जैसा देखा जाता है कि—
मनुष्य केवल तार के योग से एक जगह से दूसरी जगह विद्युत-प्रवाह चला जा सकता है, लेकिन प्रकृति अपने महान शक्तिप्रवाहों को भेजने के लिए किसी तार का सहारा नहीं लेती।
इसी से समझ में आ जाता है कि किसी प्रवाह को चलाने के लिए वास्तव में तार की कोई आवश्यकता नहीं। हम तार के बिना काम नहीं कर सकते इसलिए तार की आवश्यकता पड़ती है। जैसे विद्युत-प्रवाह तार की सहायता से विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होता है, ठीक उसी तरह शरीर की समस्त संवेदनाएँ और गतियाँ मस्तिष्क में और मस्तिष्क से बहिर्देष में प्रेरित की जाती है।
वह स्नायुतंतु रूप तार की सहायता से होता है। मेरुमज्जामध्यस्थ ज्ञानात्मक और कर्मात्मक,स्नायुगुच्छस्तंभ ही इड़ा और पिंगला नारियाँ है। उन दोनों प्रधान नाड़ियों के भीतर से ही पूर्वोक्त अंतर्मुखी और बहिर्मुखी शक्तिप्रवाहद्वय संचारित हो रहे हैं, लेकिन बात अब यह है कि इस प्रकार के तार के समान किसी पदार्थ की सहायता के बिना मस्तिष्क के चारों ओर विभिन्न संवाद भेजना और भिन्न-भिन्न स्थानों से मस्तिष्क का विभिन्न संवाद ग्रहण करना संभव क्यों ना होगा। प्रकृति में तो ऐसे व्यापार घटते देखे जाते हैं।
कुछ अनुभव कुछ विचार
हमें अपने जीवन के आधार को कभी नहीं भूलना चाहिए। आत्मा रक्षितो धर्म:। हमारे जीवन का आधार क्या है?स्वतंत्रता। अगर इसी बात को आध्यात्मिक रूप से लें तो स्वतंत्रता यानि मुक्ती।
इसका अर्थ हुआ आवागमन से मुक्त होना यानी पूर्ण स्वतंत्रता। इसका आधार क्या है ? खुद के बारे में जानो और आत्म यानि खुद की रक्षा।
जो स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते वो अपनी मंजिल यानि अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हमारा ज्ञान, हमारा धैर्य, हमारा विवेक, हमारा विश्वास आदि गुण ही हमारा अपना स्वयं की रक्षा हेतु सहायक है। अब अगर अध्यात्म में रहकर अपनी साधना से इन सब गुणों को प्राप्त करने में असमर्थ है तो हमारे ज्ञान का क्या मतलब?
नेकी कर दरिया में फेंक संत के गुणों में आते हैं। अब हम इसे ना अपनाये तो संत-महात्मा का शरणागत भी हैं तो संत-महात्मा क्या करें?
संत सद्गुरु की शरणागति हमारे जीवन को उच्च स्तर पर ले जाना चाहते हैं तो हमें भी उस योग्य बनना होगा। यही अध्यात्म है और ज्ञान हैं
SWAMI VIVEKANAND SPEECH
योगियों का कहना है कि— "इसमें कृतकार्य होने पर ही भौतिक बंधनों को लाँघा जा सकता है।अब इसमें कृतकार्य होने का उपाय क्या हैं? यदि मेरुदंडमध्यस सुषुम्ना के भीतर से स्नायुप्रभाव चलाया जा सके तो यह समस्या मिट जायेगी। मन ने ही ये स्नायुजाल तैयार किया है
और उसी को यह जाल तोड़कर किसी प्रकार की सहायता की राह ना देखते हुए अपना काम करना होगा।
तभी सारा ज्ञान हमारे अधिकार में आयेगा,देह का बंधन फिर ना रह जायेगा इसलिए सुषुम्ना नाड़ी पर विजय पाना हमारे लिये इतना आवश्यक है।
यदि आप इस शून्य नली के भीतर से स्नायुजाल की सहायता के बिना भी मानसिक प्रभाव चला सको तो इस समस्या का समाधान समझो हो गया।
योगी कहते हैं कि— ये संभव है।
।जय गुरु।।
सत्संगीबंधुओं से निवेदन है कि इस प्रवचन को अवश्य पढें और अधिक से अधिक शेयर करें जिससे और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके
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