जैसे समस्त शरीर का अवलंब पीठ की रीढ है।
वैसे ही समग्र धर्म का आधार यह तीनों आचार है।
रीढ को ही योग शास्त्र में मेरुदंड कहा गया है।
जैसे मेरुदंड में विकृति पैदा होने से
संपूर्ण शरीर विकृत हो जाता है ।
वैसे ही तीनों चारों में विकृति होने से
समस्त योग ध्यान व्यर्थ हो जाते हैं ।
मेरुदंड में ही सन्निहित समस्त चक्र
अथवा कमल है ।
वैसे ही तीनों अचारों पर आधारित
भक्ति योग और ज्ञान के समग्र अंग है।
कहा जाता है कि मेरुदंड के अंदर ही समस्त
चक्रों के देवता और चक्रों के वाहन अवस्थित हैं ।
तथा चारों के अंदर ही समस्त देव और सिद्धियां
तथा साधनों की गतिविधियां संबद्ध है।
मेरुदंड स्थित समस्त कमल दल में
एक एक बीज मंत्र अंकित रहते हैं।
उन बीज मंत्रों का करम करम से जप करके
कमल से संबंधित समस्त देवताओं को
साथ ही साथ पृथ्वी जल अग्नि हवा और
आकाश इन पंच भूतों को बस में कर लिया जाता है ।
तथा इच्छा अनुसार मिट्टी के अंदर दबे रहने पर भी
प्राण नियंत्रण करने की
शक्ति जल के अंदर डूबे रहने पर
भी प्राण जाए की शक्ति ,बिना सांस लिए ही हजारों वर्ष तक जीने की शक्ति
और आकाश में शरीर सहित गमन आगमन की शक्ति सबके मन की बातों को जान लेने की शक्ति,
सब के कर्मों को पहचान लेने की शक्ति
तथा और भी चकित कर देने वाली शक्तियां
एवं सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
कहने का तात्पर्य है कि ऊपर वर्णित
तीनों चारों उसके विधिवत पालन करने से
उल्लिखित समस्त सामर्थ्य सतत प्राप्त हो जाते हैं
हठयोग के अनुसार कुंडलिनी शक्ति एवं
राज योग के अनुसार चेतन शक्ति, मेरुदंड के अभ्यंतर ही सन्निहित है ।
उपर्युक्त शक्तियां मेरुदंड के सहारे ही नीचे से अर्थात मूलाधार से ऊपर की ओर चलती हुई
सहस्रार चक्र में पहुंचती है ।
तीनों चारों के पालन से अभ्यासी पिंड से
चेतन शक्ति का आरोहण कर परमात्मा
तक पहुंचता है ।
स्पष्ट है कि जितनी मजबूत रहती है सांसारिक कार्य करने में उतनी ही अधिक ताकत मिलती है ।
ठीक इसी प्रकार वर्णित तीनों चारों का जितना अधिक पालन होता है
उतना ही भजन करने में बल मिलता है ।
मेरू दंड के अंदर एक ऐसा धातु पाया जाता है
जिसके सहारे द्वारा समस्त शरीर की
अस्थियों का संरक्षण होता है ।
अन्यथा शरीर विकृत हो जाता
फिर वर्णित तीनों चारों के अंदर एक
ऐसी ऊर्जा होती है जिससे समस्त योगिक
प्रक्रिया का संरक्षण होता है ।
व्यक्ति की रीढ जब सड़ जाती है तो
लाखों उपाए करने पर भी शरीर जीवित नहीं रह सकता।
ऐसे ही तीनों अचार भक्तों से सड़ जाते हैं तो
उनके करोड़ों प्रयत्न करने पर भी
उनसे भक्ति नहीं हो पाती है ।
जिस आदमी की रीढ़ टूट जाती है
उसका सर्वदा के लिए शरीर बर्बाद हो जाता है ।
वैसे ही जिनके तीनों आचार के पालन में थोड़ी भी
त्रुटि रह जाए
अथवा आचार तनिक भी कलंकित हो जाए तो
समस्त धार्मिक क्रियाएं पाखंड का रूप धारण
कर लेती है ।
उदाहरण के लिए हिंसक जंतु शरीर के
अंगों को चबा चबा कर खा जाता है
परंतु मजबूत रीड को यूं ही छोड़ देता है।
खा नहीं पाता
उसी प्रकार संसार के दुष्ट लोग संसार के
सामान्य जनों को सता सता कर परीतप्त तो
कर देते हैं परंतु
प्रौढ़ आचार पुरुष की धवल कीर्ति को
मिटा नहीं सकते
बल्कि खुद मिट जाते हैं ।
जिसकी रीढ कमजोर होती है तो उसके
जीवन में सदैव खतरा बना रहता है।
वैसे ही जो साधक तीनों आचार के पालन में
कमजोर होता है
प्रायः देखा जाता है कि जब किसी व्यक्ति की
रीढ झुक जाती है तो
घर एवं समाज में वह उपेक्षा का पात्र बन जाता है।
वैसे ही आचार हीन पुरुष समाज में
सम्मान नहीं पाता ।
तीन जगह से टूट जाए तो आदमी तुरंत मर जाता है
वैसे ही तीनों चारों से जो मनुष्य हीन हो जाता है
वह तत्काल भक्ति पथ से भ्रष्ट हो जाता है ।
ऐसा भी देखा गया है कि जब
किसी की एक जगह की रीढ किंचित टूट जाए तो
किसी प्रकार आदमी का काम चल जाता है
वैसे ही एक सदाचार भी आदमी का यदि
सुरक्षित रह जाए तो किसी तरह वह
भक्ति पथ पर अग्रसर होता चला जाता है ।
।।श्री सतगुरु महाराज की जय ।।
सज्जनों स्वामी व्यासानंद जी महाराज का यह सारगर्भित वचन है ।
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