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शनिवार, 27 जून 2020

संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी:आध्यात्मिकता की ओर चलिए

SADGURU MAHARSHI MEHI PARAMHANS JI MAHARAJ KI VANI 
संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी को पढें 🌺🌺✍👇👇👇

प्यारे लोगो !
संसार की सँभाल बहुत जरूरी है।
साथ ही यह भी जरूरी है कि संसार के उस पार में देखो।
संसार में जबतक जीवन रहता है , तबतक इसकी सँभाल किए बिना आराम नहीं मिलता।
संसार के पार में क्या है , इसकी खबर यदि नहीं लो तो वह आराम , जिस आराम के बाद कोई तकलीफ नहीं आती , जिसके बाद कोई दूसरा आराम पाने की इच्छा नहीं होती , वह आराम नहीं मिलता।

संसार में बहुत थोड़ी देर का आराम मिलता है।
इस आराम या चैन का सुख क्षणिक है - अपूर्ण है।
किंतु संसार के बाद का सुख कल्याणपूर्ण और नित्य है।
संतों ने कहा है कि संसार के कामों को भी करो 
और संसार के पार में भी दखने की कोशिश करो।
पलटू कारज सब करै सुरति रहै अलगान।
-पलटू साहब
इसके लिए यत्न सीखो और अमल ( अभ्यास ) करो।
उस अभ्यास को बढ़ाओ।
ऐसी बात नहीं कि संसार का काम करते हुए वह अमल नहीं होगा। 
शंकराचार्य के हाथ में कितना काम था , फिर भी वे लोगों को रास्ता बताते फिरते थे कि जिससे संसार का कल्याण हो।
शंकराचार्य का कुटुम्ब समस्त संसार था - ' वसुधैव कुटुम्बकम् । '
संतों ने कहा है कि नैतिकता के पतन से दुःख पाओगे। सदाचारहीन होने से नैतिक पतन होगा।
सदाचार का पालन करो। 
सदाचार का पालन करना , बिना आध्यात्मिक ज्ञान के नहीं होगा।
केवल आधिभौतिक पदार्थों को लेते रहो , तब तुम सदाचारी बनोगे , यह नहीं होगा।
संसार का पदार्थ येन - केन विधि से ले सकोगे , किंतु जो रूहानी चीज है , उसको जिस - तिस तरह से नहीं ले सकोगे।
दुरुस्त और ठीक एखलाक वा त्रुटि - विहीन सदाचार से ही अध्यात्म - तत्त्व का पाना हो सकता है , जिसमें शांतिदायक सुख है सदाचार के पालन में लगे रहने से नैतिकता का पतन नहीं होगा 
और जनता में नैतिकता की बढ़ती से संसार सुखी हो जाएगा।
यदि सदाचार से गिरे तो नैतिक पतनवालों को संसार में चैन कहाँ श्रीशंकराचार्य जी महाराज ने लोगों को उपदेश दिया और इसमें उन्हें बहुत कष्ट तथा परिश्रम हुआ , तो भी उन्होंने जनसुख हेतु कथित परिश्रम को नहीं छोड़ा।

श्रीशंकराचार्यजी महाराज का जिस समय आविर्भाव हुआ , उस समय आजकल की तरह सवारियों की भरमार सुविधा नहीं थी। 
पैदल ही उन्होंने सारा देश भ्रमण कर अपना ज्ञान फैलाया। 
उन्होंने ' आत्मवत् सर्वभूतेषु ' की पुकार लगायी।
संन्यासी होते हए उन्होंने देश का बहुत बड़ा काम किया।
देश में सदा अध्यात्मवाद का प्रचार होते रहना चाहिए।
यह विश्वास मत करो कि केवल भौतिकवाद में ही शान्ति और संतुष्टि मिलेगी , ऐसा कभी नहीं हुआ और न कभी होगा।
आध्यात्मिकता की ओर बढ़ो और सांसारिक वस्तुओं को भी सँभालते रहो। 
मैं देखता हूँ कि आजकल देश में नैतिक पतन हो गया है।
जो जिस कदर खाने - पहनने पाते हैं , उसी में किसी तरह गुजर करते हैं।
किंतु सदाचार का पालन हो , अध्यात्म - ज्ञान हो , तो जिन्हें खाने - पहनने कम मिलते हैं , उन्हें विशेष मिल जायें।
हमारी सरकार देश को सुखी बनाने के लिए विधान बनाती है , किन्तु उस विधान के रहते हुए भी नैतिक पतन के कारण लोग अन्न और वस्त्र की कमी को अत्यधिक महसूस करते ही हैं।
इसलिए नैतिक पतन न हो , इसके लिए सदाचार का पालन कीजिए।
इस सदाचार का अवलम्ब ईश्वर की भक्ति है।
ईश्वर की भक्ति कीजिए अर्थात् आध्यात्मिकता की ओर
चलिए। 
योग , ज्ञान और ईश्वर भक्ति ; सब संग - संग मिले - जुले हुए हैं।
बिना ज्ञान के किसकी भक्ति हो , जान नहीं सकते।
भक्ति सेवा को कहते हैं।
सेवा में क्या ईश्वर का पैर दबाया जाय या उनको कोई बीमारी है , जो उनकी चिकित्सा की जाय?
परंतु परमात्मा के लिए यह सेवा नहीं है , यह सेवा साधारण लोगों के लिए है।
एक राजा शिकार खेलने के लिए जंगल गया।
वहाँ उसने एक भोले - भाले सुन्दर बालक को देखा।
उस बालक की सुन्दरता पर मुग्ध होकर राजा ने उसे अपने यहाँ ले जाने की इच्छा उस बालक के समक्ष प्रकट की।
बालक बोला - ' राजा ! यदि तुम मेरी शर्त को मंजूर करो तो मैं तुम्हारे साथ जाऊँ। '
शर्त यह थी कि मुझे खिलाओ , तुम मत खाओ ; मझे अच्छे - अच्छे वस्त्र पहनाओ , तुम मत पहनो तथा मुझे सुलाओ , तुम मत सोओ , तुम जगकर मेरी रक्षा करो।
राजा ने कहा- ' ऐसा तो नहीं होगा , किन्तु मैं जैसा खाऊँगा तथा पहनूँगा , उसी तरह तुम्हें खिलाऊँगा तथा पहनाऊँगा और जिस तरह मेरे सोने पर पहरे- दार पहरा करते हैं , उसी तरह तुम्हारे सोने पर भी पहरा होगा। '
बालक बोला - ' मुझे ऐसा मालिक नहीं चाहिए।
मेरा मालिक तो मुझे खिलाता है , किंतु स्वयं नहीं खाता , मुझे वस्त्र पहनाता है , किंतु वह स्वयं नहीं पहनता।
मैं सोता हूँ और वह जगकर मेरा पहरा करता है।'
परमात्मा के लिए खाना , पीना , पहनना और सोना नहीं।
उस प्रभु की सेवा क्या होगी?
उनके पास जाओ , अपने को उनके पास हाजिर करो , यही उनकी सेवा है।ऐसी सेवकु सेवा करै ।
 जिसका जीउ तिसु आगे धरै ।।
                    -गुरुनानक साहब
अपने को ईश्वर के चरणों में समर्पित करो , यही संयम है।
शम - यम के पालन के साथ त्रिवेणी पर सुमिरण करो।
सहज समर्पण सुमिरण सेवा।
तिरवेणी तट संयम सपरा।।
 -दादू दयालजी
ऐसा ही सेवक ईश्वर से मिलता है।
सदाचार का पालन करना जरूरी है।
सदाचार के पालन से संसार में सुख और परलोक में भी मोक्ष मिलेगा।
सब लोगों को इसका पालन करना चाहिए।
Jayguru 
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