ऊं श्री सदगुरूवे नमः
ऊं कृष्णाय नमः
कहानी एक यदुवंशी कुल के बारे में बताया जा रहा है रंजीत मंडल हुए ।जिस को हुए तीन पुत्र हरिहर यादव शिवाय यादव और सबुरी यादव हरिहर यादव रंजीत मंडल के सभी बेटों में श्रेष्ठ थे उनका गांव में शहर में नाम चलता था वह गांव के मुखिया के तूल्य कार्य करते थे और रघुनियां ग्राम के पहला टोला रघुनिया थान गाछी टोला को बसाने का काम किया उन्होंने गरीबों को बसाया उन्होंने गरीबों का दुख दर्द को देखा समझा और उसको दूर भी किया और हरिहर यादव के चार पुत्र हुए दो पत्नियां थी पहली पत्नी में दो पुत्र हुए उसके बाद वह पत्नी स्वर्ग सिधार गई और दूसरी पत्नी नंदा देवी जिनसे दो पुत्र हुए बैजनाथ यादव शिवनाथ यादव कृष्ण मोहन यादव और विजेंद्र यादव और तीन पुत्रियां भी हुई रंजीत मंडल के दूसरे पुत्र सेवा यादव उसको 3 पुत्र हुए जय प्रकाश यादव शंभू यादव और चंदेश्वरी यादव और रंजीत मंडल के सबसे छोटे पुत्र सबुरी यादव को 2 पुत्र एक नरेश यादव दूसरा सुरेश यादव और दो पुत्री भी हुई आप लोगों के बीच जो बताने जा रहा हूं वह रंजीत मंडल के सबसे बड़े बेटे हरिहर यादव के चौथे बेटे सबसे छोटे थे विजेंद्र यादव के पुत्र तरुण कुमार के बारे में बताने जा रहा हूं विजेंद्र यादव को दो पुत्र हुए एक का नाम तरुण कुमार और दूसरा का नाम वरुण कुमार तरुण कुमार भाई में भरे थे और इसका जन्म 18 अक्टूबर 1993 दिन सोमवार और दुर्गा पूजा के दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी के पूजा के रोज शाम के वक़्त
5:30बजे जन्म हुआ जब इनका जन्म हुआ तो पूरे गांव में पूरे मोहल्ला में खुशियां छा गई क्यों इसके पीछे कारण यह था की इनकी माता को संयुक्त परिवार जैसे हरिहर यादव शिवाय यादव और सबुरी यादव तीनों एक साथ रहते थे और तीनों के सभी पुत्र मिलाकर हो गए आपको 9 बेटे हुए और नो बहू भी फिर उसकी बेटियां भी थी इस संयुक्त परिवार में हरिहर यादव के सबसे छोटी बहू दौलती देवी थी जो कर्मठ तो थी लेकिन नई थी इतनी कार्य नहीं कर पाती थी जिसके कारण सबों से डांट पड़ता था और तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही थी इन यातना सहने के के बाद एक दिन आशा की नई किरण लेकर के उनके औद्र से जन्म लिए तरुण कुमार और जैसे ही जन्म लिए पूरे परिवार में खुशी का माहौल छा गया और जो यातनाएं थी यातनाएं कम हो गई और उस वर्ष फसल की उपज चौगुनी हो गई थी सब खुश थे और इसी क्रम में आपको हरिहर यादव के सबसे छोटी बहू दौलती देवी के जीवन पर भी प्रकाश डालना चाहता हूं दौलती देवी बहन में दो बहन थी एक बड़ी बहन और छोटी दौलती देवी जब दौलती देवी की जन्म हुई तो उस समय भी उनके पिताजी को चौगुनी उपज हुई और उसी के कारण अधिक दौलत होने के कारण उसकी नाम दौलत से दौलती रख दिया धीरे-धीरे समय बदला वक्त बदला और सबसे बड़े जो थे हरिहर यादव उसका देहांत हो गया उसका देहांत हुआ धीरे धीरे संयुक्त परिवार बिखरता गया अलग होता गया और सब अपना अलग अलग होते अपना अपना रिश्ता बनाते चले गए अब बच गया हरिहर यादव के चार पुत्र फिर उस चार की पत्नी और फिर उनके बाल बच्चे और सब में तरुण कुमार जब पैदा हुए तो सब में जलन पैदा हो गई कि इनको पहली बार में पुत्र ही हुआ क्योंकि उस चारों बहू में सबसे पहले बेटी ही पैदा हुई जब की बेटी होना गर्व की बात है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं माना और जब देखा कि दौलती देवी को पहला ही पुत्र हुआ है तो बहुत जलन हुआ अनेकों तरह की यात्राएं देने शुरू कर दी इस चारों के परिवार में सभी का खाना बनाना फिर जाकर के खेत में काम करना घास काटना और इस संयुक्त परिवार में जितनी भी बेटियां थी चाहे वह बैजनाथ यादव की बेटी हो शिवनाथ यादव की बेटी हो या कृष्ण मोहन यादव की बेटी हो सब बड़ी हो गई थी और सब मिलकर के हरिहर यादव की सबसे छोटी बहू दौलती देवी को तरह-तरह की यातना देती थी किसी तरह से इसकी बेटा को मार दे या मर जाए कभी कभी तो मौका पाकर के मुंह में मिर्ची भी खिला देती थी धकेल देती थी खाना नहीं देती थी मारती थी बच्चे को लगाने के लिए तेल नहीं देती थी और अनेक तरह तरह की यातनाएं देकर के तबाह कर देती थी इतना चाहने के बावजूद भी वक्त बदलता गया और वक्त बदला फिर यह चारों भाई अलग अलग हो गए और फिर अपना अपना परिवार के साथ रहने लग गए फिर भी इसके साथ वह अन्याय अभी तक भी खत्म नहीं हुआ रोज झगड़ा रोज ताना रोज गाली चलता ही रहा लेकिन जब प्रभु को यही मंजूर था तो दुनिया क्या करता दुनिया भी तो तबाही करते हैं लेकिन जब प्रभु की कृपा हुई फिर तरुण कुमार धीरे धीरे बड़े हुए पढ़ाई करना शुरू किए पढ़ने में सबसे तेज लेकिन शुरू शुरू में इसको अध्यात्मिक रुचि बहुत था अध्यात्मिक रुचि सत्संग सुनना भारत में जाना अष्टयाम देखना लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा भगेत की ओर गया क्योंकि इनके बड़े पापा कृष्ण मोहन यादव अधिकांश समय भगेत में बिताया करते थे और साथ में इनको ले जाया करते थे एक दिन डहरिया से भगत का समापन होने के बाद कृष्ण मोहन बाबू के साथ तरुण कुमार अपने घर पहुंचे तो इनके पिताजी ने पढ़ने के लिए जाने को कहा तो तरुण कुमार भागे अपने घर के पिछवाड़े की तरफ जहां पर बड़े पापा कृष्ण मोहन यादव जी बांस की बत्ती को छिल रहे थे लेकिन बड़े तो बड़े होते हैं तरुण कुमार जैसे ही भाग रहे थे इनके पिताजी ने पकड़ा और वही बांस के छिलन से एक छिलन दिया तब तक में बड़े पापा बोले छोड़ दो तो पापा जी छोड़ दिया उसके बाद तब तक मैं दौड़कर दादी भी आ गई और कहती है छोड़ो इसको नहीं मारो पढ़ने के लिए आज जाएगा और उस सबके सामने कह दिया कि आज यह पढ़ने के लिए जाएगा कभी नहीं बंद करेगा और उसके बाद दरवाजे पर जो आए हुए शिक्षक प्रदीप सर उससे कहती है दादी इसको नहीं पिटिएगा आज से पढ़ाई बंद नहीं करेंगे दादी की Vachan एकदम सत्य हुआ और उस दिन से पढ़ाई का कार्य प्रारंभ हुआ फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा लेकिन चारों भाई के अलग होने के कारण संयुक्त परिवार भी बिखरने के कारण अपने पिताजी पर सारा बोझ आ गया और परिवार को चलाने के लिए पंजाब चले गए कमाने के वहां से कमा कर भेजते और फिर यहां पर हम लोगों का पढ़ाई होता खाना खर्चा चलता इधर घर पर खेती-बाड़ी घर द्वार के कार्य सब माताजी संभाल लेती थी फिर भी पड़ोस के रोज झगड़ते रहती थी मारने के लिए दौड़ती थी तरह-तरह की यातनाएं देती थी यह यातनाएं धीरे धीरे तब खत्म हुई जब मैंने छठवीं कक्षा पास की छठवीं कक्षा पास करने के बाद मैंने सोचा की जितना पैसा मुझे चाहिए उतना नहीं मिल पाता है इसके लिए क्या करूं तो यही बात सोचते सोचते जब स्कूल गए तो स्कूल में रामगंज से पढ़ाने के लिए आते थे सचिता सर वह बहुत ही दयालु प्रवृत्ति के थे और बहुत अधिक मानते भी थे क्योंकि पढ़ने में सबसे तेज था और सबसे ज्यादा हम पर ही नजर रहता था और उन्होंने कहा कि तुम जितना पढ़ा है पीछा तुम्हारा पूरा कंपलीट है अगर नहीं है तो कंप्लीट करो दूसरे को बताओ और उसका रिवाइज करो और यह बात मेरे जहन में आ गया और मैंने शुरू से सभी मैथ बनाना शुरू किया जहां दिक्कत होता जाकर की स्कूल में सचिता सर से पूछ के हल कर लेते थे और अपने बगल के रविंद्र कुमार उनकी बहन को पढ़ाना प्रारंभ किए और अभिषेक कुमार को इस तरह मेरा पढ़ाई का काम शुरू हुआ और थोड़ा रुपया आना प्रारंभ हुआ और कुछ हौसला भी बढ़ा और इस तरह मैं आगे बढ़ता गया और पिछली कक्षा को पढ़ाते चला गया जब मैं पढ़ाना शुरू किया तू मेरे अगल बगल के जितना पड़ोसी था सब के बच्चे मेरे पास आकर पढ़ना शुरू कर दिया सबको मैं बताता था और रुपया पैसा के लिए अपना जोड़ नहीं देता था जिसके कारण सबों ने मुझे बहुत अधिक मानना शुरू किया और मेरी माता से जो झगड़ा होता था उसमें कमी हो गया प्रताड़ना बंद हो गई और इस तरह से मेरी माता को जो तबाही का नजारा देखना पड़ता था धीरे-धीरे कम होता गया और धीरे-धीरे सब खत्म हो गया क्योंकि उन सब को अपना बच्चा को पढ़ाना था वह सब के बचाव में पढ़ाते गया क्योंकि उन सबको था कि अगर लड़ाई होगा तो मेरा बच्चा कैसे पड़ेगा इसके कारण उन सब ने मेरी मां से लड़ाई करना छोड़ दिया और मेरे से रहना शुरू कर दिया तो इस तरह से कह सकते हैं कि शिक्षा से झगड़ा और इस आदेश को खत्म किया जा सकता है जैसा कि मेरे परिवार के साथ हुआ ईर्ष्या द्वेष झगड़ा सब खत्म हुआ और यह कार्य में दसवीं कक्षा तक किया खुद पढ़ना खुद वहन करना ज्यादा जरूरी पड़ता तब घर से लेना तब तक में 2008 में भी बाढ़ आता है बाढ़ में भी मैं अपने गांव में ही था गांव के सभी लोग भाग गए थे कुछ लोग ही था और उसके साथ जो बचा था उसी को में बाढ़ में भी पढ़ाने का कार्य करता था और अपना भी थोड़ा पढ़ाई किया था बाढ़ से पहले ही 31 मार्च 2008 सोमवार को सरहद में संतमत सत्संग का कोशी प्रमंडल स्तर का हुआ जिसमें में महर्षि शाही स्वामी जी महाराज से दीक्षित हुआ और आध्यात्मिक क्षेत्र में 1 रूप से जुड़ गया फिर पढ़ाई चलता रहा और दसवीं की परीक्षा पास किया और उसमें स्कूल महावीर रानी पट्टी उच्च विद्यालय टॉप किया और सबने खुशियां दिए हौसला दिए गांव में पहचान भी बन गया गांव में नाम भी हुआ किया रे देखो इसका बेटा कितना लगन से पढ़ता था कि आज स्कूल टॉप किया है इससे सीखना चाहिए लेकिन मैं इससे संतुष्ट नहीं था क्योंकि मेरा जो सोच था वह पूरा नहीं हो पाया था मेरा सोच था कि कम से कम बिहार टॉप करो लेकिन यह मुझे नसीब होता भी कैसे क्योंकि बिहार में बिहार तक वही करता है जिसका पहुंच है जिसका पैरवी होता है जिसके पास पैसा होता है यहां तो टैलेंट सिर्फ दिखाने के लिए रह जाता है और तरह तरह की बात सहने के लिए रह जाता है और मैं भी ऐसा शाह के रह गया जब मैं स्कूल टॉप किया तो मेरे जो जितना साथ ही थे सब मुझसे जलने लग गए और तरह-तरह की बात करते थे लेकिन मैंने तुमसे प्यार किया सब को माना 2 महीना 3 महीना के बाद धीरे-धीरे सब फिर बातचीत करने लग गए मेरा एक ही सिद्धांत था चाहे कोई रूठे चाहे कोई खुशियां रहे सभी में एक समान सभा को समान नजर से देखता रहता था और बाद में सब वहीं आ कर के फिर मुझसे मिलते थे बातचीत करते थे मेरा एक ही सिद्धांत था सब से मिलकर रहना और सब से प्रेम करना किसी से ईर्ष्या द्वेष नहीं करना स्कूल में प्रथम श्रेणी आया और एक बिशनपुर की छात्रा थी जो द्वितीय श्रेणी पर आए और तृतीय श्रेणी पर मेरे ही साथ में रहता था वह आया लेकिन वह अपने बात को कभी भी पीछे या कम होने नहीं देना चाहते थे चाहे बात कोई कितना भी हकीकत जो ना हो उन्होंने गांव में जाकर कहा कि मैं स्कूल टॉप किया हूं गांव में हल्ला किया मैं स्कूल टॉप किया हूं लेकिन जब रियल बात सामने आया तो उन्होंने कहा कि मैं विद्यालय में तृतीय स्थान पर हूं फर्स्ट स्थान हूं प्रथम श्रेणी से पास किया हूं हार भी गए पश्चाताप नहीं होता था इसमें यह खास गुण था खून को देखकर हम बहुत खुश होते थे कम से कम एक ऐसा भी आदमी तो है जब मैं विद्यालय में आठ में पढ़ता था तो उस समय स्कूल में बाल संसद का भी आयोजन किया गया बाल संसद में मुख्य शिक्षक दयानंद थे और बहुत ही मिलनसार भव के थे और उसमें चुनाव कराया गया और चुनाव में मुझे पीएम चुना गया और सब को अनेक मंत्री बना गया और जब मैं चुना गया मुझे बहुत गर्व हुआ और मैंने सोचा कि एक दिन देश की सेवा करने का मौका मिले तो जरूर करूंगा और यह बात मेरे जहन में नाच रहा है और इतना ही नहीं शुरू से लेकर के जब तक मैं सोच रहा हूं मेरे देश में हमेशा राष्ट्रीय बाद देश हित की बात देश की समस्या अंतरराष्ट्रीय समस्या इसी और मेरा हमेशा ध्यान रहता है और इसी को दूर करने के लिए हमेशा सोचता रहता हूं किस तरह से मैं दूसरे को सहायता करो दूसरे के काम आए और इसी तरह मेरा जीवन यापन हो रहा है मेरा दिनचर्या सवेरे 3:00 बजे जगना ध्यान करना फिर शौच क्रिया से निर्मित होकर के संतमत का स्तुति विनती आरती करने के बाद फिर अपना पढ़ाई का काम फिर भोजन फिर पढ़ाई का काम फिर जो उचित कार्य हो वह पास फिर सावन में पैर हाथ धोकर के संतमत स्तुति विनती करती और जो कुछ जरूरी कार्य करने के बाद11 बजे सो जाना यही मेरा नित्य क्रिया रहा
शनिवार, 18 मई 2019
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अंतर अजब बिलास-महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज
श्री सद्गुरवें नमः आचार्य श्री रचित पुस्तक "पूर्ण सुख का रहस्य" से लिया गया है।एक बार अवश्य पढ़ें 👇👇👇👇👇👇👇👇 : प...
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