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सोमवार, 20 मई 2019

मेरी आहें भाग 2

मैं शुरू से हूं अध्यात्मिक प्रवृत्ति का रहा हूं और बचपन में जब भी कोई घटना घटता था तो मैं भगवान पर विश्वास करके छोड़ देता था कि वही करेंगे और वहीं रोकेंगे भी हैं जब कभी भी बचपन में मैं देखता धरती फट रहा है तो हमको लगता है कि कहीं भूकंप ना जा आए विश्वास था कि ऐसा नहीं होगा क्योंकि पर वह ऐसा नहीं होने देंगे और नहीं होता था तो हम सोचते थे कि चलो प्रभु ने मेरा वाणी सुन लिया मैं बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति जुड़ा रहा हूं इसके पीछे भी कारण आप लोगों को बताना चाहता हूं मेरा जन्म विजयादशमी के दूसरा पूजा ब्रह्मचारिणी की रोज हुआ था तो स्वभाव से ही जब दुर्गा नवमी के दूसरा पूजा करो हुआ था तो उसका प्रभाव पड़ेगा ही और अध्यात्मिक क्षेत्र में जाना भी एक उसी का प्रभाव था इसके बारे में आपको बताना चाहता हूं कि बचपन में ही मुझे एक साधु जो जदिया में अपना कुटिया बनाकर रहते थे और तपो निष्ट साधु था और मेरे दादा से बढ़िया जुराब था और यहां पर मान-सम्मान भी बढ़िया होता था और हम अनेक फंशन पर पर्व त्यौहार पर वह आते थे और सबों को आशीर्वाद भी दिया करते थे तो उन्होंने ही बचपन में मेरे गले में कंठी बांध दिया और मेरा नाम रख दिया" तरुण" साधु का भी प्रभाव मुझ पर पड़ा और दूसरा जो है दुर्गा पूजा के दूसरा रोज को जन्म हुआ ब्रह्मचारिणी के रोज यह दोनों का संयोग से मेरे जीवन में आध्यात्मिकता की कली खिल गई और उसका प्रभाव मुझ पर है मैं विश्वास भी करता हूं और ऐसा रहना ही चाहिए जब मेरा जन्म हुआ था तो बचपन में मेरा नाम गुरु चुन रखा था क्योंकि मैं बहुत लेट से बुलना शुरू किया जिसके कारण ज्यादा गुड़ करने के कारण मेरा नाम गुरु चुन रखा था जब की कई जो मेरे पिताजी के फ्रेंड थे वह गुरुचरण कह के पुकारते थे कोई गुरुशरण कह के पुकारते थे और मुझे सुनने में बड़ा आनंद आता था मैं बचपन से ही हमेशा दृढ़ निश्चय और अनेकों देवी देवता का पूजा करने में विश्वास करता था टिकुलिया बाजार से जा करके सभी तरह के देवी देवता का तस्वीर लगा कर के सब का पूजा पाठ करने के बाद खाना खाता खाना खाने में कभी कभी 12 -1 भी बज जाता था जिसके कारण हमको बहुत डांट पड़ती थी मार पड़ती थी और सत्संग प्रवृत्ति के लत के कारण मैं टिकुलिया के निवासी रामेश्वर यादव के दरवाजे पर चला जाता था और उसको कहता था कि दादा जी आप हमको रामायण के बारे में सुनाइए सब कांड बाड़ी बाड़ी से सुनाते जाते थे रामेश्वर बाबू बड़े अच्छे ढंग से बड़े चाव से गाकर सुनाते थे शबरी के बारे में भगवान राम के बारे में लक्ष्मण के बारे में हनुमान जी के बारे में भगवान शंकर के बारे में भगवान कृष्ण के बारे में अहिरावण के बारे में परशुराम के बारे में यानी लगभग रामायण महाभारत गीता और सबसे ज्यादा रामायण का अधिकांश कथा को सुना दिए और याद भी करा दिए और जब मैं उस कथा को अपने दिमाग में अस्मा करता तो अहलावत होता और मैं सुन सुन करके उसी तरह के बनने का प्रयास करता था और बहुत उस में मशगूल हो जाता था और खाने पीने तक का भी मुझे ख्याल नहीं आता था और यह क्रिया नित प्रति का था और भर दिन में उसके दरवाजे पर रहता था और उससे सत्संग सुना करता था जिससे मुझे बहुत आनंद मिलता था और उस आनंद के कारण मैं भर दिन भूखा भी रह जाता था और अधिकांश दिन ऐसा ही मेरा बचपन गुजरा जब घर पर देखते अभी तक खाने के लिए नहीं आया है तब खोजते खोजते जाता फिर मारपीट कर लाता था जब रामेश्वर बाबू के पास मैं बराबर सत्संग के बारे में सुनता उस पर विचार करता और भर दिन ऐसा ही करते रहने के कारण जब मेरा बचपन बीत रहा था तो एक दिन रामेश्वर बाबू ने कहा कि जाओ मन लगाकर पढ़ो आगे बढ़ो उसके बाद फिर आना सत्संग के बारे में बताऊंगा सत्संग करना भजन करना और मैंने उसके बाद को शिरोधार्य कर लिया और मैंने वैसा ही किया उन्होंने कहा कि पहले पढ़ाई करो तो मैंने पढ़ाई जारी किया उसके बाद में धीरे-धीरे सत्संग में भी जाने लगा और अभी सत्संग से पूर्ण रूप से जुड़ा हुआ हूं और पढ़ाई भी जारी ही है आदमी है aur Unka Aashirwad hui hai ki tum tum bahut Naam Karega। बचपन में पढ़ाई के सिलसिले में ही जब मैं टिकुलिया बाजार गया तो वहां एक दुकान में भगवान शंकर पार्वती और गणेश जी का तस्वीर के बीच में गणेश जी का स्तुति लिखा हुआ था जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा एकदंत दयावंत चार भुजाधारी मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा नंदन को आंख देत कोड इन को काया भजन को पुत्र देत निर्धन को माया जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा यह स्थिति मैंने पूरा अपनी कॉपी पढ़ लिया और अपने घर में आ करके उसका फोटो रखकर के सुबह शाम धूप दीप अगरबत्ती दिखा कर के वही स्थिति करता था और उसी का वेट करके ध्यान भी करने लगा तो जैसे उस तस्वीर में था साफ-साफ में अपने अंदर ध्यान में उगा लेता था और वाले ने के कारण मेरे अंदर और बाहर हो जा का सैलाब उमड़ रहा था जिसको जो बोलते वह तुरंत हो जाता था इस तरह से एक बार मैंने एक नरेश बाबू था उसको कहा तुम भी सत्संगी हो दीक्षा लिए हो क्या ध्यान तुम्हारा बनता है तो नहीं है मैंने कहा तुमको नहीं बनता होगा लेकिन मुझे बनता है मैं जैसे ही आंख बंद करता हूं मुझे भगवान शंकर पार्वती और गणेश जी नजर आते हैं और मैं उसका स्तुति करता हूं तुम लोगों का भक्ति कपट भरा हुआ है मेरा भक्ति निश्चल है इसलिए मुझे साफ-साफ भी नजर आ जाता है पूरा सच था भक्ति पूरे निश्चल भाव से किया जाता है निष्कपट किया जाता है सभी तरह के विकार को तज कर किया जाता है और मुझे ध्यान होता था और इस तरह मेरा बचपन बीता

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