भारत की योग की विशाल परंपरा को याद दिलाते हुए
आज आप लोगों के सामने उज्जाई प्राणायाम की चर्चा करेंगे
और बहुत ही विस्तृत रूप से आप लोगों के सामने रखेंगे
जिससे पढ़ने के बाद आप लोगों को पूरा पूरा समझ में आ जाए
तो आज आप लोगों के सामने उज्जाई प्राणायाम के बारे में बताने जा रहा हूं
👉🧘♂️ इस प्राणायाम में पूरक को करते हुए गले को सीकुरते हैं
और जब गले को सिकोरकर श्वास अंदर भरते हैं
तो जैसे खराटे लेते समय गले से आवाज होती है
उसी तरह का आवाज इसमें पूरक करते हुए
कंठ से ध्वनि होती है
आसन में ध्यान अभ्यास वाला आसन में बैठकर
दोनों नासिकाओं से हवा अंदर को खींचते हैं
कंठ को थोड़ा संकुचित करने से हवा का स्पर्श गले में अनुभव होता है
और हवा का घर्षण नाक में नहीं होना चाहिए
कंठ में घर्षण होने से एक ध्वनि उत्पन्न होती है
प्रारंभ में कुंभक का प्रयोग नहीं करते हुए केवल पूरक रेचक का ही अभ्यास करना चाहिए
पूरक के बाद धीरे-धीरे कुंभक का समय पूरक जितना
तथा कुछ दिनों के अभ्यास के बाद कुंभक पूरक से दुगुना कर देना चाहिए
कुंभक से ज्यादा करना हो तो जालंधर बंध और मूलबंध भी लगा सकते हैं
इस प्राणायाम में सदैव दाएं नासिका को बंद कर के बाएं नासिका से ही करना चाहिए
इसका अभ्यास 3 से 5 बार अवश्य करना चाहिए
*लाभ :--
इस प्राणायाम को करने से निम्न लाभ है
1. जो साल भर सर्दी खांसी जुकाम से पीड़ित रहते हैं जिनको टॉन्सिल थायराइड ग्लैंड और निद्रा मानसिक तनाव और रक्तचाप आमवात क्षय, ज्वर, प्लीहा जलोदर आदि रोग हो उनके लिए यह लाभप्रद है
2.गले को ठीक निरोग एवं मधुर बनाने हेतु इसका नियमित अभ्यास करना चाहिए
3. कुंडलिनी जागरण अजपा जप ध्यान आदि के लिए उत्तम यह प्राणायाम है
4. बच्चों का तुतलाना भी ठीक होता है
शुक्रवार, 9 अगस्त 2019
उज्जायी प्राणायाम कैसे करें
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