महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के प्रिय
शिष्य और हृदय स्वरूप महर्षि शाही स्वामी जी महाराज का अमृत वचन आप सज्जनों के लिए प्रस्तुत है
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जरूर ही आप को अध्यात्मिक ज्ञान का विकास होगा
आइए
✍✍उपस्थित सत्संग प्रेमी महानुभावों माताओं एवं बहनों― अभी पाठ में रामचरित-मानस के लंका कांड के अंतर्गत राम- रावण युद्ध के प्रसंग में धर्म-मय रथ का वर्णन आया।
युद्ध भूमि में रावण रथ पर था और श्री राम जी पैदल थे ।
यह देखकर भी भिविषन जी को आशंका हुई , इस दुर्जय शत्रु रावण को श्री राम जी इस तरह कैसे पराजित कर सकेंगे। उन्होंने अपनी आशंका श्री राम जी से व्यक्त की ।
श्री रामजी ने कहा कि हे सखा ! जिस रथ से जीत होती है! वह रथ दूसरा ही है।
वीरता और धैर्य उस रथ के पहिए हैं । सत्यता मजबूत ध्वजा है,शीलता पताका है, विवेक इंद्रिय संयम और परोपकार घोड़े हैं । यह घोड़े क्षमा कृपा और समता को रस्सी से जुड़े हुए हैं ईश्वर की भक्ति सारथी है,बैराग्य ढाल और संतोष तलवार हैं ।
दान परशु; ज्ञान बर्छी और अनुभव ज्ञान कठिन धनुष है। नियंत्रित मन तरकस और शम, यम, नियम तीर हैं ।
ब्राह्मण-गुरु की पूजा कवच है । ऐसा धर्म रथ जिसको है।
उसे जीतने के लिए कोई शत्रु नहीं है।
" सुनहु सखा कृपा निधान ।
जेही जय होय स्यनंदन आना।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका।
सत्य शील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल विवेक दम परहित घोड़े।
क्षमा कृपा समता रजु जोरे ।।
ईस भजन सारथी सुजाना ।
विरति चर्म संतोष कृपाना ।।
दान परसु बुद्धि शक्ति प्रचंडा।
बर विज्ञान कठिन कोदंडा ।
अमल अचल मन त्रोन समाना।।
सम यम नियम सिली मुख्य नाना।
कवच अभेद विप्र गुरु पूजा ।
ऐही सम विजय उपाय न दूजा।।
सखा धरम मय अस रथ जाके।
जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताके ।।..........
आगे श्रीराम जी ने कहा–
महा अजय संसार रिपु, जीत सकइ सो वीर ।
जाके अस रथ हो दृढ़, सुनहु सखा मति धीर।।
अर्थात―
हे मतिधीर धीर सखे !सुनिये, जिसको ऐसा रथ है।
वह महा अजय संसार-रुप शत्रु को जीत सकता है।
महा अजय संसार रेपु अर्थात दुर्जय संसार रूप शत्रु क्या है । आवागमन का चक्र ही संसार रिपु है ,जो जन्मने और मरने की झंझट से सदा के लिए छूट गया यथार्थ वीर वही है।........ जिति चला भाव-सागरा सोई सूरा मर्दाना हो ।"
आवागमन का दुख सर्वोपरि है और समस्त दुखों को उत्पन्न करने का कारण है संसार में कुछ बन कर रहीये है ।
मृत्यु का भय बना ही रहेगा। बलवान, धनवान, बुद्धिमान, विद्वान या संसार पति ही बनकर कोई क्यों ना रहिये मृत्यु किसी के प्रति दया भाव नहीं रखती।
तब लगि कुशल न जीव कहँं सपनेहु मन विश्राम ।
जब लगी भजत ना राम कहँ सोक धाम तज़ि काम।।
(गोस्वामी तुलसीदास जी)
कुशल कुशल के पूछते,जग में रहा न कोय ।।
जड़ा मुई ना भय मुआ, कुशल कहां तेे होय ।।
(सन्त कबीर)
लोग कहते हैं कि मृत्यु काल में दस हज़ार बिच्छूओं के डंक मारने जैसी असहनीय पीड़ा होती है।
जन्म-काल में तो उससे भी अधिक दुख होता है।
दरअसल बात क्या है,कहना कठिन है । लेकिन जन्म-जन्मांतर से हमारे अंतःकरण पर जन्म-मृत्यु का जो भय-संस्कार अंकित हो गया है, उसी से हम डरते रहते हैं। संतवाणी कहती है।
कि आवागमन से बचने के लिए इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करने का संकल्प करो ।
कठोपनिषद में कहा गया है कि
यदि इस जन्म में ब्रह्म को जान लिया, तब तो ठीक है,और अदि इस जन्म में ब्रह्म को नहीं जाना तो बड़ी भारी हानि हैं ।
इह चेहवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहवेदिनमहन्ति विनष्टि:।
भूतेषु भूतेषु विचित्य धीरा: प्रेतयास्माल्लोकादमृता भवन्ति ।।
यह हरगिज़ मत सोचिए की मुक्ति अगले जन्म में प्राप्त करने की चीज है ।
पुत्र धन और प्रतिष्ठा इसी जन्म में चाहिए, और मुक्ति अगले जन्म में ! चाहिए ? यह कैसी बात ! मुक्ति क्या बुरी चीज है, जिसे टालते जाएं,मुक्ति की आवश्यकता ठीक-ठीक समझिए और उसके लिए इसी जन्म में प्रयत्न कीजिए दृढ़ निश्चय कीजिए, कि इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करके छोड़ूंगा , दृढ़ निश्चय बने बिना काम नहीं चलेगा, इस जीवन में नहीं अगले जीवन में भक्ति करूंगा , ऐसा कहने वाला कायर है ।
वह ईश्वर को कभी नहीं प्राप्त कर सकेगा, सूर बनिए सुरता की बात इसलिए कि अंतर-जगत में भीषण लड़ाई लड़नी पड़ती है।
इस लड़ाई में जो हार जाता है वह फिर संसार-सागर में ही पड़ा रह जाता है।
।।श्री सदगुरू महाराज की जय ।।
आदरणीय सत्संगी बंधु आप महर्षि शाही स्वामी जी महाराज का प्रवचन मनोयोग पूर्वक अध्ययन किए
इसके लिए आपका सहृदय आभार
और भी प्रवचन है आप नीचे में जाकर के सद्गुरु में ही सत्संग वाले फाइल में जाकर के सत्संग प्रवचन से लाभ ले सकते हैं पढ़ सकते हैं
और अंत में एक निवेदन है कि
आप गुरु महाराज का जय घोष कमेंट बॉक्स में जरूर करें
🙏🙏 जयगुरु🙏🙏
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