कुछ ग्रामीण एक साँप को मार रहे थे,
तभी वहाँ से गुजर रहे संत एकनाथ बोले, 'भाइयो! इसे क्यों मार रहे
हो? कर्मवश साँप होने से क्या, यह भी आत्मा ही तो है। एक युवक ने कहा, 'आत्मा है तो फिर काटता क्यों है?'
एकनाथ ने कहा, 'तुमलोग सर्प को न मारो, तो वह तुम्हें क्यों काटेगा?'
लोगों ने एकनाथ के कहने पर सर्प को छोड़
दिया। कुछ दिन बाद एकनाथ अँधेरे में स्नान करने जा रहे थे। तभी उन्हें सामने फन फैलाए खड़ा वहीं सर्प दिखाई
दिया।
उन्होंने उसे बहुत हटाना चाहा, पर वह टस-से-मस नहीं हुआ।
एकनाथ मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने चले
गये। उजाला होने पर लौटे, तो देखा कि बरसात के कारण वहाँ एक गहरा गड्ढा हो गया था।
सर्प ने न बचाया होता,
तो एकनाथ उस गड्ढे में गिर जाते।
इस तरह उस सर्प ने अपने प्रति दयालुता का ऋण चुकाया।
Jayguru
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