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शनिवार, 6 जून 2020

संत सदगुरू महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी :बहिर्मुखी मन को अंतर्मुखी करो

बीसवीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ने  जन-जन तक जाकर के आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को बतलाया  और कहा  कि बाहर में मत भटको  अपने अंदर चलो अंदर में अनंत सुख है अपरिमित सुख है और इस लोक परलोक दोनों बनने वाला है  आइए  उनके साथ  गर्वित वाणी को  पढ़ें 
बहिर्मुख मन को अन्तर्मुख करो | 
उसे नवों द्वारों से समेट कर दसमें द्वार में प्रवेश कराओ |
 वहाँ चेतन रूपा गंगा की निर्मल धारा है, वही अमृत है | उसमें स्नान करो |
 उसमें डुबकी लगाने से परमात्मा का ध्वन्यात्मक नाम मिलेगा और पवित्र बनकर परमात्मा को पा सकोगे |

मानस जप और मानस ध्यान स्थूल सगुण रूप उपासना है | विन्दु - ध्यान और ज्योति - ध्यान सुक्ष्म सगुण रूप उपासना है | 
अनहद नाद का ध्यान रूप रहित होने पर भी सगुण उपासना है और 
सार शब्द का ध्यान निर्गुण निराकार उपासना है |

जो उस सारशब्द को पकड़ता है वह परमात्मा तक पहुँचता है, क्योंकी वह शब्द परमात्मा से लगा है |
 परमात्मा से शब्द लगा रहने के कारण परमात्मा का गुण उस शब्द में रहता है |
 इसलिये जो उस शब्द को पकड़ता है | परमात्मा का गुण उसमें आ जाता है | 
इसलिये उसमें रिद्धि - सिद्धि आ जाती है | 

संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज का अमृत वचन को आप पढ़कर जरूर ही बोध हो गया होगा कि संसार में कुछ नहीं है अगर हम इस भवसागर से पार पाना चाहते हैं तो सदगुरु के शरण में जाकर के संयुक्त ही लेकर के और उनका चरण चरण पकड़ कर के ही हम इस संसार से पाड़ हो सकते हैं और एकमात्र रास्ता है अंदर की ओर चलें बाहर की ओर भटकने से दुख ही दुख है अतः अगर आप यह पूरा प्रवचन पढ़ लिए हैं तो अन्य सत्संगी को भी अधिक से अधिक शेयर करें उन्हें भी लाभ होगा

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