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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

सदाचार बिन सब बेकार भाग 2:स्वामी योगानंद

 
ईश्वर भक्ति में सदाचार का बड़ी आवश्यकता है 
सदाचार को ध्यान का बल है 
और ध्यान को सदाचार का बल है 
एक के बिना दूसरा नहीं बढ़ सकता है ।
दोनों में बड़ा मेल है
 जो संबंध भोजन में स्वाद का, फल में मिठास का ,फूल में सुगंध का, बीज में अंकुर का ,रेडियो में आवाज का है।
 वही संबंध ईश्वर भक्ति में सदाचार का है।
 ईश्वर भक्ति रूपी भवन का निर्माण सदाचार रूप दृढ़ आधारशिला पर ही संभव है ।
स्वामी आशानंद ने कहा है :-
भगवान का भजन हो और सदाचरण में शुद्धता नहीं हो
 तो वह भजन नहीं ढोंग है।
 बौद्ध दर्शन में सदाचार और सील का बड़ा महत्व है।
 बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले किसी गृहस्थ के  लिए किसी भी भिक्षु से त्रिशरण और पंचशील का ग्रहण आवश्यक है
 बुद्धम शरणम गच्छामि मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं ।
धर्मं शरणं गच्छामि मैं धर्म की शरण जाता हूं 
संघम शरणम गच्छामि मैं संघ की शरण जाता हूं।
 त्रिशरण के बाद पंचशील का विधान है जो इस प्रकार है :-
प्रणाती पाता वेरमणि शिक्खापादं समादियामी
 अर्थात मैं प्राणी हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूं।
(2) दूसरा आदिन्नादादा वेरमणि शिक्खा पदं समादियामी अर्थात में चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूं ।
(3)तीसरा कामे शुभेच्छा वेरमणि शिक्खा पदं समादियामी अर्थात में व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूं।
(4) चौथा मूसा बाद वेरमणि शिक्खा पदम समादियामी अर्थात मैं झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षण ग्रहण करता हूं ।
(5)पांचवा सुरा मेरय मज्जा पमादद्वानाज  वेरमणि शिखापदम समादियामी 
अर्थात मैं सुरा मैरेय और नशीली चीजों के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूं।।
 यदि कोई ऐसा सोचे कि पहले पूर्णता सदाचारी बनकर और तब ईश्वर भक्ति प्रारंभ करेंगे  ।
अथवा ईश्वर भक्त बन कर सदाचार का पालन करें ऐसा संभव नहीं है ।
ऐसी ही बातें हुई जैसे कोई सोचे पहले तैरना सीख लेते हैं तब नदी जल में प्रवेश कर लूंगा
 बच्चे बढ़ते हैं तो उनके सारे अंग प्रत्यांग एक साथ बढ़ते हैं।
 सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी 
महाराज का कथन है कि:-" जब तक किसी देश का आध्यात्मिक स्तर उत्तम और ऊंचा नहीं होगा
 तब तक इस देश में सदाचारीता ऊंची और उत्तम नहीं होगी 
जब तक सदाचारिता ऐसी नहीं रहेगी तब तक
 सामाजिक नीति अच्छी नहीं होगी
 जब तक सामाजिक नीति अच्छी नहीं होगी
 तब तक राजनीति अच्छी और शांति दायक नहीं होगी।
 बूरी सामाजिक नीति के कारण राजनीति शासन संभाल के योग्य हो नहीं सकेगी।
 और उस देश में अशांति फैली हुई रहेगी
 वेदांत केसरी स्वामी विवेकानंद जी के विदेश प्रवास काल में एक नवयुवती ने प्रेम करने की बात करते हुए स्वामी जी से निवेदन किया
 आपके साथ ही आपका ज्ञान लोप ना हो जाए इसलिए आपके सामान पुत्र हो
 सदाचार पर आरूढ़ भारत गौरव गरिमा के प्रतीक 
स्वामी विवेकानंद मुस्कुराते हुए बोले
 मां कोई जरूरी नहीं कि तेरे मेरे संपर्क से मेरे
 जैसे संपूर्ण गुण युक्त पुत्र हो 
लेकिन तेरे भीतर एक ही मांग की ज्वाला जल रही है
 कि आपके सामान पुत्र हो तो लो
 मां मैं ही तुम्हारे गोद में बैठ जाता हूं 
तू मेरी मां मैं तुम्हारा पुत्र ।
अर्जुन ने उर्वशी को इसी दृष्टि से निहारा 
छत्रपति शिवाजी ने अपने दुश्मन सेनापति बेलूर खान की बीवी को मां का संबोधन किया।
 मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने भाई लक्ष्मण से पूछा लक्ष्मण खिला हुआ फूल पका हुआ फल 
एवं सुंदर स्त्री को देखकर किसका मन चलायमान नहीं होता है।
 लक्ष्मण जी ने कहा पिता सदाचार परायण हो 
और माता पतिवर्ता हो इन दोनों के
 संयोग से उत्पन्न संतान का मन चलायमान नहीं होता है।
 आदि काल से ही सदाचारी ब्रह्मचारी एवं परोपकारी महापुरुषों के गौरव गाथा का देदीप्यमान इतिहास है।
 कबूतर प्राण रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस
 देने वाले राजा शिवि याचक के लिए अपने प्राण का मोह छोड़कर कवच कुंडल दान देने वाले दाता।
 कर गौ रक्षा के लिए अपना शरीर समर्पित करने वाले राजा दिलीप
 देवगनो के हितार्थ अपनी अस्थियों का दान देने वाले दधीचि
 भूखे को अन्न जल दान करने वाला स्वयं भूखे रंतिदेव 
सत्य की रक्षा करने वाले हरिश्चंद्र से
 इतिहास भरा पड़ा है।
 स्वामी गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा कि
"शिवि दधीचि हरिश्चंद्र नरेसा। सहे धर्म हित कोटी कलेसा।।
 रंतिदेव बली भूख सुजाना ।धर्म धरेउसहि  संकट नाना ।।"
किसी कवि ने कहा है गौतम ,जाबालि, व्यास, वामदेव बाल्मीकि, कपिल, कनाद से महान ब्रह्म ज्ञानी थे ।
अर्जुन से वीर, अमरीश से महान भक्त ,करण हरिश्चंद्र के समान यहां दानी थे ।
नारद से संत ,सती सीता अनसूया सत्य सदाचार ,पूर्ण एक एक प्राणी थे।।
 ऐसा था भारत के भाग का अतीत काल सुयस
 यहां के देवलोक की कहानी थे।
 अतः सदाचार पालन करते हुए ईश्वर भक्ति प्रारंभ करें।।
 संत कबीर साहब ने कहा है
" गिरी से गिरी पर जो गिरे मरे एक ही बार।
 जो चरित्र गिरी से गिरे बिगड़े जन्म हजार ।"

जीवन मुक्ति का पहला पाठ है विकार पर विजय पाना ।।
यही सदाचार का अभ्यास है 
और धर्म का मार्ग भी ।।
विकारों का दमन सदाचार से ही संभव है ।
संसार में भ्रष्टाचार से मुक्त करना है तो सदाचार की सुरसरि में वाहन की झलक हो
 वह कैसे हो
 यह प्रश्न है
 यह बहुत आसान है और अत्यंत कठिन भी है 
यदि धर्म परायणता की उत्कट अभिलाषा मन में हो तो सदाचार आपके साथ रहेगा
 वृत्तीय सद्भावना की ओर खींचेगी
  चित्र मानवता से भर जाएगा, भ्रष्टाचार और हिंसा की समस्याओं का हल सदा से ही हो सकता है।
 विकारों को दूर किए बिना सदाचार की बात नहीं हो सकती।
 काम क्रोध मद लोभ मोह को त्यागना और धर्म अनुकूल आचरण यह श्रेष्ठ चरित्र है 
और मनुष्य की ताकत यही है
 इस युग में हर व्यक्ति सिकंदर की तरह वासनाओं से प्रीत है।
 यह मनुष्य का पतन है।
 मृत्यु से पूर्व सिकंदर को ज्ञान हो गया
 उसे जीवन का रहस्य का पता चल गया
 लेकिन तब तक देर हो चुकी थी
 त्याग करना ,परोपकार करना, दया करना, दान करना अच्छा है
 श्री सतगुरु महाराज की जय

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