गोपीचंद जब थे राजकुमार
उसके मन आया अद्भुत विचार
सन्यासी बन कर करूं जीवन उद्धार
एक दिन कहा मां
दो मुझे आज्ञा
संसारी जिंदगी से हो गया हूं तंग
मन हो गया है इससे भंग
राजपाट में नहीं लग रहा सुख
हमको लग रहा है यह अनोखा दुख
खोजते-खोजते गए गुरु के पास
वह थे गुरु गोरखनाथ
कहा आपसे एक आस
ज्ञान लेने आया हूं आपके पास
बना लो आप हमको दास
गोरखनाथ ने दिया सन्यासी वेश
और दिया अद्भुत विवेक
गोपीचंद गया अपना देश
भिक्षा मांगने के लिए क्या राज प्रवेश
आवाज़ लगाई भिक्षा दो
मां चावल का तीन दाना
पात्र में देकर कहा
यह है मेरी आज्ञा
गोपीचंद ने कहा
नहीं समझा इसको मां
क्या है आपकी आज्ञा
देख के रहना सुरक्षित किला
जिसको दुश्मन नहीं सके हिला
दूसरा चैन की नींद सोना
जिस से नहीं आएगा कोई शरीरिक टोना
तीसरा स्वादिष्ट भोजन खाना
यही है मेरा तीन आज्ञा
ले लो बेटा इसका प्रतिज्ञा
रविवार, 6 मई 2018
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