मान मर्यादा सब ख़ाक होता है।
गर विश्वास करो तो पश्चाताप होता है
और पूछता है क्या यही पाप होता है।।
रूप दिखाकर क्या इंसाफ होता है
बदन दिखाना ही क्या नाप होता है
यही रंग समाज का अभिशाप होता है
पूछते हो दिखाने में भी पाप होता है।।
आंख का का कुसूर क्या अपने आप होता है
जब मन नहीं अपने पास होता है
झूठ ही कहते हैं कुछ और बात है
उसका जिम्मेदार तो खुद अपने आप होता है।।
~तरूण यादव रघुनियां
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