"मनुष्य शरीर में संपूर्ण ब्रह्मांड है"
बाहर भटकना व्यर्थ है अगर संपूर्ण ब्रह्मांड तक पहुंचना चाहते हो वह अपने अंदर झांक कर देखो अपने अंदर चलो पूरा ब्रह्मांड घूम लोगे संसार के ब्रम्हांड घूमने से कुछ नहीं मिलेगा तो
आइए
इस प्रवचन को पूरा-पूरा पढ़ते हैं
प्यारे लोगो !
मनुष्य का शरीर अद्भुत है।
अज्ञानी लोग ख्याल करते हैं कि यह शरीर केवल मांस , हड्डी , चर्म आदि का समूह है
, परंतु विशेषज्ञ जानते हैं कि इतना ही नहीं है।
केवल स्थूल ज्ञान में रहनेवाले जो जानते हैं ,
वह तो प्रत्यक्ष है ; किन्तु इस
प्रत्यक्ष के अन्दर अप्रत्यक्ष भी है , उसे विशेषज्ञ और सूक्ष्मदर्शी जानते हैं।
स्थूलदर्शी दो तरह के होते हैं - एक विद्या - बुद्धि में बढ़े लोग और दूसरे
विद्या - बुद्धि में कम और हीन।
अच्छे अच्छे डॉक्टर शरीर के भीतर को जानते हैं
किन्तु उसके स्थूल अंशों को ही।
इसके अतिरिक्त जो अधिक जाननेवाले हैं , वे जानते हैं कि शरीर के अन्दर स्थूल भाग
के अतिरिक्त सूक्ष्म भाग भी है ,
जो डॉक्टरी यंत्र से नहीं जाना जाता।
कोई केवल पढ़ - सुनकर , समझकर जानते हैं ,
दूसरे सुन - समझ और प्रत्यक्ष पाकर
जानते हैं।
उन लोगों के ज्ञानानुसार यह शरीर विचित्र है।
विश्व ब्रह्माण्ड में जो सब तत्त्व हैं , शरीर में भी वे सब ही हैं।
यदि अपने अन्दर सूक्ष्मतल पर कोई जाय ,
तो उसको सूक्ष्मतल पर का सब कुछ वैसा ही
मालूम होगा , जैसा स्थूल तल पर रहने से उस तल का सब कुछ मालूम होता है।
स्थूल तल पर आप दूर तक देखते हैं और विचरण करते हैं ; उसी प्रकार सूक्ष्मतल पर
आरूढ़ हुआ दूर तक देख सकता है और विचरण कर सकता है।
स्थूल तल पर रहने से आपको मालूम होता है कि
स्थूल शरीर में रहता हूँ और स्थूल
संसार में काम करता हूँ।
उसी प्रकार आप अपने सूक्ष्म तल पर रहें तो मालूम करेंगे कि सूक्ष्म शरीर में हूँ
और
सूक्ष्म संसार में विचरण करता हूँ , काम करता और देखता हूँ।
ब्रह्माण्ड लक्षणं सर्व्व देहमध्ये व्यवस्थितम्।
- ज्ञानसंकलिनी तंत्र
सकल दृश्य निज उदर मेलि सोवइ निद्रा तजि योगी। -
गोस्वामी तुलसीदासजी
जो जग घट घट माहिं समाना।
घट घट जगजीव माहिं जहाना।।
पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड , ताहि पार पद तेहि लखा।
तुलसी तेहि की लार , खोलि तीनि पट भिनि भई।
- तुलसी साहब
सागर महिं बुंद बुंद महि सागरु , कवणु बुझै विधि जाणै उतभुज चलत आपि करि चीनै ,
आपे ततु पछाणै।
- गुरु नानक साहब
बूंद समानी समुंद में , यह जानै सब कोय।
समुंद समाना बूंद में , बूझै बिरला कोय ।।
- कबीर साहब
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शरीर में है और सब देवता भी इस शरीर के अंदर हैं।
आँख चन्द्रसूर्य का , कान में दशों दिशाओं का , नाक में अश्विनी कुमार का , मुँह
अग्निदेव का , जिभ्या में वरुण का , हाथ में इन्द्र का और पैर में उपेन्द्र (
वामन - वामन अवतार में श्रीविष्णुदेव ने उन्हीं के यहाँ अवतार लिया , जिनके यहाँ
इन्द्र अवतार लिया था।
इन्द्र पहले जन्मे थे और पीछे , इसलिए उपेन्द्र कहलाए । ) का वासा है।
पुनः मूलाधारचक्र ( गुदाचक्र ) में गणेश का , स्वा - धिष्ठान ( लिंग ) चक्र में
ब्रह्मा का , मणिपूरक ( नाभि ) चक्र में विष्णु - लक्ष्मी का , अनाहत ( हृदय )
चक्र में शिव - पार्वती का , विशुद्ध ( कण्ठ ) चक्र में सरस्वती का , षटचक्र (
आज्ञाचक्र ) में शिव का वासा है
और परमप्रभु परमात्मा भी इसी शरीर में विराजमान
हैं , जो अन्दर के सब मायिक स्थानों के परे केवल चेतन आत्मा को प्रत्यक्ष ज्ञान
में आने योग्य हैं।
इस प्रकार का वर्णन संतवाणी में पाया जाता है।
उपयुक्त वर्णनानुसार परमप्रभु परमात्मा के सहित सब देव अन्दर में हैं
देहस्थाः सर्वविद्याश्च देहस्थाः सर्वदेवताः।
देहस्थाः सर्वतीर्थानि गुरुवाक्येन लभ्यते ।।
- ज्ञानसंकलिनी तंत्र
किन्तु इसको वही देखेगा ,
जो अपने अन्दर में प्रवेश करेगा।
भीतर जाने का मार्ग जानिए।
यह कैसे जाना जाएगा?
गुरु उपदेश से।
इसलिए गुरु की आवश्यकता है।
गुरु मुँह से कहेंगे और देखेंगे तो साधना के द्वारा आप ही , जब गुरु के कहे
अनुकूल साधन करेंगे।
कोई कहे कि ये सब ख्याल - ही - ख्याल हैं , यथार्थ में नहीं , तो कहनेवाले कहते
हैं कि तुम अभ्यास करके देख लो।
अभ्यास करने पर तुमको मालूम नहीं हो , तब झूठा बनाओ।
वैज्ञानिक ने कहा कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिलाने से पानी होता है।
कोई कहे - झूठा है , तो दोनों गैसों को मिलाकर देखो कि होता है कि नहीं।
उसी प्रकार संतों की युक्ति के अनुकूल साधन करो – अवश्य देखा जाएगा।
भीतर का काम , जो भीतर में होता है , वह दिखाया नहीं जा सकता।
स्वयं करके देखा जाएगा।
जो करने का काम है , उसे नहीं करते हैं और कहते हैं कि नहीं होता है।
इस तरह कहना अयोग्य है।
संतवाणी में जैसी युक्ति बताई गई है ,
🌷🌷 ।।🙏🙏सद्गुरु महाराज की जय🙏🙏 ।।🌷🌷
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