मैं तरुण कुमार आप लोगों के लिए सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का अमृत में प्रवचन लेकर हाजिर हूं और इस प्रवचन को आप पूरा पढ़ें और जीवन में उतारने का प्रयास करें क्योंकि यह सदगुरु महाराज का प्रवचन जीवन को एक नई दिशा देने वाला है एक बार अवश्य पढ़ें और शेयर करना ना भूलें।
🙏🕉️ *जय गुरूदेव* 🕉️🙏
आपका निजी ज्ञान क्या है-संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
*धर्मानुरागिनी प्यारी जनता!*
आपलोगों को यह विदित हो गया है कि संतमत सत्संग का यह विशेषाधिवेशन है। यहाँ के श्रीछांगूर भगतजी ने इसे कराया। सत्संग से यह मतलब नहीं कि इसमें राजनैतिक बातें हों। सत्य क्या है? जो अकम्प है, जो अडिग है, जिसका नाश नहीं होता, जो है, जो था और जो सदा रहेगा, वह सत्य है। उसी सत्य के संबंध में यहाँ बात करेंगे।
यहाँ प्रश्न आ जाता है कि सत्संग की आवश्य- कता क्या है? यदि हम सत्संग नहीं करें तो हमारी क्या हानि होगी? कर्म का फल अवश्य होगा।
कोई धनवान है तो कोई धनहीन। सब तरहों में जीवन बिताते हुए कोई कहे कि मैं सुखी हूँ, यह कभी संभव नहीं। इस संसार में बड़े-बड़े बलवानों का बल थक गया।
बड़े-बड़े धनवान भी धन छोड़कर चले गए।
हम शरीर ही धारण नहीं करें, इसके लिए किस अवलम्ब को धारण करें? संतों ने विचार कर कहा कि इसके लिए तुम भक्ति करो।
जो प्रत्यक्ष नहीं, जो इन्द्रियों की पकड़ में नहीं रहते, उन्हीं को अव्यक्त कहते हैं। आवागमन में घूमना कबतक होगा, इसका कोई ठिकाना नहीं। हाँ, इसका ठिकाना संतों ने ईश्वर-भक्ति करके जाना है।
ईश्वर की भक्ति करने में यह जानना चाहिए कि ईश्वर का स्वरूप क्या है? वह अव्यक्त क्यों है? वह व्यक्त भी होगा? इसके उत्तर में कहा जाएगा कि वह इन्द्रियों को व्यक्त नहीं होगा, आप अपने को पहचानें तो वह व्यक्त होगा।
तुम्हारा शरीर क्षेत्र है और तुम क्षेत्रज्ञ हो। बिना बीज का वृक्ष नहीं हो सकता। इसी तरह स्थूल शरीर वृक्षवत् है और सूक्ष्म शरीर बीजवत्। स्थूल, सूक्ष्म, कारण और महाकारण; इन चार शरीरों के साथ आप रहते हैं। इन्द्रियों के कामों को आप जानते हैं, पर अपने निजी कामों को नहीं। आपका निजी काम क्या है, सो समझिए। दुःख की बात है कि आप अपने आपको नहीं पहचानते हैं। सब इन्द्रियाँ जड़ हैं, इनमें कोई अपनी निजी शक्ति नहीं।
इन इन्द्रियों को आपके ज्ञान से ज्ञान होता है। आप अपने से अपने को पहचानेंगे।
इन्द्रियाँ माया से निर्मित हैं। चेतन आत्मा के कारण देह सचेतन है। इस तरह यह सिद्ध होता है कि चेतन और जड़ में भेद है।
एक ज्ञानमय है, एक ज्ञान-रहित। संत महात्मा कहते हैं कि आप अपने निजी ज्ञान से ही अपने को पहचान सकते हैं। अपने को पहचानेंगे तो ईश्वर को भी पहचानेंगे। ईश्वर वह है, जिन्हें आप अपने निजी ज्ञान से पहचानें।
जैसे कोई स्वप्न में सपनाता हुआ अर्थहीनता का दुःख पाता है और जब जग जाता है, तभी अर्थहीनता का दुःख छुटता है। इसी तरह संतों का कहना है कि तीन अवस्थाओं अर्थात् जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति को पार करोगे तो चौथी अवस्था मिलेगी। चौथी अवस्था में आपका निजी ज्ञान धीरे-धीरे चमकता जाएगा।
यह शरीर माया से निर्मित है। जिसमें बदली हो, जिसका अत्यन्ताभाव हो, वह माया है। यह योगियों ने सिद्ध कर बतलाया है। ईश्वर-भक्त बनो, माया नहीं लगेगी। इस चर्मचक्षु से जिस रूप को देखोगे, वह माया का दर्शन होगा।
जिसे आत्मदृष्टि से देखता है, वह परमात्मा है। जिस तरह आँख को देखने के लिए आइने का सहारा लेते हैं, उसी तरह ईश्वर को तथा अपने को देखने के लिए ध्यान-भजन रूप साधन की आवश्यकता है।
जबतक कोई ईश्वर-स्वरूप का निर्णय नहीं जानता, तबतक वह औनाया हुआ रहता है।
जैसे यात्री को निर्दिष्ट स्थान मालूम नहीं रहता तो उसका चलना व्यर्थ ही होता है। श्रीरामायणजी के पाठ में अभी जो पढ़ा गया, उससे ज्ञात होता है कि माया ईश्वर के अधीन में इस तरह है, जिस तरह कठपुतली।
परमात्मा अज है, विज्ञान-स्वरूप है। जो बिना कारण का कार्य दिखाता है। ‘अज विज्ञान रूप बलधामा।’(गोस्वामी तुलसीदासजी)। आज के भौतिक विज्ञानवाले को यदि उपादान कारण नहीं रहे, तो वे कुछ भी नहीं बना सकते।
परमात्मा उपादान कारण को बनाते हैं। ‘तद् आप ही आप, आप उपाया, नहिं किछुते किछु कर दिखलाया। (गुरु नानक साहब)।’ परमात्मा स्वरूपतः अनादि-अनन्त हैं। वे उपज-ज्ञान से भी अनादि हैं। सबसे पहले का एक अनादि-अनन्त तत्त्व अवश्य मानना पडे़गा। द
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*यह प्रवचन पुरैनियाँ जिलान्तर्गत ग्राम-रूपौली में दिनांक 25. 12. 1965 ई0 के अपर्रांकालीन सत्संग में हुआ था।*
पूरा प्रवचन को पढ़ने के लिए आपका दिल से सहृदय आभार
और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के प्रवचन को शेयर करें 🙏
रविवार, 29 दिसंबर 2024
आपका निजी ज्ञान क्या है -संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
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