घर परिवार से दूर हूँ मैं
खाने को दाना ना पानी हैं
भूख से कट रहा जिन्दगानी हैं ।।1।।
कहने के लिए सरकार हैं
मुझसे कोई नहीं सरोकार है
आज तो रोटी के लिए मोहताज हैं
दुःख के बाद नेता का आगाज हैं ।
हाँ हाँ मजदूर हूँ मैं घर परिवार से दूर हूँ मैं ।।2।।
कोई नहीं देखने वाले हैं
सब मौके की तलाश कर रहे
सब मुँह से छीनने वाले निवाले हैं
क्या कहूँ बोलने का दम नहीं रहा
हम मजदूर तो भोले-भाले हैं ।
मेरा सिर्फ़ इतना कसूर है
नाम में टैग लगा जो मजदूर हैं ।।3।।
जीवन बचाने की आस में घर को चला हूँ
किसे सुनाऊं,कौन सुने,सब कहने वाले हैं
राह चलते चलते कितने दिनों से भूखा हूँ ।
कितना मील दूर चला हूँ पैर में पर गये छाले हैं
मेरा छोटा बच्चा भूख से तरफ रहा है ,क्या कहूँ
अब तो हम इस दुनिया से जानेवाले हैं ।
कोई नहीं देखने वाले हैं।मजदूर जो हूँ ।।4।।
अगर सड़क चलता हूँ तो पुलिस मारते हैं
जिस वस्ती से गुजरू वहां के लोग हरकारते हैं
लगा अच्छा होगा रेलगाड़ी के पटरी के बगल
कर लेंगे अपने गाँव तक का सफर
सुनो मेरा अब जिंदगी का दर्दनाक कहानी
भूख लगा था सब पटरी पर बैठ कर खाया
सूखा चूड़ा और पी लिया थोड़ा पानी
बहुत थका था सोचा यहीं थोड़ा आराम करते हैं
पटरी पर ही सो गये ,कुछ देर में रूप विकराल देखते हैं ।
सब को ट्रेन ने काट दिया, जगने पर वीरान देखते हैं ।
एक अभागे मैं बच गया, कैसे खून से लथपथ श्मशान देखते हैं ।।5।।
अब तो 'तरूण' एक हस्र होगा ,मीडिया के सामने लाया जायेगा
सब अपने फायदे के लिए फिर हमें मोहरा बनायेगा ।
ये सिलसिला कब से चला ,लगता है फिर चलता रह जायेगा
जैसे काम खत्म हुआ, सब तेरा नाम भी भूल जायेगा ।।
कसूर सिर्फ इतना ही मजदूर हूँ
घर परिवार चलाने के लिए दूर हूँ ।।6।।
✍✍✍तरुण यादव रघुनियां ✍✍✍
(मधेपुरा बिहार )
आज कमेंट्स के लिए नहीं कहूँगा आपकी मर्जी
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