सदगुरू ने संस्कृति के विषय में सरल सरल समझायें
आईये संस्कृति के विषय सदगुरू महराज की अनुभव वाणी को पढें
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता!
बिना आध्यात्मिकता के राजनीति में शांति नहीं आ सकती।
संतों ने जगतकल्याणार्थ आध्यात्मिकता के प्रचार का कार्य किया और आज भी वही बात चल रही है।
हमलोग सुधरे हुए कम हैं।
अच्छे आचरण से चलें , यही सुधार है।
अच्छा सुधार बिना अच्छे संग और अच्छी विद्या के नहीं हो सकता।
भगवान बुद्ध का वचन है - जो बूढ़ों को प्रणाम और उनका आदर करते हैं ,
उनकी चार चीजें बढ़ेगी - आयु , सुख , सुन्दरता और बल।
उत्तम संस्कृति के लिए बड़ों का आदर और उनके सामने में नम्र अवश्य रहें और
अपने से छोटों को प्यार करें।
तुलसीकृत रामायण पढ़िए कितना अच्छा
कहा गया है कि-
प्रात:काल उठिकै रघुनाथा।
मात पिता गुरुनावहिं माथा।।
हमलोग राम के नमूने पर चलें तो हमारा सुधार हो।
शील धारण करें।
शील निभाना है तो आवश्यक यह है
कि जिस काम के लिए जो व्रत है , उसमें मजबूत रहें।
आर्य-संस्कार में विद्यार्थी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।
आचार्य , गृहस्थ होते
हुए भी ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।
ब्रह्मचर्य व्रत पर बहुत ख्याल रखना चाहिए।
जहाँ ब्रह्मचर्य पर ख्याल नहीं है ,
वहाँ ओजपूर्ण तेज नहीं हो सकती।
विद्या - ग्रहण की शक्ति पूर्णतया विकसित नहीं हो सकती।
सभी विद्यालयों - महाविद्यालयों में आध्यात्मिक परिषद् का रहना अच्छा है।
आध्यात्मिक पुस्तकालय भी हो।
ईश्वर भक्ति करनी चाहिए।
बाह्य पूजा का सार यह है कि उसके द्वारा
भक्त अपना भाव भगवान को अर्पण करता है।
जप , स्तुति , प्रार्थना , प्रेयर ( prayer ) - सब कुछ कीजिए।
मन की एकाग्रता के लिए कीजिए।
एकाग्रता के लिए प्राणायाम की उपयोगिता मानी जाती है।
अच्छी संस्कृति के लिए झूठ , चोरी , नशा , हिंसा और व्यभिचार नहीं करें।
"प्यारे विद्यार्थियो!
विद्या सीखो।
मन से पढ़ो।
अच्छे मन से पढ़ो।
सांसारिक कामों को भी करो , किंतु अनासक्त होकर।
यही हमारे यहाँ की आध्यात्मिक शिक्षा है।"
यह प्रवचन छात्रों के लिए तथा उनके उज्जवल भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है।
यह पढ़कर बहुत ही मानसिक उर्ध्वगति में सहायक है ।
अगर पूरी तरह से पढ़ लिए हैं तो आगे भी शेयर करें जिससे और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके
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