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शुक्रवार, 12 मार्च 2021

छोड़ो जगत की आस रे बंदे

छोड़ो जगत की आस रे बंदे 
यहां नहीं कुछ खास रे बंदे ।।

कोई नहीं दुःख में आसपास रे बंदे
 यह तो है बंधन का भव पास रे बंदे।।

सब यहां एक दूसरे को नीचे दिखा रहा रे बंदे
 रोज नए-नए बना रहे जंजाल का फंदे ।।

मोह माया को त्याग रे बंदे 
अंधकार से नित्य कर संग्राम रे बंदे।।

 चलो सद्गुरु के द्वार रे बंदे
 भवजल उतारेंगे पार रे बंदे।।
~तरुण यादव रघुनियां मधेपुरा

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