प्यारे लोगो !
सब सत्संगी तथा सत्संगिनीगण को चाहिए कि जैसे किसी एक सुयोग्य राजा की छत्र - छाया में रहकर प्रजा आराम से रहती है , इसी तरह इस सन्तमत के ज्ञानरूपी छत्र - छाया में रहते हुए आप सब लोग शान्ति प्राप्त करें और बराबर सत्संग करें तथा खुशी से रहें।
सन्तमत का उपदेश छोटा - सा है , बहुत बड़ा नहीं है।
वह उपदेश यही है कि ईश्वर की खोज अपने अन्दर करो।
बाहर में ईश्वर नहीं मिल सकते।
जो ईश्वर की खोज के लिए बाहर संसार में दौड़ते हैं , वे केवल हैरान होते हैं।
सन्तों ने जो अन्तर का भेद बताया है , उसमें जप है और ध्यान है।
उसी काम के द्वारा अन्तर्मुख हो सकते हैं।
अन्तर्मुख होने के लिए लोगों को जैसा गुरुओं ने बताया है , बाहर देखना छोड़कर अपने अन्दर में देखो।
सम्पूर्ण दिन - रात ऐसा हो , सो तो हो नहीं सकता , इसलिए समय बाँध - बाँधकर करो।
जप और ध्यान करने से आवरण छूटेंगे और आवरणों के छूटने से अपने अन्दर में ईश्वर का प्रत्यक्ष - ज्ञान या दर्शन होगा।
यह दर्शन बाहरी - दर्शन की तरह आँखों से नहीं , आत्मा से होगा।
चेतन - आत्मा अन्दर में मायिक - आवरणों से छूटकर जब अकेली ही जाएगी , तब उस आवरण - रहित चेतन - आत्मा को ईश्वर का प्रत्यक्ष - दर्शन होगा कि - ' जानत तुम्हहिं तुम्हइ होइ जाई।'
जो इस तरह ईश्वर को जान लेगा , वह ईश्वर - स्वरूप हो जाएगा।
वह आवागमन के चक्र से छूट जाएगा।
इस वायु - मण्डल से छूटकर फिर कभी इस दुःख - सुखमय संसार में नहीं आएगा।
मैं अपनी ओर से आप सब लोगों को आशीर्वाद देता हूँ कि आपलोग सुखी रहें , सत्संग और ध्यान करें।
आपलोग अपने घरों को जायें और घर के कामों को करें।
जो काम अभी यहाँ करना है , एक - एक आदमी आकर प्रणाम करें , ऐसा होना असम्भव है।
इसमें कितना समय लगेगा , सो विचार लीजिए।
बुढ़ापे और रुग्नावस्था के कारण मेरी शक्ति से बाहर है कि मैं यहाँ घण्टों बैठा रहूँ।
इसीलिए आपलोगों से क्षमा चाहता हूँ।
प्रवचन को पढने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार ।
यह प्रवचन को अधिक से अधिक शेयर करें जिससे और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके ।
Jai guru
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