हम ऐसे जीते हैं
कल को खूब चलाते,
तब पानी पीते हैं।।1।।
मेरे घर में बड़े बुजुर्ग,
सुबह सबेरे गाय भैंस दूहते है।
बाटी हो या कटोरा,जितना अट जाये
ताज़ा दूध भर छांक पीते हैं।।2।।
अपना हो या पराया
सब साथ मिलकर रहते हैं
सुबह शाम एक साथ बैठकर
सुख दुःख का बात करते हैं।।3।।
अगल बगल पड़ोसी के यहां
कुछ हो जाये
हम सब चारों ओर से दौड़ते हैं
लड़ाई झगड़ा कितना भी हो
पहले हम सहायता करते हैं।।4।।
घर में अनाज कम हैं या ज्यादा
हमेशा बेफिक्र रहते हैं
कहीं से मेहमान आ जाये
कुछ सामान घट जाए तो
दुकान नहीं पड़ोसी से मांग
लेते हैं।।5।।
नहीं कोई शोर शराबा
ताज़ा और स्वच्छ हवा लेते हैं
खूब खाते खूब उड़ाते
हम सब ऐसे मस्ती में जीते हैं।।6।।
~तरूण यादव रघुनियां मधेपुरा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
kumartarunyadav673@gmail.com