मिला न मन का मीत
बाहर बाहर घूम रहा
मिला न जीवन में संगीत।।1।।
पढ़ाई लिखाई खूब किया
पढ़ा चौपाई दोहा
सत्ता के अहंकार फेर में
सब कुछ हो गया स्वाहा।।2।।
घर के न रहा ना घाट का
पी रहा हूं घाट घाट का पानी
अब तो माथा पीट रहा हूं
कैसे कटेगा जिंदगानी।।3।।
मां बाप का सपना चूर हुआ
कैसे घर मुंह दिखाने जाऊं
तरुण तरुणी भी बीत गया
किसे कैसे कैसे समझाऊं।।4।।
~तरूण यादव रघुनियां
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
kumartarunyadav673@gmail.com