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मंगलवार, 28 मई 2019

मेरी आहें भाग 4

2006 में सन 2006 की बात है उस समय में बढ़ 6 में पढ़ता था और मेरे चाचा जी नरेश यादव के दरवाजे पर नवीन सर पढ़ाने के लिए आते थे मैं उसे तो वहां पर मैथ विषय पढ़ने के लिए जाता था और बच्चा जो था वह सबको मैथ के अलावा साइंस में ग्रामर में भी व्याकरण में भी बता दिया करते थे मैं भी ट्रांसलेशन मैथ में ग्रामर में व्याकरण में दिखाना शुरू किया तो सबसे आगे बढ़ गया और सब याद नहीं करता था हम लेकिन याद करते थे इससे सब कुछ चीज होने लगता था यहां तक कि सर को भी चीज होने लगा इसको सिर्फ मेथी बताया जाए और विषय नहीं फिर भी मैं किसी तरह से सभी तरह का बात सुनकर भी पढ़ लिया करता था मैं नीचा में बोरा बिछा कर के पढ़ता था जबकि और सब जो था वह चौकी पर बैठकर पड़ता था इसी क्रम में एक दिन एक विद्यार्थी से जो छात्रा थी कहा कि तुम लोगों से सवाल गोल नहीं बनता है अगर हमको देगा तो हम सवाल गोल बना देंगे जब मैंने सुना तो सिर को नीचे की तरफ झुका लिए और जितना चौकी पर बैठी हुई थी सब ठाकुमार के हंस रही थी सब इंजॉय कर रही थी लेकिन मैंने सोचा इसमें सिर्फ सर ही नकारात्मक प्रवृत्ति के हैं विद्यार्थी नहीं हैं तो मैंने एक रोज जिस छात्रा से सर ने यह बात कहा था कि तुम्हारा सवाल गोल बना देंगे तू मैंने उनसे जाकर के पूछा कि तुमको सर ऐसा क्यों कर रहे थे मैंने अपना जान करके उनसे पूछा और उन्हें बताया कि अगर भविष्य में कोई गलती भी होगा तो गलती नहीं करें लेकिन भलाई अच्छाई सभी को नहीं भाता है इसलिए उन्होंने सर को जाकर के दूसरे दिन कह दिया और उसके दो चार दिन के बाद जब सर ने मुझसे कहा कि तुम ऐसे बात पूछ रहा था ऐसा कोई नेगेटिव बात नहीं है तब मैंने सोचा इसमें दोनों का मिलीभगत है फ्री में हम बेवकूफ बन रहे हैं अब गलत करने वाले सोचने वालों पर भी उंगली उठाना उठाना भी एक तरह से गलत बात नहीं है लेकिन बाद में जब उस छात्रा का कैरियर चौपट हुआ तब उसको समझ में आया और कुछ महीनों के बाद सर पढाना छोड़ दिए। शुरू में पहले एक घंटा पढ़ाता था बाद में धीरे-धीरे समय कम करते गया आधा घंटा पढ़ाने लगा जिससे सबों के अभिभावकों में रोष हो गया और बोलने लगे कि आप बहुत कम समय पढ़ाते हैं और रुपया समय से पहले मांगने लगते हैं बढ़िया से नहीं पढ़ाते हैं और धीरे-धीरे इसे मुद्दा के कारण छोड़ दिया

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