🌺🌺🙏जयगुरू 🙏🌺🌺
बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु
महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की वाणी को पढें ।
शांति की अनुभूति होगी और
सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके
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आज का शीर्षक
"ईश्वर को मानिए उसमें विश्वास कीजिए "
🙏🙏।।ॐ श्री सद्गुरवे नमः।।🙏🙏🌺
बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि।
महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।
प्यारे लोगो!
आपलोगों को बहुत उत्तम शरीर मिला है।
इसे पाकर आप साँप, बिच्छू भी बन सकते हैं और देवता भी बन सकते हैं।
पाप-कर्म करेंगे, अधर्म कर्म करेंगे तो फिर साँप, बिच्छू बनेंगे और सदाचार का पालन करेंगे; भगवद्भजन करेंगे, पाप नहीं करेंगे, तो देवता-तुल्य हो जाएँगे।
झूठ नहीं बोलें, एक शब्द को छिपा लेने से भी झूठ है। बात मत चुराइए।
एक बात से किसी को लाख रुपये मिल जाते हैं और किसी को लाख रुपये की घटी हो जाती है। हिंसा नहीं करें।
मन से, वचन से और कर्म से - तीनों प्रकार की हिंसा से बचें। किसी भी नशीली चीज का सेवन न करें।
व्यभिचार न करें। यह तो हुआ संसार में कैसे रहेंगे। अब ईश्वर भजन कैसे हो, इसके लिए सुनिए - आप कहेंगे हम कमाते हैं, खाते हैं, ईश्वर-भजन का क्या काम है? दूसरे कहते हैं - ईश्वर नहीं माने तो नहीं सही, किंतु दुनिया में प्रतिष्ठा से रहो।
तो वे कहते हैं - दुनिया में धन से प्रतिष्ठा होती है, तो धन जैसे-तैसे जमा कर लो।
तो कोई कहता है - अभी जैसे-तैसे धन जमा कर लो; लेकिन मरने पर नरक जाओगे तब? तब वे कहते हैं - नरक-स्वर्ग कहाँ है? खाओ पियो, धन जमा करो। पाप-पुण्य किसको लगता है? जबतक जियो, सुख से रहो, नहीं तो ऋण लेकर भी घी पियो।
मरने पर शरीर जलकर भस्म हो जाता है। यमराज कहाँ है? सब कल्पना है।
किंतु ऐसा मत समझो। ईश्वर और जीवात्मा दोनों हैं। मरोगे तो जीवात्मा अवश्य रहेगा।
पाप करोगे तो शरीर छूटने पर नरक देखना पड़ेगा।युधिष्ठिर जरा-सा झूठ बोले थे तो नरक देखना पड़ा था। यहाँ आप देखते हैं कि कोई बच्चा जन्म लेता है
तो हृष्ट-पुष्ट और कोई बच्चा दुबला-पतला रोग लिए हुए। कोई धनी के यहाँ जन्म लेता है, तो कोई निर्धन के यहाँ। ऐसा क्यों होता है?
इसके लिए पूर्व जन्म का संस्कार मानना पड़ेगा।
पूर्व जन्म के कोई दानी पुण्यात्मा होंगे, इसलिए श्रीमान् के यहाँ जन्म लेकर वे बचपन से ही सुखी रहते हैं।
पाप-कर्म का भी फल मिलता है। किसी को तो इसी जन्म में उसका फल मिल जाता है।
सिकलीगढ़ धरहरा में एक अंग्रेज रहता था।
वह मनुष्य को मनुष्य नहीं समझता था, पशु समझता था। बड़ा बदमाश था, लोगों को बहुत सताता था।
कुछ दिनों के बाद वह पागल हो गया। भीख माँगकर खाया। राजदण्ड हुआ।
पुलिस उसको खूब पीटती थी।
उसी से चाबी लेकर उसी का धन खोल-खोलकर लेता था।
ईश्वर को मानिए, उसमें विश्वास कीजिए।
स्वर्ग-नरक है, इसको भी मानिए। कर्म-फल के अनुसार नरक-स्वर्ग और दुःख-सुख भोगना पड़ेगा ही।
संसार में तो सुख है ही नहीं।
ईश्वर- भजन कीजिए, मोक्ष मिलेगा, तभी सुख है। पहले ईश्वर को जानिए कि स्वरूपतः कैसा है? लोग समझते हैं कि ईश्वर बड़ी सुन्दर देहवाला और
सिंहासन पर विराजमान होगा। किंतु असली बात तो यह है कि
ईश्वर की पहचान आँख से होने योग्य नहीं है।
वह कान से सुनने और नाक से सूँघने योग्य भी नहीं है। त्वचा से स्पर्श होने योग्य नहीं है।
वह इन्द्रियों से ऊपर है।
शरीर और इन्द्रियों को छोड़कर आप स्वयं रहते हैं, तब अपने से जो पकड़ेंगे, वही ईश्वर है। लेकिन जबतक वह चेतन आत्मा मन, बुद्धि और शरीर इन्द्रियों में रहती है, तबतक पहचान नहीं सकती।
जो चेतन आत्मा से जाना-पहचाना जाय, उसके लिए कोशिश कीजिए।
उसकी युक्ति गुरु से जानिए।
अपने गाँव से आप यहाँ आए हैं। जब आप घर जाने लगेंगे, तो जैसे-जैसे जिस रास्ते से यहाँ आए हैं, यहाँ से उधर जाने में वैसे-वैसे इन सब गाँवों को छोड़ते-छोड़ते अपने गाँव पहुँचेंगे।
उसी तरह आप शरीर, इन्द्रिय और मन-बुद्धि में आ गए हैं। इन सबको पार कर वहाँ पहुँचिए, जहाँ से आए हैं।
किसी चीज को समेटिए, तो उसके विपरीत की ओर उसकी गति हो जाती है। इसी तरह जब यह मन इन्द्रियों की ओर से रोका जाएगा, तो जिधर मन-इन्द्रिय आदि नहीं है, उधर को बढ़ेगा।
इसी तरह से जाते-जाते ईश्वर के स्थान पर पहुँचेगा, वहाँ जाकर ईश्वर को पहचानेगा। वह ईश्वर को पहचान कर मुक्ति प्राप्त करेगा। इसके लिए जो जप और ध्यान करने के लिए बतलाया गया है, उसको करते रहिए।
जो आदमी पाप में फँसा रहेगा, वह उस ओर नहीं जा सकता है। जिसका मन सत्संग में जाने से कतराता है तो समझिए कि उसका मन पापी है।
जिसके मन में लगा रहे कि सत्संग में कब जायँ, कब जायँ तो उससे पाप नहीं होगा।
यदि उससे पाप हो भी जाय और वह कह दे कि भाई! मुझसे यह पाप हो गया तो उससे फिर पाप नहीं होगा।
जो गलती से झूठ बात आप में आ गयी है, उसको छोड़ दीजिए। अपने को पाप में मत डुबाइए।
🌺🙏🙏श्री सद्गुरु महाराज की जय🌺🙏🙏
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