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बुधवार, 10 जून 2020

Swami vivekanand speech 5


SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
जब वह शक्तिपुंज समस्त ज्ञान के समस्त संवेदनाओं के केंद्रस्वरूप मस्तिष्क में पहुँचता है,तब संपूर्ण मस्तिष्क मानो प्रतिक्रिया करता है और इसका फल है ज्ञान का पूर्ण प्रकाश या आत्मसाक्षात्कार। 
कुण्डलिनी-शक्ति जैसे-जैसे एक केंद्र से दूसरे केंद्र को जाती है वैसे-ही-वैसे मन का एक-एक परदा खुलता जाता है और तब योगी इस जगत की सुक्ष्म या कारणरूप में उपलब्धि करते हैं और तभी विषयस्पर्श से उत्पन्न हुई संवेदना और उसकी प्रतिक्रियारूप जो जगत के कारण,उनका यथार्थ स्वरूप हमें ज्ञात हो जाता है। 
उसके बाद हम सारे विषयों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि कारण को जान लेने पर कार्य का ज्ञान निश्चित ही होगा। 
       स्वामी विवेकानंद जी 
SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
      
इस प्रकार हमने देखा कि कुण्डलिनी को जगा देना ही तत्वज्ञान, अतिचेतन अनुभूति या आत्मसाक्षात्कार का एकमात्र उपाय है। कुण्डलिनी प्रेम के बल से ही जागृत हो जाती है, किसी की सिद्ध महापुरुषों की कृपा से और किसी की सुक्ष्म ज्ञानविचार द्वारा लोग जिसे अलौकिक शक्ति या ज्ञान कहते हैं,उसका जहाँ कहीं कुछ प्रकाश दिखाई देता है तो समझना चाहिए कि वहाँ कुछ परिमाण में यह कुण्डलिनी-शक्ति सुषुम्ना के भीतर किसी तरह स्थान पा चुकी है।
 इस प्रकार की अलौकिक घटनाओं में से अधिकतर स्थलों में देखा जायेगा कि उस व्यक्ति ने बिना जाने एकाएक ऐसी कोई साधना कर चुकी हैं जिससे उसकी कुण्डलिनी-शक्ति अज्ञातभाव से कुछ परिमाण में स्वतंत्र होकर सुषुम्ना में अपना स्थान बना ली है। 
समस्त उपासना ज्ञात भाव से हो या अज्ञातभाव से,उसी एक लक्ष्य पर पहुँचा देती है अर्थात उससे कुण्डली जागृत हो जाती है। जो सोचते हैं कि मैंने अपनी प्रार्थना का उत्तर पाया उन्हें मालुम नहीं कि प्रार्थनारूप मनोवृत्ति के द्वारा वे अपनी ही देह में स्थित अनंत शक्ति के एक बिंदु को जगाने में समर्थ हुए हैं। इसलिए योगी घोषणा करते हैं कि— मनुष्य बिना जाने जिसकी विभिन्न नामों से डरते -डरते और कष्ट उठाकर उपासना करता है, उसके पास किस तरह अग्रसर होना होगा,यह जान लेने पर समझ में आ जायेगा कि वही प्रत्येक व्यक्ति में कुण्डलिकृत यथार्थ शक्ती है। चिरन्तन सुख की जननी है।
 इसलिए— राजयोग यथार्थ धर्म विज्ञान है। वही सारी उपासना,सारी प्रार्थना, विभिन्न प्रकार की साधन-पद्धति और समस्त अलौकिक घटनाओं की युक्ति-संगत व्याख्या है।
 
SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
इस प्रकार हमने देखा कि कुण्डलिनी को जगा देना ही तत्वज्ञान, अतिचेतन अनुभूति या आत्मसाक्षात्कार का एकमात्र उपाय है। कुण्डलिनी प्रेम के बल से ही जागृत हो जाती है, किसी की सिद्ध महापुरुषों की कृपा से और किसी की सुक्ष्म ज्ञानविचार द्वारा लोग जिसे अलौकिक शक्ति या ज्ञान कहते हैं,उसका जहाँ कहीं कुछ प्रकाश दिखाई देता है तो समझना चाहिए कि वहाँ कुछ परिमाण में यह कुण्डलिनी-शक्ति सुषुम्ना के भीतर किसी तरह स्थान पा चुकी है। 
इस प्रकार की अलौकिक घटनाओं में से अधिकतर स्थलों में देखा जायेगा कि उस व्यक्ति ने बिना जाने एकाएक ऐसी कोई साधना कर चुकी हैं जिससे उसकी कुण्डलिनी-शक्ति अज्ञातभाव से कुछ परिमाण में स्वतंत्र होकर सुषुम्ना में अपना स्थान बना ली है। समस्त उपासना ज्ञात भाव से हो या अज्ञातभाव से,उसी एक लक्ष्य पर पहुँचा देती है अर्थात उससे कुण्डली जागृत हो जाती है। जो सोचते हैं कि मैंने अपनी प्रार्थना का उत्तर पाया उन्हें मालुम नहीं कि प्रार्थनारूप मनोवृत्ति के द्वारा वे अपनी ही देह में स्थित अनंत शक्ति के एक बिंदु को जगाने में समर्थ हुए हैं। 
इसलिए योगी घोषणा करते हैं कि— मनुष्य बिना जाने जिसकी विभिन्न नामों से डरते -डरते और कष्ट उठाकर उपासना करता है, उसके पास किस तरह अग्रसर होना होगा,यह जान लेने पर समझ में आ जायेगा कि वही प्रत्येक व्यक्ति में कुण्डलिकृत यथार्थ शक्ती है। चिरन्तन सुख की जननी है।
 इसलिए— राजयोग यथार्थ धर्म विज्ञान है।
 वही सारी उपासना,सारी प्रार्थना, विभिन्न प्रकार की साधन-पद्धति और समस्त अलौकिक घटनाओं की युक्ति-संगत व्याख्या है।
 
 SWAMI  VIVEKANAND  SPEECH 
   
प्राणायाम साधना की पहली क्रिया यह है— 
"भीतर निर्दिष्ट परिमाण में साँस लो और बाहर निर्दीष्ट परीमाण में साँस छोड़ो। इससे देह संतुलित होगी।
 कुछ दिन यह अभ्यास करने के बाद साँस खींचने और छोड़ने के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का मन-ही-मन उच्चारण करने से अच्छा होगा।
 भारत में प्राणायाम करते समय हम लोग श्वास के ग्रहण और त्याग की संख्या ठहराने के लिये, एक,दो,तीन चार इस क्रम से ना गिनते हुए कुछ सांकेतिक शब्दों का व्यवहार करते हैं। इसलिए मैं तुम लोगों से प्रणायाम के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का व्यवहार करने के लिए कह रहा हुँ। चिंतन करना है कि— 
वह शब्द श्वास के साथ लययुक्त और संतुलित रूप से बाहर जा रहा है और भीतर आ रहा है।
ऐसा करने पर तुम देखोगे कि सारा शरीर क्रमश  मानो लय युक्त
होता जा रहा है।  तभी हम समझ पाते हैं कि यथार्थ विज्ञान क्या है। उसकी तुलना में निद्रा तो विश्राम ही नहीं। एक बार यह विश्राम की अवस्था आने पर अतिशय थके हुए स्नायु भी शांत हो जायेंगें और तब तुम जानोगे कि पहले तुमने कभी यथार्थ विश्राम का सुख नहीं पाया।
 जय गुरु।
    स्वामी विवेकानंद जी
SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
     
प्राणायाम साधना की पहली क्रिया यह है— 
"भीतर निर्दिष्ट परिमाण में साँस लो और बाहर निर्दीष्ट परीमाण में साँस छोड़ो। इससे देह संतुलित होगी।
 कुछ दिन यह अभ्यास करने के बाद साँस खींचने और छोड़ने के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का मन-ही-मन उच्चारण करने से अच्छा होगा।
 भारत में प्राणायाम करते समय हम लोग श्वास के ग्रहण और त्याग की संख्या ठहराने के लिये, एक,दो,तीन चार इस क्रम से ना गिनते हुए कुछ सांकेतिक शब्दों का व्यवहार करते हैं। इसलिए मैं तुम लोगों से प्रणायाम के समय ओंकार अथवा अन्य किसी पवित्र शब्द का व्यवहार करने के लिए कह रहा हुँ। चिंतन करना है कि— 
वह शब्द श्वास के साथ लययुक्त और संतुलित रूप से बाहर जा रहा है और भीतर आ रहा है।
 ऐसा करने पर तुम देखोगे कि सारा शरीर क्रमश  मानो लय युक्त
होता जा रहा है।  तभी हम समझ पाते हैं कि यथार्थ विज्ञान क्या है। उसकी तुलना में निद्रा तो विश्राम ही नहीं। एक बार यह विश्राम की अवस्था आने पर अतिशय थके हुए स्नायु भी शांत हो जायेंगें और तब तुम जानोगे कि
 पहले तुमने कभी यथार्थ विश्राम का सुख नहीं पाया। जय गुरु।
    स्वामी विवेकानंद जी
    SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
इस साधना का पहला फल यह देखोगे कि तुम्हारे मुख की क्रांति बदलती जा रही है। मुख की शुष्कता या कठोरता का भाव प्रर्दशित करनेवाली रेखाएँ दूर हो जायेंगी। मन की शांतँ मुख से फूटकर बाहर निकलेगी। 
दूसरे तुम्हारा स्वर बहुत मधुर हो जायेगा। मैंने एक भी ऐसा योगी नहीं देखा,जिसके गले का स्वर कर्कश हो। कुछ महीने के अभ्यास के बाद ही ये चिन्ह प्रकट होने लगेंगें। इस पहले प्राणायाम का कुछ दिन अभ्यास करने के बाद प्राणायाम की एक दूसरी ऊँची साधना ग्रहण करनी होगी।
वह यह है— इड़ा अर्थात बायें नथूने द्वारा फेफड़े को धीरे-धीरे वायु से पूरा करो।
उसके बाद स्नायुप्रवाह को मेरुरज्जा के नीचे भेजकर कुण्डलिनी-शक्ति के आधारभूत, मूलाधारस्थित त्रिकोणाकृति पद्म पर बड़े जोर से आघात कर रहे हो।
इसके बाद इस स्नायुप्रवाह को कुछ क्षण के लिए उसी जगह धारण किये रहो।
उसके बाद सोचो कि तुम उस स्नायिक प्रवाह को श्र्वास के साथ दूसरी ओर से अर्थात पिंगला द्वारा उपर खींच रहे हो। फिर दाहिने नथुने से वायु धीरे-धीरे बाहर फेंको।
इसका अभ्यास तुम्हारे लिए कुछ कठिन होगा। 
सहज उपाय भी है। ।।जय गुरु।।
      SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
यह पूरा पढकर आनंदित होंगे  आपके सेवा में और भी लेकर हाजिर होउंगा ।तब तक नीचे  देखें 
   

1 टिप्पणी:

kumartarunyadav673@gmail.com

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