Maharshi mehi paramhans ji maharaj ki vani
बीसवीं सदी के महान संत
सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी
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🙏🙏।।ॐ श्री सद्गुरवे नमः।।🙏🙏
*बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि।
महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता!
जितने लोग हैं, सब डर से काम करते हैं।
किसान को होता है कि खेती का काम जिस-जिस समय में जो-जो होता है,
उस-उस समय में काम नहीं करने से खेत नहीं उपजेगा। अन्न के लिए वस्त्र के लिए दुःख होगा, किसान को डर है।
लोग कहते हैं कि वह स्वतंत्र है, किंतु नहीं, पेट का नौकर है।
ठीक समय पर खेती का काम नहीं करने से उसको दुःख होगा, इसी डर से धूप में खेती करता है, पानी में सड़-सड़कर काम करता है।
नौकरीवाले को अपने से ऊपर के हाकिम का डर रहता है कि ठीक से काम नहीं करने से नौकरी से अलग न कर देवे, ऊँचे से नीचे पद पर न दे देवे।
लड़के को पिता का डर रहता है, शिक्षक या मौलवी साहब का डर रहता है
कि नहीं पढ़ेंगे, तो ये लोग मारेंगे।
बड़े होने पर जानते हैं कि ठीक से नहीं पढ़ने पर परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होंगे, लज्जा होगी।
किन्तु इसके साथ-साथ यह भी जानना चाहिए कि
यह शरीर अवश्य छूटेगा, चाहे कब्र में गड़े या चिता में जले।
इसी के लिए संत कबीर साहब कहते हैं - ‘यह शरीर जल के बुदबुदे (बुलबुले) के समान है। बच्चे मर गए, जवान मर गए, बूढ़े मर गए। बूढ़े देह से मरते हैं, किंतु उनका मन नहीं मरता।
निधड़क बैठा नाम बिनु, चेति न करै पुकार।
यह तन जल का बुदबुदा, बिनसत नाहीं बार।।
आज कहै मैं काल्ह भजूँगा, काल्ह कहै फिर काल।
आज काल्ह के करत ही, औसर जासी चाल।।
काल करै सो आज कर, आज करै से अब्ब। पल में परलै होयगा, बहुरि करैगा कब्ब।।
इससे शरीर भी बिगड़ जाता है और धर्म भी बिगड़ जाता है,
धर्म के बिगड़ने से दुनिया में भी हँसी होती है और दुनिया छोड़ने पर नरक जाना पड़ता है।
साधु-संत जो भोजन करने के लिए बतायें, वह भोजन करो। जितना भोजन ठीक-ठीक पच जाय, उतना भोजन करो।
जीभ-स्वाद के लिए धर्म का नाश मत करो। जीभ का स्वाद क्या है?
वह तो आदत है, उसको अच्छा लगता है, किन्तु जो नहीं खाता, उसे पसन्द नहीं होता।
हमारे यहाँ दो धर्म हैं - एक धर्म में मांस-मछली नहीं खाने की बात है और दूसरे धर्म में मांस-मछली खाने की बात है।
मांस-मछली खाने में कोई दोष भी लगा सकता है, किंतु नहीं खाने में कोई दोष नहीं लगा सकता।
इसलिए जिसमें दोष नहीं लगावे, वही अच्छा है। जो लोग मांस-मछली नहीं खाते हैं, उनको दूसरे लोग जो मांस-मछली खाते हैं,
नहीं कहते कि तुम नहीं खाते हो, इसलिए तुमको दोष लगेगा; बल्कि जो नहीं खाता है,
वह उसे जो मांस-मछली खाता है, कहता है कि तुमको दोष लगेगा। उसको अधर्मी कहता है।
खानेवाले को एक अच्छा कहता है, दूसरा अच्छा नहीं कहता। इसके लिए जिसको अच्छा नहीं लगता, क्यों खाया जाय?
मुसलमानों के धर्म में है कि जबतक शगल (साधनाभ्यास) करते रहो, कोई चिकनी चीज नहीं खाओ। मांस-मछली नहीं खाओ।
शगल करना एक दो दिन की बात नहीं है।
शगल करते-करते सालों लग जाते हैं। जो साल-साल, कई सालों तक नहीं खाएगा, उससे फिर आप ही वह खाना छूट जाएगा।
इस तरह उसमें भी मांस-मछली आदि का खाना मना है।
मछली की देह अधिक पवित्र है या तुम्हारी देह? चिड़िया की देह मनुष्य देह से उत्तम नहीं है। इसलिए
अपने से नीच शरीर के मांस को अपनी ऊँची और पवित्र देह में डालना ठीक नहीं।
हमा आस्त = सब वही है। हमा अज आस्त = सब उससे है। सब वही है - यह अद्वैतवाद है। सब उससे है - इसमें द्वैतवाद है। हमलोगों के यहाँ अद्वैतवाद है, उसमें है - एक वही है।
मंसूर ने ‘अनलहक' कहा था।
जब दिल मिला दयाल से, तब कछु अंतर नाहिं।
पाला गलि पानी मिला, यों हरिजन हरि माहिं।।
- कबीर साहब
जैसे पाला गलकर पानी हो जाता है, उसी प्रकार ईश्वर से मिल जाने पर एक ही हो जाता है।
संत कबीर साहब ने कहा -
बुन्द समानी समुँद में , यह जानै सब कोय।
समुँद समाना बुन्द में, बूझै बिरला कोय।।
निरबन्धन बन्धा रहै, बन्धा निरबन्ध होय।
करम करै करता नहीं, दास कहावै सोय।।
झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार; इन पाँचों पापों को नहीं करने का बंधन रखो।
एक ईश्वर पर विश्वास, उसकी प्राप्ति अपने अंदर होगी - इसका दृढ़ निश्चय रखना, गुरु-सेवा, सत्संग और ध्यान; इन पाँचों को करने का बंधन रखो।
कोटि कोटि तीरथ करै, कोटि कोटि करि धाम।
जब लग संत न सेवई, तब लग सरै न काम।।
जहँ आपा तहँ आपदा, जहँ संसय तहँ सोग।
कह कबीर कैसे मिटे, चारो दीरघ रोगा।।
अहं अग्नि हिरदे जरै, गुरु से चाहै मान।
तिनको जम न्योता दिया, हो हमरे मेहमान।।
- संत कबीर साहब
🙏🙏🌷श्री सद्गुरु महाराज की जय🌷🌷🙏🙏
Jayguru
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