एक सैलाब हमारा भी था।।
आग लगा दिल में हमारा भी था
मेरे जैसे बहुत कुंवारा भी था।।
गुलाब पर दिल हमारा भी था
उनके बिना कोई चारा भी था।।
पंखुड़ी की अदा का मारा भी था
सबके जैसे दिल से हारा भी था।।
इश्क़ जनाब हमारा भी था,
दिल में आग हमारा भी था।।
~तरुण यादव रघुनियां
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