जिसे खुद से ही प्यार है
पढ़ी लिखी बेटी को बोर देते हैं
अनपढ़ घर में छोड़ देते हैं।।1।।
खुद तो सुख शांति में जीते हैं
बेटी की अरमान फीके है
आज भी बेटी को समझते भार हैं।
ऐसे मां बाप को धिक्कार हैं।।2।।
बेटी ससुराल में जब रोती है
उस समय कायनात सोती है
इस दुःख देख कर ना आये याद है
ऐसे मां बाप को धिक्कार हैं।।3।।
पुरानी ख्यालात सोच में जीते हैं
ऐसे पाइरेन्ट्स वृद्धावस्था में दुःख भोगते हैं
जो केवल बेटा के मतलव यार हैं
ऐसे मां बाप को धिक्कार हैं।।4।।
~तरूण यादव रघुनियां
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