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शनिवार, 30 मई 2020

संत सदगुरू महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी :घर माहै घर निर्मल राखै

 संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज बीसवीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ने कहा कि बाहर भटकने का कोई जरूरी नहीं है प्रभु का भक्ति हम घर में बैठकर ही कर सकते हैं लेकिन घर में जब रहते हैं तो घर को स्वच्छ रखें और अपने निजगढ़ जो है उसको भी स्वच्छ रखिए और उसमें प्रभु का बास कैसे हो तो सद्गुरु के द्वारा बताए गए रास्ते पर चलिए और भजन कीजिए सज्जनों आइए उन्हीं के वचनों को विस्तार से पढ़ते हैं और जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं

मैं क्या कर रहा हूँ, यह कल से आप सज्जनों को विदित हो रहा है। मैं भागलपुर के लिए नया आदमी नहीं हूँ। 
मैं 1909 ई० के पहले से यहाँ आता हूँ। यह प्रचार, जिसे मैं कर रहा हूँ, ईश्वर-भक्ति का है। इसका आधार संतों का वचन है। 
ईश्वर भक्ति में तीन बातें खास कर ली जाती हैं - स्तुति, प्रार्थना और उपासना। इन तीनों को छोड़कर कोई ईश्वर की भक्ति में गुजर नहीं सकता।
 स्तुति कहते हैं - ईश्वर की मर्यादा के गुण-गान को, बड़प्पन का वर्णन करने को। इससे श्रद्धा उपजती है और अपने लिए मालूम होता है कि यदि वे मुझे मिलें तो मैं सारे कष्टों से छूट जाऊँ। ऐसा होने से मन में होता है कि कैसे मिलेंगे? इससे उसको प्रेम होता है और उससे मिलने के लिए जो यत्न करता है, वह भक्ति होती है। ईश्वर प्राप्ति के विषय में संत कबीर साहब का पद है - घूँघट का पट खोलो, तो तुमको प्रभु मिलेंगे -

घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे। 
घट-घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे।। 
धन यौवन का गर्व न कीजै, झूठा पँच रंग चोल रे। 
शून्य महल में दियना बारि ले, आशा से मत डोल रे।।
 जोग जुगत से रंग महल में, पिय पायो अनमोल रे। 
कहै कबीर आनन्द भयो है, बाजत अनहद ढोल रे।। 
          - सन्त कबीर साहब
तात्पर्य यह कि इस शरीर में चेतन आत्मा है। उसके ऊपर जड़ आवरण पड़े हैं।
 जड़ आवरण भी एक नहीं, चार हैं - स्थूल, सूक्ष्म, कारण और महाकारण।
सूक्ष्म शरीर या लिंग शरीर के विषय में बहुत लोग जानते हैं। कथा है सावित्री - सत्यवान की। इससे पता चलता है कि सूक्ष्म शरीर भी है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने पाण्डवों को शिक्षा दी है और कहा है कि लोग जैसे सींक को खींचकर पूँज देखते हैं, उसी तरह योगी चेतन आत्मा को देखता है। चेतन आत्मा के ऊपर पहले महाकारण, फिर कारण और सूक्ष्म, फिर स्थूल - ये चार जड़ावरण हैं। 
इन आवरणों से अपने को (चेतन आत्मा को) पृथक कर लो, तो परमात्मा मिलेंगे।
 संत पलटू साहब ने कहा है -
साहिब साहिब क्या करै, साहिब तेरे पास।। 
साहिब तेरे पास याद करु होवे हाजिर। 
अन्दर धसि के देखु मिलैगा साहिब नादिर।। 
मान मनी हो फना नूर तब नजर में आवै।
 बुरका डारै टारि खुदा बाखुद दिखरावै।। 
रूह करै मेराज कुफर का खोलि कुलाबा। 
तीसो रोजा रहै अंदर में सात रिकाबा।। 
लामकान में रब्ब को पावै पलटू दास।
 साहिब साहिब क्या करै, साहिब तेरे पास।।
इस बुरके को हटाओ, तो प्रभु मिलेंगे।
 यही बुरका, नकाब या आवरण है।

 इसी को संत दादू दयालजी महाराज ने कहा -
घर माहैं घर निर्मल राखै, पंचौ धोवै काया कपरा।।

चार जड़ के और एक चेतन का - इन पाँचों को उतारा। पाँचवाँ आवरण तो चेतन चोला है। इस स्थूल शरीर रूपी घर के अन्दर जो सूक्ष्म शरीररूप घर है, उस घर को पवित्र रखो। स्थूल शरीर को जल से धोओ। सूक्ष्म शरीर तब धुलता है, जब इसपर के स्थूल का आवरण उतरता है। कारण तब धुलता है, जब इसपर से सूक्ष्म का आवरण उतरता है। महाकारण तब धुलता है, जब इसपर से कारण शरीर का आवरण उतरता है और कैवल्य (चेतन) तब धुलता है, जब इसपर से महाकारण का आवरण उतरता है।
इस पाँचों आवरण उतर जाने पर प्रभु छिपकर नहीं रहते। जैसे पलक का आवरण उठाने पर या किसी के मोतियाबिन्द के पत्थर को निकाल देने पर सूझने लगता है,
 उसी तरह जीवात्मा के ऊपर से आवरण हट जाने पर परमात्मा दीखते हैं।
 संत तुलसी साहब ने कहा -
है नेरे सूझत नहीं ल्यानत ऐसो जिन्द। 
तुलसी या संसार को भयो मोतियाबिन्द।।

जीवात्मा को जिसका ज्ञान पहले नहीं था, चेतन दशा में होने पर उसका ज्ञान होने लगता है। किसी का घात मत करो। 
कटुवचन से हिंसा होती है।
जैसे तलवार से काटते हैं, उसी तरह वचन से भी लोग पीटते हैं, काटते हैं।
 पुनः संत कबीर साहब ने कहा - संसार के धनयौवन का घमण्ड मत करो।
यह शरीर रूप पंचरंगा चोला झूठा है। संत कबीर साहब शून्य में ध्यान करने की युक्ति बताते हैं। भगवान श्रीकृष्ण भी बताते हैं - ‘पहले संपूर्ण शरीर का ध्यान करो, फिर चेहरे का, फिर शून्य में ध्यान करो।' 
इसी शून्य का ध्यान करने के लिए संत कबीर साहब ने कहा -
शून्य महल में दियना बारि ले, आशा से मत डोल रे।।
इसका लक्ष्य बहुत छोटा होना चाहिए। वही परम विन्दु है। जैसा विन्दु बाहर में स्थापित करते हो, वस्तुतः विन्दु वैसा नहीं होता। इसके लिए संतों ने कहा - आँखें बन्द करते हो, वही कागज के सामने देखने में आता है। 
अन्धकार-ही-अन्धकार नजर आता है। पेन्सिल रखो, ख्याल मत करो कि वहाँ क्या होगा? पेन्सिल रखते ही चिह्न होता है, उसी प्रकार दृष्टि की नोक जहाँ स्थिर होगी, वहीं कुछ उदित हो जाएगा। इस प्रकार कुछ ख्याल किए बिना दृष्टि को स्थिर करो, अपने ही आप उदित होगा। 
निराशा देवी की गोद में मत जाओं नाउम्मीदी की गोद में मत बैठो। जो नाउम्मीदी की गोद में बैठते हैं, उनसे होनेवाला काम भी नहीं होता है।

बिना विन्दु के रूप मण्डल नहीं बन सकता। 
विन्दु को पकड़कर स्थान पर पहुँच जाना बहुत बड़ी बात है।स्थूल से ऊपर उठा, गोया एक घूँघट उतर गया। यह पहला विन्दु है। जहाँ तक आकाश है, वहाँ तक शब्द है। इसलिए साधक को चाहिए कि उसको पकड़े।
शब्द साधना से सृष्टि के अंत तक जाना होता है।
शब्द दृश्य से ऊपर का पदार्थ है। कुछ बनने के पूर्व शब्द हुआ। शब्द तीन प्रकार के होते हैं - इन्द्रियमय, मनोमय और प्राणमय। इसको बहुत गहरे ध्यान से जानने की आवश्यकता है। शब्द की उत्पत्ति अशब्द से है और लय भी अशब्द में ही है। जो आँख से देखने की शक्ति रखता है, वह उससे वह देखता है, जो रूप है। इसी कारण
 संत तुलसी साहब ने कहा है -
हिय नैन सैन सुचैन सुन्दरि। साजि स्रुति पिउ पै चली।
अर्थात् अंतरात्मा सुरत को सजाकर प्रभु से मिलने चली। इस साधन में सहायक जप है, फिर ध्यान। ध्यान में रूपध्यान भी है और अरूप ध्यान भी।
बंदउँ राम नाम रघुवर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।। विधि हरि हर मय बेद प्रान सो।
 अगुन अनूपम गुन निधान सो।।
नाम की महिमा का वर्णन संत कबीर साहब ने भी बहुत अच्छा किया है।
 योगशिखोपनिषद् में कहा - 'अक्षरं परमो नादः शब्दब्रह्मेति कथ्यते।' 
नाम दो प्रकार का होता है। एक वचन में आता है, दूसरा श्रवण में आता है। जो मुँह से बोलते हैं, वह वर्णात्मक है और जो वर्णों में लिखा नहीं जाता, जिसकी ध्वनि होती है, उसे ध्वन्यात्मक कहते हैं।
शब्द में गुण होता है कि सुननेवाले को वह अपने उद्गम स्थान पर ले आता है और उसक मूल में जो गुण रहता है, उसको लिए रहता है और सुननेवाले को उससे गुणान्वित करता है। एवम् प्रकार से शब्दसाधना के द्वारा ईश्वर तक पहुँचा जाता है।
।।श्री सद्गुरु की जय।।
 इस प्रवचन को आपने पूरा पढ़ लिए और पूरा पढ़ने के बाद आपको एक अलग ही अनुभूति हुई होगी क्योंकि सदगुरु महाराज का प्रवचन साधना भक्ति ज्ञान और योग युक्त वाणी है और इसको पढ़कर जीवन में उतारने से जीवन धन धन होता है जीवन में सुख ही सुख होता है और इसी तरह का और भी प्रवचन पढ़ने के लिए फॉलो करना ना भूलें और इसके साथ ही कमेंट में जय गुरु अवश्य लिखें इससे हमें भी मोटिवेशन मिलेगा कि आप लोग आकर के पूरा पूरा पढे हैं

3 टिप्‍पणियां:

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श्री सद्गुरवें नमः आचार्य श्री रचित पुस्तक "पूर्ण सुख का रहस्य" से लिया गया है।एक बार अवश्य पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇👇 : प...