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मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

प्रेम के बिना भक्ति संभव नहीं

 आजकल अनेक तरह से भक्ति का जरिया बना रहे हैं लेकिन सच्ची भक्ति कैसे करें आजकल तो अधिकांश व्यक्ति जो भी भक्ति कर रहे हैं वह अपना लाभ कमाने के लिए कर रहे हैं उसमें लोभ छुपा हुआ है और उसमें अपना स्वार्थ भी छुपा हुआ है कोई भी निस्वार्थ भाव से भक्ति पूजा-पाठ नहीं करना चाह रहे हैं तो आज आप लोगों के बीच एक बहुत ही रोचक प्रसंग का चर्चा करने जा रहा हूं एक बार की बात है एक धर्म निष्ठ राजा के मन में वैराग उत्पन्न हुआ और उन्होंने एक इमली पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या करने लग गया और इंतजार में था कि प्रभु हम को दर्शन देंगे इस तरह से देख कर के वहां के बगल के एक व्यक्ति ने जो गृहस्थ था अपने परिवार के उलझन से तंग आकर उन्होंने सोचा कि क्यों ना हम भी तपस्या या साधना का नकल करें और सुख आनंद का अनुभव भी लें क्यों की तपस्या करने से लोग सेवा सुश्रुषा करते हैं साधु जानकर तो और मानते हैं और प्रभु भी दर्शन देंगे संयोग की बात है उसी रास्ते से होकर नारदजी जा रहे थे तो नारद जी को जैसे ही उस राजा ने देखा तो राजा साहब से रहा नहीं गया और नाराज जी को कहते हैं कि नारद जी आप कहां जा रहे हैं तो नाराज जी ने कहा कि मैं विष्णु लोक जा रहा हूं तो राजा साहब बोले कि कम से कम मेरा एक संदेश तो लेते जाइए प्रभु से पूछेगा कि कब हम को दर्शन देंगे इतना सुन कर के नारद जी ने कहा ठीक है यह बात मैं प्रभु के सामने रख दूंगा उसके बाद जैसे ही उसी रास्ते में आगे बढ़ते हैं तो देखते हैं कि एक अरंड वृक्ष के नीचे एक गृृृृहस्थ व्यक्ति भी तपस्या में लीन है और जैसे ही नारद जी की आहट सुनते हैं उन्होंने भी झट से नारद जी को रोक लिए और कहने लगे कि आप कहां जा रहे हैं तो इस पर नारद जी ने कहा कि देखिए मैं विष्णु लोक जा रहा हूं क्या आपको भी कुछ कहना है तो इस पर वह  तपस्वी ने कहा कि आप प्रभु से पूछेगा कि हम को कब दर्शन देंगे तो इस पर भी नारद जी का वही जवाब था कि अच्छा आप की सूचना आप का संदेश में भगवान विष्णु अर्थात प्रभु को जरूर देंगे और उसका उत्तर भी आप लोगों के पास लेकर के आऊंगा जब नारद जी विष्णु भगवान विष्णु की वंदना करते हैं और उसके बाद अपना कुशल क्षेम होने के बाद प्रभु को कहते हैं कि रास्ते में आने के क्रम में मुझे एक गृृहस्थ  तपस्वी और एक राजा जो तपस्वी बना है दोनों ने आप के लिए संदेश भेजा है और वह संदेश यह है कि आप दर्शन कब देंगे तो इस पर दोनों तपस्वी के लिए एक ही उत्तर भगवान विष्णु ने दिया कि आप जाकर के कह दीजिए कि जो जिस वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या कर रहे हैं उसको उस वृक्ष के पत्ता में जितनी संख्या है इतने वर्ष के बाद मैं दर्शन दूंगा इतना सुनने के बाद वहां से नारदजी चल देते हैं और सबसे पहले तो उस रास्ते में वही गृहस्थ  तपस्वी मिलता है और उससे कहते हैं देखिए भगवान विष्णु का संदेश है कि आप जिस वृक्ष के नीचे बैठे हुए हैं और उस वृक्ष में जितना पत्ता  है इतने वर्ष के बाद आप को दर्शन देंगे इतना सुनने के बाद वह जो अपने घर से आकर के तपस्या कर रहा था सोचा कि चलो इससे बढ़िया घर का समस्या घर का झंझट ही भला इतने वर्ष के बाद क्या होगा क्या नहीं होगा कुछ पता नहीं छोड़ो तपस्या को चलो जाते हैं घर की दुख ही सही वह चल दिए और चले गया जब उसके बाद नारद जी कुछ कदम आगे बढ़ते हैं तो देखते हैं कि वही राजा साहब तपस्या कर रहे हैं तो उन्होंने राजा साहब को कहा कि भगवान विष्णु का संदेश है कि आप जिस वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या कर रहे हैं आपको उतना जितना उसमें पता है इतने वर्ष के बाद आप को दर्शन देंगे इस पर जो है राजा साहब खुशी के मारे उस प्रेम में मग्न होकर झूमने लग गए कम से कम प्रभु तो हमसे मेरे जो संदेश था उसको सुना और उसको तो यह पता हो गया है कि मैं साधना कर रहा हूं और उस प्रेम में मग्न होकर के भक्ति में लीन हो गए और ऐसा झूमने लगे कि उसके झूमने से उसकी सूरत जो है प्रभु में लीन हो गई और प्रेम में ऐसा मग्न हुआ कि प्रभु तक्षण ही दर्शन दिए और वहां पर नारद जी भी थे और नारद जी यह सब नजारा देख कर के दंग रह गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रश्न पूछ ही बैठे कि प्रभु जी आप तो अभी हमको कह रहे थे कि जाओ कह देना कि वृक्ष में जितना पता है इतने वर्ष के बाद दर्शन देंगे लेकिन आपने भी तो हद कर दिया आप तक्षण ही दर्शन दे दिए तो उन्होंने नाराजी को कहा देखो जब भक्त प्रेम में मगन होकर प्रेम के साथ निस्वार्थ भाव से होकर के भक्ति करते हैं तो उससे हम बहुत खुश होते हैं और उसको हम दक्षिण दर्शन भी देते हैं और उसका कष्ट भी दूर करते हैं इसलिए सभी साधक सभी सज्जनों को प्रेम के साथ भक्ति करनी चाहिए तब ही कल्याण संभव है
 !!जय गुरु!!

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