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सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

कवि और पेड़

एक पेड़ सड़क किनारे खड़ा
इंतजार कर रहा
मैं जब पहुंचा तो
बैठने को कहा
लेकिन मैं चल दिया
वह छाया से रोक लिया
कहा थोड़ा आराम कर लो
फिर मेरा बात सुनो
मेरे लिए काली बदरा छाई
मानुष बना कसाई
एक एक कर यम जैसा
कर रहा सफाई
मैं करता सदा भलाई
तन मन भी समर्पित
सदा करता रहता
वायु का देता प्राण अर्पित
अंतिम बात सुनो
चित मन धरकर भाई
मेरे जीवन से सदा
प्यार करना सिखाओ
भाई नहीं तो पछताना पड़ेगा
आंखें मलकर भाई
ओजस्वी वाणी सुन
मैं बहुत सकुचाई
मैं असमंजस में पर
कुछ करने को ठाना
तेरी सनम तेरे लिए
तुझको मातृभूमि पर बचाना
तेरे लिए जो कुछ
चाहे जान पड़े लुटाना।।।

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