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शनिवार, 7 नवंबर 2020

सतगुरु मेंहीं बाबा का उपदेश:स्तुति, प्रार्थना और उपासना

बीसवीं सदी के महान संत सतगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अमृत वचन, सतगुरु मेंहीं बाबा कठोर तपस्या कुप्पाघाट में किया ।पूर्ण अनुभूति और अनुभव के बाद इस ज्ञान को जन जन तक पहुँचाने का लक्ष्य लेकर कार्यरत रहें ।।आज सतगुरु महाराज की अनुभव वाणी को लेकर हाजिर हूँ । प्रवचन को पूरा पढें और अंत में अन्य लोगों को शेयर करें जिससे और सत्संगी बंधुओं को लाभ मिल सके ।। आइये पढें ---------ऊं श्री सदगुरूवे नमः----------
बन्दौं गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नररूप हरि। महामोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।। प्यारे लोगो! बारंबार का जन्म लेना दु:खकर है। इसलिए संतों ने साग्रह कहा कि इस जन्म-मरण से छूट जाने के लिए ईश्वर का भजन करो। जिस प्रकार कोई भले आदमी किसी के दुःख को देखकर उसको सुख पाने की शिक्षा देते एवं उपाय करते हैं, उसी प्रकार संतों ने संसार के लोगों को दुखिया देखकर ईश्वर की भक्ति करने के लिए बताया। ईश्वर की भक्ति में केवल तीन बातों को बताया गया - स्तुति, प्रार्थना और उपासना। स्तुति कहते हैं यशगान को। अपने उपकारक का गुणगान करना स्तुति है। ईश्वर ने माता के गर्भ-काल से ही सबों की रक्षा की है। जन्म लेने से पूर्व ही माता के पास दूध का भण्डार देना, यह ईश्वर की दया है। हमलोग हर घड़ी, हर समय, हर जगह ईश्वर से अपने को उपकृत पाते हैं। ऐसे परम उपकारक परम प्रभु परमात्मा का यशगान नहीं करना कृतघ्नता है। प्रार्थना कहते हैं, माँग को। ईश्वर से क्या माँगें? ईश्वर से ईश्वर को माँगो। जब ईश्वर की प्राप्ति होगी, तो कोई माँग नहीं रहेगी। इसलिए ईश्वर की प्रार्थना करो। ईश्वर के पास जाने के लिए भजन करना, उपासना है। संतों की शिक्षा के अनुकूल गुरु महाराज ने हमलोगों को तीनों प्रकार की शिक्षा दी। त्रयकाल संध्या करने बताया - ब्राह्ममुहूर्त में, दिन में स्नान के बाद और सायंकाल। इन तीनों समयों में अबाधित रूप से उपासना करो। वह कर्म पाप है, जो ईश्वर-भक्ति में विघ्न डाले। इसलिए संतों ने कहा - झूठ मत बोलो, चोरी नहीं करो, व्यभिचार मत करो। नशाओं का सेवन नहीं करो और हिंसा मत करो। मत्स्य-मांस का भक्षण मत करो। जैसे हाथी-घोड़े को सिखाकर लोग उनपर सवारी करते हैं। उसी प्रकार तुम अपने को सिखाओ, संयत में रखो अपने को। यदि तुम संयत में रखोगे, तो अपने पर ही अपनी सवारी द्वारा परमात्मा तक पहुँचोगे। भजन में जप, ध्यान दो ही बातें हैं।* जप में वाचिक, उपांशु और मानस; तीन प्रकार के होते हैं। बोल-बोलकर जप करना वाचिक जप है। इससे श्रेष्ठ जप है उपांशु जप। उपांशु जप में केवल होठ हिलते हैं। उसकी आवाज केवल अपने सुन सकते हैं। मानस जप - जपों का राजा है। यह केवल मन से ही जपा जाता है। वाचिक और उपांशु से हजार गुणा श्रेष्ठ है मानस जप। मानस जप एक प्रकार से ध्यान ही है। तीनों में विशेष मानस जप है। यह सब जपों से श्रेष्ठ है। इसके बाद गुरु-मूर्ति का ध्यान है। जैसा कि संत कबीर साहब ने कहा - मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव। मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव।। स्थूल ध्यान के बाद सूक्ष्म ध्यान करो। सूक्ष्म ध्यान के लिए कबीर साहब ने कहा - गगन मण्डल के बीच में, तहवाँ झलके नूर। निगुरा महल न पावई, पहुँचेगा गुरु पूर।। नैनों की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय। पलकों की चिक डारि के, पिय को लिया रिझाय।। कबीर कमल प्रकासिया, ऊगा निर्मल सूर। रैन अंधेरी मिटि गई, बाजे अनहद तूर।। तथा बाबा नानक के वचन में भी आया है – तारा चड़िया लंमा किउ नदरि निहालिआ राम। सेवक पूर करंमा सतिगुर सबदि दिखालिआ राम। गुरु सबदि दिखालिआ सचु समालिआ। अहिनिसि देखि विचारिआ। धावतु पंच रहे घरु जाणिआ कामु क्रोध विषु मारिआ। अंतरि जोति भई गुरु साखी चीने राम करंमा। नानक हउमै मारि पतीणे तारा चड़िया लंमा।। और श्रीमद्भगवद्गीता के अनुकूल अणोरणीयाम् प्रत्यक्ष हो जाता है। इसी अणोरणीयाम् को उपनिषद् में परम विन्दु कहा है - बीजाक्षरं परम विन्दुं नादं तस्योपरिस्थितम्। सशब्दं चाक्षेरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम्।। - ध्यानविन्दूपनिषद् अर्थात् परम विन्दु ही बीजाक्षर है; उसके ऊपर नाद है। नाद जब अक्षर (अनाश ब्रह्म) में लय हो जाता है, तो नि:शब्द परम पद है। इस विन्दु को पकड़कर नाद को ग्रहण करके परमात्मा तक पहुँचो। नाद यानी शब्द तीन प्रकार के होते हैं - प्राणमय, इन्द्रियमय, मनोमय। प्राणमय शब्द ध्वन्यात्मक है।
जो सूक्ष्म ध्यान में प्रकट होता है। मुँह से कहना, कान से सुनना इन्द्रियमय शब्द है। इसके लिए गुरु से जानो कि किस शब्द का जप करेंगे। फिर इसको मन ही मन जपना मनोमय शब्द है। नित्य इस विषय को सुनिए। सुनने से इस ओर प्रेरण होता है। इसलिए नित्य सत्संग करो। सत्संग से ही लोग ईश्वर- भजन करते हैं। सत्संग से जितना लाभ होता है, उससे विशेष कोई लाभ नहीं। किसी एक खास उपासना या सम्प्रदाय को श्रेष्ठ कहना, दूसरे को न्यून समझना गलत बात है। जो जिस सम्प्रदाय में हैं, उसमें जो उपासना है, वह करें। किसी को नीच, किसी को ऊँच कहना हमारे गुरु महाराज (बाबा देवी साहब, मुरादाबाद) के ज्ञान में पाप है। किसी सम्प्रदाय से लड़ाई-झगड़ा मत करो। सभी मिलकर रहो। ईश्वर का भजन करो। सभी संतों ने सदाचार पालन करने कहा, ध्यान करने कहा और सत्संग करने कहा। इन तीनों को नित्य किया कीजिए। ------------जयगुरूदेव----------------

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