बीत गए बारह साल
अंदर झांक कर देखा तो
नजर आया कंगाल ही कंगाल।।1।।
उम्र बढ़ने के साथ साथ
बदलता गया चाल
ध्यान भजन में कमी होते गया
अशांति में जीवन का हाल।।2।।
सत्संग में नित जाते हैं
सुनते संसार है माया जाल
पंप पाप बच नहीं पाते
दूसरे से पूछते कैसे हैं हाल।।3।।
गुरु मंत्र, गुरु दीक्षा का
नहीं कर सके संभाल
अंधकार में फंस कर रो रहा
कैसे होगा जीवन निहाल।।4।।
~तरूण यादव रघुनियां
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
kumartarunyadav673@gmail.com