क्यों इतना मना रहे हैं जश्न।।
क्यों पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे
अपनी सभ्यता संस्कृति को क्यों भूला रहे।।
अपना नव वर्ष आता है ।
मौसम में खुशहाली छा जाता है।।
प्रकृति भी अपना रंग बिखरेती है
फूल की कलियां भी हंस के खिलती है ।।
पेड़ पौधा नया कुमार लेकर आती है
पक्षी भी अपना सुमधुर गीत सुनाती है ।।
सुर्य देव भी पर्दा से बाहर आता है
जनमानस में एक उर्जा आ जाता हैं।।
जब वह अपना संस्कृति को नहीं भूल सका
तू तू क्यों उसे भूल गया दूसरे को अपना रहा।।
झूठे प्यार प्रेम पर इतरा रहा है
मा बाप के प्रेम को ठुकरा रहा है।।
ग्रीटिंग कार्ड्स पर ही जश्न मना रहे हो
नंगी नाच से पच्छिमी संस्कृति अपना रहे हो।।
लव यू लव यू बोल चिल्ला रहे हो
प्यार प्रेम का बढ़िया से मजाक उरा रहे हो।।
अब भी समय है अपनी संस्कृति को याद करो
पूर्वजों की सनातन पद्धति को स्वीकार करो।।
~तरूण यादव रघुनियां
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