हम धरतीपुत्र मिट्टी से सोना उगानेवाले हैं।।
मैं तो हूँ करमवीरपूत्र शान से नाम लेते हैं।
जग की भूख मिटाते किसान सब कहते हैं ।।
माथे पर पगड़ी बांधें मातृभूमि की सेवा करते हैं।
दिन रात करते काम गुमान नहीं कभी करतें हैं ।।
मातृभूमि की सेवा को,राष्ट्र की सेवा समझते हैं
तन,मन,धन सब अर्पितकर हल बैल से चलते हैं।।
चारों ओर हरियाली में दिन रात हम रहते हैं
चिड़ियां की चहचाहट सुन रोज सुबह जगते हैं ।।
कोयल की मधुर बोली सुन ,सुर में सुर मिलाते हैं
कू के साथ कू बोलकर हम दिल को बहलाते हैं ।।
प्रकृति के सुन्दरता तरुण यूँ ही लुप्त उठाते हैं।
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