यहां पर आप को दुनिया का सबसे शानदार और रोचक तथ्य के बारे में बताया जाएगा और हिंदुस्तान के अलावा पूरा विश्व के बारे में

मेरे बारे में

Breaking

सोमवार, 21 सितंबर 2020

सतगुरु मेंहीं बाबा का उपदेश:संसार में पंडुबी चिड़िया की तरह रहो


 MAHARSHI MEHI PARAMHANS JI MAHARAJ KI VANI 

बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी 

आइये सत्संगी,

 बंधु सदगुरू मेंहीं बाबा का उपदेश को पढें 

और जीवन में उतारने का प्रयास करें 

🙏🙏।।ॐ श्री सद्गुरवे नमः।।🙏🙏🧘‍♂️


बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि। 

महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता!

जहाँ कहीं कभी नहीं गए हो, राजाज्ञा हो कि वहाँ जाना पड़ेगा; किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलेगी, उस स्थान पर जाना होगा, तब तुम्हारे मन में कैसा दु:ख होगा! 


नहीं मालूम कि कहाँ ले जाया जाएगा, वह स्थान कैसा है, दुःख-सुख वहाँ के कैसे हैं? 

परन्तु जाना अवश्य होगा। बिना गए कल्याण नहीं होगा। जिस क्षण के लिए आज्ञा हो जाएगी, 

उस क्षण से कुछ आगा-पीछा नहीं होगा; कुछ मुरौवत (लिहाज) नहीं होगा।

चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वावीस।

 सहज तनिक सुहाग पै, कहा गुथावै सीस।।

संत लोग कहते हैं कि इस आज्ञा में अदल-बदल नहीं हो सकता। किंतु तुम यदि कोशिश करो तो

 जिस स्थान में तुम जाओगे, उसको जीवन में देख लोगे। 

यदि पूरी कोशिश करो, तो उस स्थान में भी जा सकोगे, जहाँ सदा सुख-ही-सुख है, वहाँ से लौटना नहीं होता।

सब लोगों के घर में कोई-न-कोई शरीर छोड़ते हैं।

 ऐसा कोई घर नहीं, जिस घर में किसी ने शरीर न छोड़ा हो। 

जो जाता है, वह जानता नहीं कि कहाँ जाना होगा; किंतु जाना होता है। 

सुख-दु:ख मिला हुआ भी स्थान है और कहीं दु:ख-ही-दु:ख का भी स्थान है,

 ये ही स्वर्ग-बैकुण्ठादि स्थान हैं।

 वहाँ का भोग समाप्त होने से या किसी कारण के उपस्थित हो जाने से बहुत शीघ्र ही इस मृत्युलोक के किसी स्थान पर जन्म हो जाएगा।

राजा ययाति बड़े प्रभावशाली और पुण्यात्मा थे। किसी कारण इन्द्र लुके (छिपे) हुए थे।

 इन्द्रासन खाली था, तो विचार हुआ कि मृत्युलोक में वैसा कोई है, जिसे इस आसन पर बैठाया जाय, जो इन्द्र जैसा ठीक-ठीक प्रबंध कर सके।

 ययाति को ही चुना गया। 

ययाति गए और उस आसन पर विराजे।

 यदि ययाति ठीक तरह से रह सकते, तो जबतक इन्द्र नहीं आते, तबतक वहाँ रहते; किंतु ययाति को घमण्ड हो गया। 

वहाँ लोगों को वे अपमानित करते थे। 

सभी ने विचारा कि इनको नीचे गिराना चाहिए, इसलिए उनके सामने उनके पुण्य की चर्चा करो। 

वे अपने मुख से पुण्य की चर्चा करेंगे और नीचे गिर जाएँगे।


ऐसा ही हुआ, घमण्ड में आकर अपने पुण्य का वर्णन करने लग गए और वहाँ से नीचे गिरा दिए गए।

 ‘सुर पुर ते जनु खसेउ ययाती।' 

उनके गिरते समय मुँह से बहुत लार निकली, वही कर्मनाशा नदी है।

 उनके कुल का कोई तपस्या कर रहा था। उसने समझा कि मेरे कुल के श्रेष्ठ आदमी नीचे गिर रहे हैं।

 इसलिए उसने कहा कि ठहर जाइए, तो वे वहीं ठहर गए।

भगवान विष्णु के पार्षद जय-विजय ने सनक, सनंदन आदि को द्वार पर रोक दिया, जिस कारण वे क्रोधित हुए और शाप दिया - 

मृत्युलोक में जाकर राक्षस होकर जन्म लो।

 वे बहुत डरे और विनती की, तब उन सनक, सनंदन आदि ऋषियों ने कहा - ‘भगवान से प्रार्थना करना, वे तुम्हारा उद्धार करेंगे। 

भगवान के पास वे बहुत गिड़गिड़ाए। 

भगवान ने कहा – ‘मैं तुम्हारे लिए अवतार लूँगा और अपने हथियार से उद्धार करूँगा। 

चाहे बड़ी अवधि ही क्यों न हो, किंतु उनके समाप्त होने पर फिर यहाँ जन्म लेना पड़ेगा।

गोलोक में राधाजी ने कृष्ण के सखा श्रीदामा को शाप दिया।

 श्रीदामाजी ने भी राधाजी को शाप दिया। श्रीदामाजी राक्षस हो गए और राधाजी को इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा। 

श्रीदामाजी राक्षस हुए और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मारा। इस प्रकार कितने इतिहास हैं। 

ऊँचे-से-ऊँचे लोक से भी गिरना होता है।

स्वर्गादि जो पितृलोक हैं, वहाँ के भोग समाप्त होने पर फिर यहाँ जन्म लेना पड़ता है।

 इस प्रकार कहाँ जाना होगा, ठिकाना नहीं।

 निरापद तो कोई भी लोक नहीं। संतों ने कहा - 

निरापद स्थान भी है, जहाँ जाकर कोई आपदा नहीं रहती।


संतों की आज्ञा के अनुकूल यदि तुम बरतो (आचरण करो) यानी भक्ति करना आरंभ करो और पूरी भक्ति नहीं कर सको, तो शरीर छूटने पर फिर तुम स्वर्ग स्थान को पाओगे और

 वहाँ से लौट आकर फिर ईश्वर का भजन करोगे और उस निरापद पद को भी प्राप्त कर लोगे।

 किंतु तुम उसका ख्याल नहीं करते और निडर होकर बैठे हुए हो।

 कब तुम्हें काल की ठोकर लगेगी और तुम चले जाओगे, ठिकाना नहीं।

 इसलिए चेतो और ईश्वर-भजन करो।

 यह शरीर पानी का बुदबुदा है, कब फूट जाएगा, ठिकाना नहीं।

नहिं बालक नहिं यौवने, नहिं बिरधी कछु बंध।

 वह औसर नहिं जानिये, जब आय पड़े जम फंद।।

बालकपन में मरोगे कि जवानी में मरोगे कि बूढ़े होकर मरोगे, ठिकाना नहीं। 

यम के फन्दे में कब पड़ोगे, तुम नहीं जानते।

 भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –

प्रयाण काले मनसा चलेन भक्त्यायुक्तो योगबलेन चैव। भुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।।


अर्थात् वह भक्तियुक्त पुरुष अंतकाल में भी योगबल से भृकुटी के मध्य में प्राण को अच्छी तरह स्थापित करके, फिर निश्छल मन से स्मरण करता हुआ उस दिव्य परमपुरुष परमात्मा को ही प्राप्त होता है।


जो कोई इसके दर्शन का हिस्सक (आदत) लगा लेता है और मरने के समय उसी ओर मन लगाता है, तो उसी परम पुरुष को प्राप्त करता है। 

‘उस' शब्द यहाँ पर अणु-से-अणु तमस से परे के लिए कहा गया है। 

यह बिल्कुल निरापद तो नहीं है; किंतु इसको जो प्राप्त करके शरीर छोड़ेगा,

 तब जो फिर इस संसार में आएगा, तो इस संस्कार से प्रेरित होकर फिर भजन करेगा और निरापद स्थान को प्राप्त कर लेगा।

 इसलिए संसार में पनडुब्बी चिड़िया की तरह रहो।

जैसे जल महि कमलु निरालमु मुरगाई नैसाणै। 

सुरति सबदि भवसागरु तरिअै नानक नामु बखाणै।।

हमलोगों का दृष्टियोग-साधन अणोरणीयान् को पकड़ने के लिए है। 

अनहद नाद का ध्यान सुरत-शब्द-योग का अभ्यास करना है। 

इसके आगे अनाहत नाद है।

 अनाहत नाद से ही ईश्वर की पहचान होगी, परंतु पहले उस अणोरणीयान् का ध्यान किए बिना अनहद नाद को पकड़ना नहीं हो सकता। 

इसलिए पहले विन्दु को पकड़ो, फिर अनहद शब्द को सुनो। 

पापी हृदय में भजन नहीं हो सकता; झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार आदि पाप बुद्धि से भजन नहीं कर सकते।

तुलसी दया न छोड़िये, जब लगि घट में प्राण।

हमारा किसी ने अपकार किया है, हम उसका अपकार नहीं करें।

 जिसने अपकर्म किया - पाप किया, वह दया का पात्र होगा, उसपर दया करो, उसका अपकार मत करो। 

अभी कुछ दिन जियोगे, किंतु जीव का जीवन अनंत है। 

इसलिए अनंत जीवन के लिए पाप-कर्म क्यों करो, जो दुःख-ही-दुःख भोगते रहो।

 इसलिए पाप-कर्म छोड़ो और भजन करो।


🙏🙏श्री सद्गुरु महाराज की जय🙏🙏




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

kumartarunyadav673@gmail.com

अंतर अजब बिलास-महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज

श्री सद्गुरवें नमः आचार्य श्री रचित पुस्तक "पूर्ण सुख का रहस्य" से लिया गया है।एक बार अवश्य पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇👇 : प...