स्वामी व्यासानंद जी महाराज द्वारा दिया गया
अमृतमयी प्रवचन सदाचार पर बहुत ही रोचक और सारगर्भित है।
सत्संगी बंधु आइए थोड़ा विस्तार से जानते हैं।।
सदाचार अर्थात सत्य का अचार या आचरण।
यह आचार समस्ताचारों का मूल है।
इस आचार के पालन किए बिना समग्र धर्मों की कमर टूट जाती है।
यह आचार संतो को बहुत प्रिय है ।
इस पर सभी संतों ने बहुत जोड़ दिया है ।
साथ ही समग्र आर्स ग्रंथों में भी इस आचार की बड़ी महिमा बताई गई है।
जो इस आचार में कमजोर है
मानव धर्म के क्षेत्र में कमजोर है।
जैसे कमजोर आदमी दंगल में लड़ नहीं सकता और
यदि लड़ेगा भी तो उसकी हड्डी पसली टूट जाएगी ।
वैसे ही सदाचरण में कमजोर अभ्यासी
मन इंद्रियों एवं सब विकारों से टक्कर नहीं ले सकता ।
साधना में उन्नति नहीं कर पाएगा।
इसलिए संतो ने बतलाया है कि
सदाचार हीन व्यक्ति का आत्मबल कमजोर होता है।
वह विकारों से इंद्रिय से युद्ध नहीं कर सकता
और यदि धक्के से युद्ध करेगा अभी तो कामयाब नहीं होगा।
सदाचार हीन मनुष्य का इंद्रिय बल अत्यंत प्रबल होता है।
वह प्रबल इंद्रियां अभ्यासी को अपने अनुकूल न जाने में असमर्थ होती है।
वह अभ्यासी को विषय बाजार में घूमाती है ।
वह अभ्यासी को बहिर्मुखी बनाने में कामयाब होती है ।
वह अभ्यासी को ईश्वर विमुख कराने में सफल होती है।
वह अभ्यासी को चरित्रहीन बनाने में कुशल होती है ।
वह अभ्यासी को अध्यात्म पथ से पतन कराती है ।
वह अभ्यासी का मान मर्दन करने में सफल होती है ।
वह अभ्यासी की फजीहत कराने में समर्थ होती है।
वह अभ्यासी की दुर्दशा कराने में कामयाब होती है।
वह अभ्यासी को फंसाने में सफल होती है ।
वह अभ्यासी को बांधने में कृत कार्य होती है
वह अभ्यासी को मूर्ख बनाने में कुशल होती है ।
वह अभ्यासी का सत्यानाश करने में सफल होती है ।
तथा वह अभ्यासी को फंदा लगाने में सफल होती है ।
आदि
तात्पर्य:- प्रबल इंद्रिय अभ्यासी को अपने हाथ की कठपुतली बना लेती है
वह अभ्यासी को मदारी के हाथ का बंदर बना देती है
वह अभ्यासी को सपेरा के हाथ का सांप बना देती है।
और वह अभ्यासी को वेश्या के घर का भरवा बना देती है।
यानी प्रबल इंद्रिय अभ्यासी की कोई फजीहती बाकी नहीं रखती है।
हम कहेंगे कि कुछ बनना हो तो सदाचार युक्त होकर रहें।
वरना व्यर्थ मजहब को कलंकित करके धर्म का सत्यानाश नहीं करें।
संतों ने बताया है कि सदाचार से हीन राष्ट्र एक दिन मिट जायेगा ।
सदाचार से हीन धर्म 1 दिन खत्म हो जाएगा
सदाचार से ही संस्कृति एक दिन समाप्त हो जाएगी ।
सदाचार से हीन सत्कर्म एक दिन आडंबरों बनकर रह जाएगा ।
सदाचार से हीन सती सती नहीं रह पाएगी
और वह 1 दिन वेश्या बन जाएगी
सदाचार से हीन साधू 1 दिन भरवा बन जाएगा।
सदाचार से हीन धर्मी एक दिन दम्भ भी बन जाएगा।
सदाचार से ही देवता एक दिन राक्षस बन जाएंगे ।
सदाचार से हीन मनुष्य एक दिन जानवर बन जाएगा ।
सदाचार से हीन पुण्यात्मा एक दिन पाप आत्मा बन जाएगा ।
सदाचार से हीन सतकर्मी एक दिन दुष्कर्मी बन जाएगा सदाचार से हीन देवियां 1 दिन दानवियां बन जाएगी ।सदाचार से ही जापक एक दिन घातक बन जाएगा ।सदाचार से हीन ज्ञानी 1 दिन अभिमानी बन जाएगा। सदाचार से हीन याज्ञिक 1 दिन सर्वभक्षी बन जाएगा। सदाचार से हीन देशभक्त एक दिन देशद्रोही बन जाएगा ।कहने का एकमात्र अभिप्राय यह है कि
सदाचार से हीन मनुष्य कौन सा दुराचरण नहीं कर सकता।।
सदाचार का अर्थ होता है :-सत्य का आचरण अथवा सत्य पूर्ण आचरण, वेद शास्त्र अनुकूल आचरण ,पूर्व आचार्य द्वारा आचरित आचरण ,संत वचन अनुकूल आचरण ,विश्वास के योग आचरण ,असत्यवादी को सत्यवादी बना देने वाला आचरण
परधनहारी को परोपकारी बना देने वाला आचरण
नशाखोर को नशा से मुक्ति दिलाने वाला आचरण
मन वचन कर्म से हिंसा करने वालों को मन वचन और कर्म से अहिंसक बना देने वाला आचरण
परतिरयगामी को शतपथ गामी बना देने वाला आचरण।।
तात्पर्य समस्त पाप वासनाओं से छुटकारा दिलाकर समग्र देवी सद्गुणों से ओतप्रोत कर देने वाला आचरण ।
भक्ति रस से ही के हृदय में भक्ति रस की धारा बहा देने वाला आचरण
ब्रह्म सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी
महाराज के वचन में आया है
"पालन हो सदाचार ना आचार में ही क्या"
अर्थात सदाचार विहीन समग्र आचार का पालन व्यर्थ है।
इस आचार्य के बिना समस्त आचार कूड़ा करकट बन जाते हैं ।
जिस आचार्य के बिना सभी अचार इमली के अचार के समान दुखदाई बन जाते हैं।
जिस आचार के बिना समस्त धर्म की चारों की कमर टूट जाती है ।
जिस आचार बिना समस्त विचार नष्ट हो जाते हैं।
जिस आचार के बिना समस्त कुकर्म सुकर्म बन जाते हैं।
जिस आचार के अभाव में समस्त धर्माचारी व्यभिचारी बन जाते हैं ।
जिस आचार के अभाव में समस्त धर्म पाखंड का रूप धारण कर लेते हैं ।
जिस आचार के अभाव में समस्त सद्गुणों दुर्गुण का रूप धारण कर लेते हैं।
जिस आचार के अभाव में समस्त ज्ञान अज्ञान में परिवर्तित हो जाते हैं ।
जिस आचार के अभाव में समस्त सुच्याचार पापाचार में परिणत हो जाते हैं ।
जिस आचार के अभाव में सहज सुख राशि आत्म समस्त दुख राशि बन जाती है ।
जिस आचार के अभाव में समस्त सबसे नजदीक जो ईश्वर है सब से दूर भाषित होने लगते हैं ।
जिस आचार के अभाव में सर्वक्षन बजने वाला अंतरनाद सुनाई नहीं देता
बल्कि व्यक्ति विवाद में फंस जाता है
जिस आचार के अभाव में रोम रोम में व्यापक परमात्मा प्रकाश कभी प्रभु प्रतिभाषित नहीं होता
जिस अचार के अभाव में तपस्वी ढोंगी बन जाता
जिस आचार के अभाव में योगी भोगी बन जाता
जिस अचार के अभाव में जटाधारी मठाधारी बन जाता जिस आचार के अभाव में श्रेष्ठ वक्ता महान विषय भोक्ता बन जाता है ।
जिस अचार के अभाव में नागा नंगा बन जाता है ।
जिस अचार के अभाव में बड़ी-बड़ी दाढ़ी मूछ वाला साधु बड़ी-बड़ी सिंह पूछ वाला पशु बन जाता है ।।
जिस अचार के अभाव में ब्रह्मचारी स्वेच्छाचारी बन जाता है ।।
जिस अचार के अभाव में विषय त्यागी विषय अनुरागी बन जाता है ।।
जिस अचार के अभाव में विरक्त गृहस्त बन जाता है ।।जिस अचार के अभाव में गुणवान गुणहीन बन जाता है ।
जिस अचार के अभाव में बलवान बल हीन बन जाता है ।
जिस अचार के अभाव में धनवान धन हीन बन जाता है।
जिस अचार के अभाव में यशस्वी अपयशी बन जाता है । जिस अचार के अभाव में प्रबुद्ध अबुध्द बन जाता है ।।
जिस आचार के अभाव में महा अपसंग्रही महासंघही बन जाता है।।
जिस आचार के अभाव में महा संतोषी महा भिखारी बन जाता है।।
जिस अचार के अभाव में महा ध्यानी महा अज्ञानी बन जाता है ।।
जिस आचार के अभाव में महा निष्कपट महा कपटी बन जाता है ।।
श्री सतगुरु महाराज की जय सज्जनों अगला अंक भी लेकर आ रहा हूं इसको पूरा पढ़ें और नीचे में और भी सत्संग से जुड़े ढेरों आर्टिकल है पढ़ें और आनंद का अनुभूति ले और पूरा पड़ने पर कमेंट में जरूर चर्चा करें जिससे हमें एक प्रेरणा मिलेगा
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