नमस्कार मित्रों ,
आप लोगों को अगले कड़ी अर्थात भाग 2 में महर्षि बाबा का मोक्ष दर्शन भाग 2 का विस्तार से प्रस्तुत करने जा रहा हूं ।
और सभी सज्जनों से यही अपेक्षा है
कि आप इस जीवन उपयोगी और अध्यात्म ज्ञान सतगुरु मेंही बाबा का जो मोक्ष ज्ञान है
इसको अवश्य पूरा पढ़ें ।
जिससे मोक्ष के बारे में विस्तार से ज्ञान होगा
चलिए विस्तार से जानते हैं:-
23.परम प्रभु सर्वेश्वर के निज स्वरूप की प्राप्ति के बिना परम कल्याण नहीं हो सकता है ।
24.आंखों पर रंगीन चश्मा लगा रहने के कारण बाहर के सब दृश्य चश्मे के रंग के अनुरूप रंग वाले दिखते हैं इसी तरह जरात्मक अनाच्छादनों से आच्छादित रहने के कारण जीव को अच्छादन तत्व का ज्ञान होता है
उससे भिन्न तत्व का नहीं।
25. कोई भी सगुन( रज तम और सत्व से युक्त) और साकार रूप अनादि अनंत मूल तत्व परम प्रभु सर्वेश्वर के संपूर्ण स्वरूप का रूप नहीं हो सकता है।
26.गंध स्पर्श रस और त्रयगुण मंडल के ध्वनात्मक और वर्णनात्मक शब्द सगुन निराकार कहेेे जा सकते हैं
इनके विशाल से विशाल मंडल सेे भी परम प्रभु सर्वेश्वर के संपूर्ण स्वरूप का आच्छादन नहीं हो सकता है ।
27.निर्मल चेतन और उसके केंद्र से उत्थित आदिनाद व आदि ध्वनि व आदि शब्द त्रयगुण रहित व निर्गुण निराकार कहे जा सकते हैं
इनसे अर्थात निर्गुण से भी परम प्रभु सर्वेश्वर पूर्ण रूप से आच्छादित होने योग्य नहीं है
क्योंकि अनंत को अपने घेरे के अंदर ला सके ऐसी किसी चीज को मानना बुद्धि विपरीत और अयुक्त है।
28.जरात्मक सगुन प्रकृति व अपरा प्रकृति नाना रूपों में रूपांतरित होती रहती है
इसलिए इसे क्षर और असत् कहते हैं ।
29.चेतनात्मक निर्गुण प्रकृति व परा प्रकृति रूपांतरित नहीं होती है
इसलिए इनको अक्षर और सत्य कहते हैं
परम प्रभु सर्वेश्वर सत् और असत् तथा क्षर और अक्षर से परे हैं।
30. परम प्रभु सर्वेश्वर में सृष्टि की मौज वा कम्प हुए बिना सृष्टि नहीं होती है ।
31.मौज वा कंप शब्द सहित अवश्य होता है
क्योंकि शब्द कंप का सहचर है।
कंप शब्दमय होता है
और शब्द कंपमय होता है।
32. परा और अपरा युगल प्रकृति यों के बनने के पूर्व आदि नाद वा आ आदि ध्वन्यात्मक शब्द अवश्य प्रकट हुआ। इसी को ओम सत्यनाम सार शब्द राम नाम आदि शब्द और आदि नाम कहते हैं।
33.कंप और शब्द के बिना सृष्टि नहीं हो सकती।कंपनी और शब्द सब सृष्टियों अनिवार्य रूप से अवश्य ही व्यापक है ।
34. आदि शब्द संपूर्ण सृष्टि के अंतर स्थल में सदा अनिवार्य अविच्छिन्न और अव्याहत रूप से अवश्य ही ध्वनित है ,यह अत्यंत निश्चित हैं ।यह शब्द सृष्टि का साराधार सर्वव्यापी और सत्य है ।
35. अव्यक्त से व्यक्त हुआ है अर्थात सूक्ष्मता से स्थूलता हुई है ।
सूक्ष्म स्थूल में स्वभाविक ही व्यापक होता है ।
अतएव आदि शब्द सर्व व्यापक है ।
इस शब्द में योगी जन रमते हुए परम प्रभु सर्वेश्वर तक पहुंचते हैं
अर्थात इस शब्द के द्वारा परम प्रभु सर्वेश्वर का अपरोक्ष प्रत्यक्ष ज्ञान होता है इसलिए इस शब्द को परम प्रभु का नाम "राम नाम" कहते हैं ।
यह सब में सार रूप से है
तथा और परिवर्तनशील भी है
इसलिए इसको सार शब्द ,सत्य शब्द, और सत्य नाम भारतीय संत वाणी में कहा है
और उपनिषदों में ऋषियों ने इसको ऊं कहा है इसलिए यह आदिशब्द संसार में ओम कह कर विख्यात है।।
सज्जनों सदगुरु महाराज के बताए हुए मोक्ष का अनूठा संग्रह है और इससे आप लोगों को बहुत ही लाभ हुआ होगा और अगला कड़ी में इसका अगला अंश आप लोगों के सामने लेकर आ रहा हूं और इसी तरह का और भी पढ़ने के लिए और जीवन उपयोगी बनाने के लिए इस साइट पर आए आपका स्वागत है और यह बहुत ही जीवन उपयोगी है और अपने जीवन के जीने का बोध कराता है।।
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