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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

सदाचार भाग 3:स्वामी व्यासानंद

अंगद जी ने रावण से कहा था 
कौल कामबस कृपण बिमूढा।
  अति दरिद्र अजसी अति बूूढ़ा ।।
  सदा रोगबस संतत क्रोधी।
 विष्णु विमुख श्रुति संत बिरोधी ।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी ।
जीवत सब समचौदह प्राणी ।।
(श्री रामचरितमानस)
अर्थात- बाम मार्गी,कामी ,कंजूस ,अत्यंत मूर्ख, 
अत्यंत दरिद्र ,बदनाम ,बहुत बृृद्ध ,सदा के रोगी,
 अहर्निश क्रोध करने वाला ,भगवान
 विष्णु से विमुख ,वेद और संत का विरोध करने वाला 
अपने ही पेट को पालने वाला,
 दूसरे की निंदा करने वाला और 
पाप का खान ।यह सब जीते जी मृतक के समान है।
 झूठ रूपी राक्षस विश्वास को खा जाता है ।
चोरी रूपिणी राक्षसी अपनत्व को खा जाती है ।
नशा रूपी राक्षस दिमाग और सौहार्द को खा जाता है ।
हिंसा रूपी राक्षसी करुणा और दया को खा जाती है।
 व्यभिचार रूपी राक्षस चरित्र को खा जाता है।
 इसे इस प्रकार भी जाना जा सकता है ।
#असत्य भाषण :-
सत्य और विश्वास के मार्ग पर चलने की शक्ति खत्म कर देता है।
# चोर कर्म:-
 निर्भयता और आत्मबल को समाप्त कर देता है ।
#नशा सेवन :-
सत्कर्म और सत्य संकल्प की शक्ति को नष्ट कर देता है ।
#हिंसा कर्म:- आत्मीयता और आत्मानंद को मिटा देता है ।
व्यभिचार:-
 भजन के उमंग को और उत्साह को सत्यानाश कर चेतन के उर्ध्व गमन करने की शक्ति को क्षय कर देता है ।
साथ ही भक्ति के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है ।
हम पंच पाप को 1 कंस के पांच पहलवान के रूप में 
जान सकते हैं।
 जिन्हें चानूर, मुस्टिक, शल, तोशल और कूट भी कहते हैं।। इन पंच पहलवान के ऊपर कंस को पूर्ण भरोसा था कि 
जब तक यह जीवित रहेंगे तब तक 
मेरी रक्षा करते रहेंगे ।
अर्थात मुझे मरने नहीं देंगे ।
और इन को मारने वाला ही मुझको भी मारेंगे ।
इसका भी दृढ़ विश्वास मुझे हो जाएगा।
 और यही हुआ भी ।
जिन्होंने इन पांचों को मारा उन्हीं के द्वारा कंस का वध हुआ।
 परंतु इन पांचों पहलवानों को भगवान के 
अलावा कोई नहीं पछाड़ पाया।
 अर्थात जो इनको पछाड़ देगा वह
 भगवान के ही समान होगा।
 अर्थात इनको पछारने वाला भी
 भगवान कहलाएगा अथवा इनको पछाड़ने 
  पर ही कोई भगवान बन पाएगा ।
संत लोग इन पहलवान को पछाड़े हुए होते हैं ।
इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने
 विनय पत्रिका में लिखा है 
"संत भगवंत अंतर निरंतर नहीं ,
कीमपि  मति विमल कह दास तुलसी।।"

 संत को भी अनघ कहते हैं 
और भगवंत को भी अनघ कहते हैं ।
इसलिए दोनों में कोई अंतर नहीं है।
 भागवत में वर्णन हुआ है कि अकेले ही
 भगवान ने पांचों पहलवानों को नहीं मारा था।
 उनके  साथ में बलराम भी थे 
तीन पहलवानों को भगवान श्री कृष्ण ने मारा 
और दो पहलवानों को बलराम जी ने मारा था।
 पांचों में तीन थे चानूर ,तौसल, व कूट और
 दो थे मुस्टिक और शल।
इन प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण को परमात्मा मान लीजिए और बलराम जी को संत मान लीजिए 
चानूर = झूठ को, तौशल=चोरी को, कूट =नशा को,
 मुस्टिक =बड़ा अहिंसा को, और शल=व्यभिचार को कह सकते हैं ।
कहने का अर्थ है कि जब संत की कृपा से 
भगवंत का भजन होगा 
तब यह पाप खत्म होंगे ।
अन्यथा किसी भी उपाय से पाप नष्ट नहीं होंगे
 हमारे परम संत सद्गुरु महर्षि मेंही 
परमहंस जी महाराज ने पदावली में लिखा है
:-" सत्संग नित्य अरु ध्यान नृत्य रहिए करत संलग्न हो।
 व्यभिचार चोरी नशा हिंसा झूठ तजना चाहिए।।"

 नित्य सत्संग करने से संत की कृपा होगी और
 निरंतर ध्यान करने से ईश्वर की भक्ति होगी 
और जब यह दोनों होगी तब 
धीरे-धीरे व्यभिचार चोरी नशा हिंसा और झूठ स्वतः खत्म होंगे

 तभी मन रूप कंस मरेगा और 
जीव निर्मल होकर ब्रह्म को प्राप्त करेगा।।
 कंस इन्हीं पांचों के बल पर इतराता था
 और इन्हीं के सहारे संसार के समस्त बलवान 
राक्षस को अपना अनुवर्ती बनाया था ।
कंस जिस दैत्य को जो आदेश करता था
 वह राक्षस तुरंत उस आज्ञा का पालन करता था 
कंस बड़ा चतुर था
 वह अन्य राक्षस को युद्ध के लिए 
जहां-तहां भेजता था 
परंतु वर्णित पहलवान को कहीं नहीं भेजता था
 उसे विश्वास था कि इनके रहने से
 वह भेजे गए राक्षस फिर से मेरे पास 
लौट कर आ जाएंगे और
 इनके जाने पर सभी राक्षस समाप्त हो जाएंगे 

भगवान श्री कृष्ण कंस द्वारा प्रेरित राक्षस को
 तो ब्रज में मारते रहे पर
 वर्णित पहलवान को मारने के लिए 
कंस की राजधानी मथुरा गए 
ये कंस की राजधानी त्रिकुटी में है
 वहीं से मन समस्त विकार को
 आज्ञा चक्र से नीचे जहां समस्त इंद्रियों का
 समुदाय( गो= इंद्रिय ,कुल =समस्त अर्थात गोकुल है)
 वहां अज्ञानी जीवो को सताने के लिए भेजता है।
 भगवान ने सोचा कि गोकुल में रहूंगा 
तो यहां मन रूपी कंस द्वारा प्रेरित राक्षस
 आते ही रहेंगे ।
इसलिए जहां से मन रूपी कंस खूरखून्द करता है
 वहीं पहुंचकर सबको मारता हूं।
 भगवान श्री कृष्ण ने चित्त वृत्ति निरोध
 रूप रथ पर आरूढ़ होकर 
संत रूपी बलराम जी और सद्भावना रूपी
 अक्रूर जी के साथ पिंड रूप गोकुल से
 निकलकर ब्रह्मांड स्थित त्रिकुटी चक्र अर्थात 
मथुरा में पहुंचकर यम नियम आदि रूपी दिव्य परिधानों को पहनकर 
एवं सद्भक्ति रूपी अंगराग का मस्तक में 
लेपन कर पिंड अंधकार रूपी राक्षस की नगरी पर विजय प्राप्त कर अर्थात
 जयमाला पहनकर सर्वप्रथम मन रूपी कंस के
 अंदर जो अहंकार रूपी भयंकर धनुष है
 उसको खंडित किया 
जड़ता रुपी कुवालिया पीर हाथी को समाप्त किया
 फिर समस्त पापों से भरे मन रूपी कंस के पास 
जाकर पहले उसकी पाप मयी
 वृत्ति को नष्ट किया और
 तब वैराग रूपी ढाल और संतोष रूपी
 तलवार लेकर उनसे घनघोर युद्ध किया।
 इसके बाद अंतर्नाद की साधना रूपी
 शंखध्वनि  के प्रचंड उद्घोष द्वारा उनकी समस्त
 चंचल प्रकृति को नष्ट कर उसके अस्तित्व
 को भी नष्ट कर डाला इतना कुछ पापड़ बेलने पर
 भी त्रिकुटी में रामप्रताप रूप सूर्य का उदय होता है 
और फिर 
अघ उलूक जहां-तहां लुकाने  की स्थिति 
प्राप्त होती है ।
यदि कोई चाहे की चुटकी बजाकर पंच पापों से मुक्त हो जाएंगे तो 
यह कभी संभव नहीं है ।
आप सारे जीवन चुटकी बजाते रहेंगे ।
और आपका मन सब दिन पापों को करता रहेगा
 कमजोर आदमी अपने को बलवान बनाने के लिए पोस्टिक आहार लेता है।
 बिना पोस्टिक आहार लिए कोई भी कितना
 दंड बैठक मारेगा पर वह पहलवान नहीं बन सकेगा ।
साथ ही पौष्टिक आहार के बगैर जो कुछ भी
 पहले का खून शरीर में रहेगा 
कसरत करते-करते सूख जाएगा
 वह पहलवान क्या खाक बनेगा 
जवानी में ही खाट पकड़ लेगा ।
इसी प्रकार से जो भजन अभ्यास में
 बिल्कुल कमजोर है उसे 
सर्वप्रथम पंच पापों के त्याग रूपी पोस्टिक रसायन का सेवन करते रहना चाहिए ।
और साथ ही साथ अभ्यास रूपी दंड बैठक भी लगाना चाहिए 
इस प्रकार दोनों को दोनों से ताकत मिलेगी
 परमाराध्य  महाराज सतगुरु महाराज कहते थे:-
 सदाचार पालन किए बिना साधना नहीं हो पाएगी
 और साधना किए बगैर सदाचार पालन में बल नहीं मिलेगा
 एक के बिना एक कमजोर रहेगा 
सदाचार का पालन करने से ध्यान करने में सहायता मिलेगी और
 ध्यान करने से सदाचार पालन में बल मिलेगा।।
 इसलिए इन दोनों का अभ्यास साथ साथ  करना चाहिए और जो केवल ध्यान करते हैं 
सदाचार का पालन नहीं करते हैं
 उनके ध्यान की कमर टूट जाएगी अर्थात 
उनका ध्यान केवल दिखावे के लिए होगा।
 यथार्थ में नहीं जो चाहते हैं कि पहले हम पापों को छोड़ देते हैं 
फिर ध्यान करेंगे तो उनकी या चाहना भी धरी की धरी रह जाएगी
 ना तो ध्यान के बिना सदाचार के पालन में बल मिलेगा और
 ना वह कभी ध्यान कर पाएगा।।

 दुराचार करने से मन बलवान होता है
 और सदाचार पालन करने से
 आत्मबल बढ़ता है।।
 कदाचार के पालन से मन की ताकत बढ़ती है।
 और सदाचार के पालन करने से
 आत्मा की ताकत बढ़ती है ।
इसको हम ऐसे भी कह सकते हैं कि
 पापाचार  से मन प्रबल होता है 
और सदाचार से मन निर्मल होता है
 बलवान मन पाप करता है और 
निर्बल मन सदाचार का पालन करता है।
 भगवान को पंचमेवा का भोग लगता है 
कहते हैं कि इससे हमारे भगवान संतुष्ट होते हैं 
मन रूपी भगवान को इन पंच पापों का
 भोग लगता है अर्थात 
पंच दिशाओं का भोग लगता है ।
इससे मन रूपी भगवान खुश रहते हैं ।
पांच प्रकार के देवता की पूजा होती है
 और पंचपापो से मन देवता की आराधना होती है ।
पुण्यात्मा पुरुष भगवान को प्रसन्न करने के लिए 
पंचमेवा के द्वारा पंचोपचार के द्वारा और 
पंच प्रयाग के द्वारा उनकी उपासना करते हैं।
 और पाप आत्मा पुरुष मन भगवान को प्रसन्न करने के लिए
 झूठ चोरी नशा ही नशा और व्यभिचार रूपी 
पंचमेवा और 
पंच विषय:- रूप ,रस, गंध ,स्पर्श ,और शब्द 
इन विधियों से उनकी अर्चना करता है।।
 सदाचार भाग 3 पूरा पूरा पढ़ने के लिए 
आपका सहृदय आभार व्यक्त करता हूं
 और एक निवेदन करता हूं कि आप इस 
ब्लॉग को follow करें ।।
।।जयगुरू ।।

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