बीसवीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की वाणी संत सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ने कहा की मौत का इलाज नहीं इसलिए अच्छा कर्म कीजिए वही साथ जाएगा आइए प्रवचन को पूरा विस्तार से पढ़ें
एक राजा गाय का घी खाना पसंद नहीं करता था|
एक बार वह खूब बीमार पड़ा|
राजा ने वैद्य से कहा – “देखो, मुझे गाय का घी मत देना|” वैद्य ने गाय के घी में दवा तैयार करके राजा को दे दी ओर राजा से कहा कि मुझे कोई तेज सवारी दीजिये,
शीघ्र एक दुसरे रोगी को देखने के लिए जाना है| वह तेज सवारी पर चढ़कर भागा|
इधर राजा ने दवाई खायी, तो पता चला कि उसमें गाय का घी मिला हुआ है|
उसने दूसरी तेज सवारी पर एक आदमी को उस वैद्य को पकड़ने के लिए भेजा और कह दिया कि देखो, उसका दिया हुआ कुछ मत खाना|
उस आदमी ने रास्ते में उस वैद्य को पकड़ा| वैद्य ने कहा कि राजा को ऐसी दवाई दी है, जिससे रोग अवश्य छुट जाएगा| जाइए उनसे कह दीजिए|
उस वैद्य का नाम था जीवक| जब राजा का रोग समाप्त हो गया, तब उसने जीवक को बहुत इनाम दिया|
बहुत रोग ऐसे होते हैं, जो छूटते ही नहीं हैं, फिर भी लोग इलाज कराते हैं|
दवा करने से रोग छूट भी जाते हैं; लेकिन मौत का इलाज नहीं| धन्वन्तरि का बेटा मर गया था| उसने बेटे की बहुत दवाई की, फिर भी उसे मरने से बचा नहीं सका|
धन्वन्तरि सब दवाइयाँ लेकर और यह सोचकर फेंकने जा रहा था कि अब इनमें रोग-निवारक शक्ति नहीं रही|
ऊपर से एक फरिश्ता उतरा और उसने धन्वन्तरि को दवाइयाँ फेंकने से मना किया|
फरिश्ते ने कहा – “देखो, तुम्हारी सब दवाइयाँ ठीक हैं| अगर तुमको विश्वास नहीं है, तो सामने के तालाब में पानी जमाने की दवाई देकर देखो|”
तालाब में दवाई डालते ही पानी जम गया| फरिश्ते ने कहा कि तुम रोग की चिकित्सा कर सकते हो, मौत की नहीं| उसी तरह परीक्षित का हुआ|
उनको उतने ही दिनों तक रहना था| तक्षक साँप ने काटा और वे मर गये| उनको भी जिलाने वैद्य जा रहे थे| रास्ते में तक्षक से भेंट हो गयी|
तक्षक ने पूछा कि आप कहाँ जा रहे हैं? वैद्य ने कहा कि राजा परीक्षित को तक्षक काटेगा ओर वे मर जाएँगे, मैं उन्हें जिला दूँगा| तक्षक ने कहा कि आप यह देखकर कहिए कि अब उनकी आयु शेष है या नहीं|
वैद्य ने कहा कि आयु तो नहीं है| तब तक्षक ने कहा- “तो आप किसलिए जाइएगा| आप लौट जाइए|
मैं ही तक्षक हूँ| मैं उनको काटूँगा और वे मर जाएँगे|”
मौत का इलाज नहीं होता; और रोग का इलाज होता है| जिसकी आयु जितनी है, उतनी ही रहेगी|
परबल की सर निकालकर उसके रस को साँप-काटे हुए व्यक्ति की नाक में देने से कैसा भी विष हो, उतर जाता है| एक जगह ऐसा हुआ कि दंशित व्यक्ति ने यह रस नाक में देने ही नहीं दिया, वह मर गया|
मैंने अँगरेजी की एक किताब में पढ़ा था,
“All men must die.”
अर्थात् सभीलोग अवश्य मरेंगे|
जो जैसा कर्म करेगा, वह वैसा फल पाएगा|
इसलिए दुःखदाई कर्म नहीं करना चाहिए|
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तथा और भी प्रवचन हैं नीचे में देखें
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