रे बंदे दुनिया में क्यों भटक रहा
तेरे ऊपर काल मंडरा रहा
क्यों पंच पाप नहीं छोड़ रहा
उस से नाता नहीं तोड़ रहा
जब काल का मुंगरी खाएगा
तब सोच सोच पछताएगा
रे बंदे...................
दुनियादारी में उमर बीत रहा
जिंदगी से आनंद मिट रहा
जब बुढ़ापा आएगा
बीता जिंदगी यादकर पछताएगा
रे बंदे...................
समय रहते नहीं संभल रहा
तरुण में भजन नहीं कर रहा
जब गुरु के शरण में जाएगा
तुझे देखकर भाग जाएगा
रे बंदे.....................
रविवार, 10 जून 2018
रे बंदे दुनिया में क्यों भटक रहा
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