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सोमवार, 8 जून 2020

Swami vivekanand speech 4

SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
साधारण मनुष्यों में सुषुम्ना निम्नतर छोर में बंद रहती है, उसके माध्यम से कोई कार्य नहीं होता। योगियों का कहना है कि— 
इस सुषुम्ना का द्वार खोलकर उसके माध्यम से स्नायुप्रभाव चलाने की एक निर्दीष्ट साधना है। 
तब उस केंद्र में एक प्रतिक्रिया होती है। स्वयंक्रिय केंद्रों (automatic centres) में उन प्रतिक्रियाओं का फल केवल गति होता है पर सचेतन केंद्रों (conscious centres) में पहले अनुभव और फिर बाद में गति होती है। सारी अनुभुतियाँ बाहर से आयी हुई क्रियाओं की प्रतिक्रिया मात्र है।
 तो फिर स्वप्न में अनुभूति किस तरह होती है? उस समय तो बाहर की कोई क्रिया नहीं रहती।
इसलिए स्पष्ट है कि विषयों के अभिघात से उत्पन्न हुई स्नायविक गतियाँ शरीर के किसी-न-किसी स्थान पर अवश्य अव्यक्त भाव से रहती है।
 उपरोक्त बातों को एक उदाहरण से समझा जा सकता है जैसे— हमलोग किसी एक नगर को देखते हैं। 
नगर नामक बाह्य वस्तु के आघात की जो प्रतिक्रिया है,उसी से उस नगर की अनुभूति होती है अर्थात उस नगर की बाह्य वस्तु द्वारा हमारे अंतर्वाही स्नायुओं में जो गति-विशेष उत्पन्न हुई है 
उससे मस्तिष्क के भीतर के परमाणुओं में एक गति उत्पन्न हो गयी है। आज बहुत दिन बाद भी वह नगर मेरी स्मृति में आता है। 
इस स्मृति में भी ठीक वही व्यापार होता है पर अपेक्षाकृत हल्के रूप में लेकिन जो क्रिया मस्तिष्क के भीतर उस प्रकार मृदुतर कंपन ला देती है वह भला कहाँ से आती है? 
यह तो कभी नहीं कहा जा सकता है कि वह उसी पहले के विषय-अभिगात से उत्पन्न हुई है। 
अतः स्पष्ट है कि — विषय-अभिघात से उत्पन्न गतिप्रवाह या संवेदनाएँ शरीर के किसी स्थान पर कुण्डलीकृत होकर विद्यमान है और उनकी क्रिया के फलस्वरूप ही स्वपन्न अनुभूतीरूप  मृदु प्रतिक्रिया की उत्पत्ति होती है।
SWAMI VIVEKANAND SPEECH 

जिस केंद्र में विषय-अभिघात से उत्पन्न संवेदनाओं के अवशिष्ट अंश या संस्कार मानो संचित से रहते हैं,उसे मूलाधार कहते हैं और उस कुण्डलिकृत क्रियाशक्ति को कुण्डलिनी कहते हैं।* हो सकता है गतिशक्तियों का अवशिष्ट अंश भी इसी जगह कुण्डलीकृत होकर संचित है क्योंकि गंभीर अध्ययन और बाह्य वस्तुओं पर मनन के बाद शरीर के जिस स्थान पर मूलाधार चक्र (sacral plexus) अवस्थित है वह तप्त हो जाता है।  अब यदि इस कुण्डलिनी-शक्ति को जगाकर उसे ज्ञात-भाव से सुषुम्ना नली में से प्रभाहित करते हुए एक केंद्र से दूसरे केंद्र को ऊपर लाया जाय,
 तो वह ज्यों-ज्यों विभिन्न केंद्रों पर क्रिया करेगी, त्यों-त्यों प्रबल प्रतिक्रिया की उत्पत्ति होगी।जब शक्ती बिल्कुल सामान्य अंश किसी स्नायुतंतु के भीतर से प्रवाहित होकर विभिन्न केंद्रों में प्रतिक्रिया करता है तब वही स्वप्न अथवा कल्पना के नाम से अभिहित होता है। लेकिन जब मूलाधार में संचित विपुलाययन शक्तिपुँज दीर्घकालव्यापी तीव्र ध्यान के बल से उद्वुद्ध होकर सुषुम्ना मार्ग में भ्रमण करता है
 और विभिन्न केंद्रों पर आघात करता है तो उस समय एक बड़ी प्रबल प्रतिक्रिया होती है,जो स्वप्न अथवा कल्पनाकालीन प्रतिक्रिया से तो अनंतगुणी श्रेष्ठ है ही, पर जाग्रतकालिन विषयविज्ञान की प्रतिक्रिया से तो अनंतगुणी प्रबल है। यही अतीन्द्रिय अनुभूति है।
   SWAMI VIVEKANAND SPEECH 
जब वह शक्तिपुंज समस्त ज्ञान के समस्त संवेदनाओं के केंद्रस्वरूप मस्तिष्क में पहुँचता है,तब संपूर्ण मस्तिष्क मानो प्रतिक्रिया करता है और इसका फल है ज्ञान का पूर्ण प्रकाश या आत्मसाक्षात्कार। कुण्डलिनी-शक्ति जैसे-जैसे एक केंद्र से दूसरे केंद्र को जाती है
 वैसे-ही-वैसे मन का एक-एक परदा खुलता जाता है और तब योगी इस जगत की सुक्ष्म या कारणरूप में उपलब्धि करते हैं और तभी विषयस्पर्श से उत्पन्न हुई संवेदना और उसकी प्रतिक्रियारूप जो जगत के कारण,उनका यथार्थ स्वरूप हमें ज्ञात हो जाता है।
 उसके बाद हम सारे विषयों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं क्योंकि कारण को जान लेने पर कार्य का ज्ञान निश्चित ही होगा। 
       यह प्रवचन को पढें शांति की अनुभूति होगी और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके इसलिए शेयर करें 
  

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