करो।
समय तो बहुत रहता है।
किंतु लोग गपशप में बिता देते हैं।
कुछ नींद को जीतो और गपशप छोड़ो,
तो भजन कर सकोगे।
आपलोगों ने पहले नशे के सम्बन्ध में सुना।
वे तो मोटे-मोटे नशे हैं। बारीक नशे के सम्बन्ध में भी सुनिए -
मद तो बहुतक भाँति का, ताहि न जानै कोय।
तन मद मन मद जाति मद, माया मद सब लोय।।
विद्या मद और गुनहु मद, राजमद्द उनमद्द।
इतने मद को रद्द करै, तब पावै अनहद्द।।
सदाचारपूर्वक सबसे मिलकर रहिए।
गाँव-समाज में भी मिलकर रहिए।
आपस में झूठ व्यवहार नहीं कीजिए। सुचरित्र से रहिए।जरा-सा झूठ के कारण भगवान शिवजी ने सती को मन से त्याग दिया था।
इसलिए झूठ को छोड़िए।
।।श्री सद्गुरु महाराज की जय।।
आदरणीय सज्जनों आप लोगों को सदगुरु महाराज के अमृत नई वचन को आप लोगों के सामने प्रस्तुत किया गया और पढ़ कर आपका ह्रदय गदगद हो गया होगा और आनंदित महसूस कर रहे होंगे ऐसा मेरा मानना है और यह बिल्कुल सत्य वचन है और यही अपेक्षा है कि आप इसी तरह का प्रवचन और भी पढ़ने के लिए नीचे आर्टिकल है उसे जाकर अवश्य पढ़ें और अपने को और मन को तृप्ति का अनुभव करें और इसमें जो भी त्रुटि हुआ होगा उसके लिए क्षमा चाहता हूं
।।
।जय गुरु।
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