आदरणीय सत्संग प्रेमी सज्जनों आज संसार में चारो ओर अशांत ही अशांति क्यों हैं ।अगर इसपर गौर करें तो इसमें सदाचार का अभाव नजर आता है ।इसलिए प्रत्येक साधक बंधुओं के लिए यह प्रवचन बहुत ही शिक्षा प्रद और लाभ प्रद हैं ।इसे सबों को पढना चाहिए ।
सदाचार बिना सब बेकार
आध्यात्मिक उन्नति के लिए सदाचार का पालन बहुत आवश्यक है
आचार बिगड़ने से विचार बिगड़ते हैं
विचार बिगड़ने से बानी बिगड़ती है
बानी बिगड़ने से पुरुषार्थ वीर्य बिगड़ते हैं
सदाचार की मर्यादा का जितना पालन करेंगे
उतनी बुद्धि पवित्र होती जाएगी
सनातन धर्म श्रेष्ठ है
सदाचार नीव है और सद्विचार इमारत है
जिन का अचार विचार शुद्ध है उनके अंतर में
कली कभी प्रवेश नहीं कर सकते हैं
सदाचार से सिर्फ सदाचारी व्यक्ति का ही कल्याण नहीं होता है बल्कि उनके सदाचरण के प्रभाव से परिवार समाज राष्ट्र और विश्व का कल्याण होता है
सदाचारी बनाने के लिए कोई शर्त नहीं है कि
आप विद्वान बने तब सदाचारी हो सकते हैं
बलवान बने तब सदाचारी हो सकते हैं
धनवान बने तब सदाचारी बन सकते हैं
विद्वान हैं और सदाचारी भी हैं तो सोने में सुगंध जैसा है पर विद्वानों न भी हो लेकिन सदाचारी है तो वह आदरणीय पूजनीय सम्माननीय एवं अनुकरणीय होता है सदाचार पालन करने के कारण नीच जाति में जन्म लेने वाली समरी भिलनी से भामिनी कहलाई
सदाचार पालन करने के कारण नीच जाति में भी
रहने से कोई भी मनुष्य उच्च कहलाते हैं।
जाति पाती कोई मायने नहीं रखता है
सदाचार पालन करने के कारण विभीषण लंका
का राजा बना
सदाचार व्रत रखने के कारण ही हनुमान जी
की पूजा घर घर में हो रही है ।
सदाचार वर्ती रहने के कारण लक्ष्मण का नाम
आदर के साथ लिया जाता है ।
सदाचार पर आरूढ़ रहने के कारण ही
प्रहलाद की इज्जत बची
और उनकी जय जय कार हो रही है
दूसरी तरफ सदाचार के उल्लंघन के कारण
सोने के महल में सोने वाला सारे वेद वेदांत के ज्ञाता रावण की दुर्गति हो गई
इंद्र को जीतने वाले मेघनाद इंद्रजीत की फजीहत हो गई
भौतिकवादी सम्राट हिरण्यकशिपु विनाश होगया
कंस की दुर्गति हो गई
इतिहास गवाह है कि भौतिक संपदा ओं को
अध्यात्मिक संपदाओं के आगे झुकना पड़ा है।
स्वर्गीय महामहोपाध्याय दुर्गाचरण वेदांत तीर्थ
जी का कथन है :-
"सदाचार के बिना धर्म का रहना पर रहना असंभव है
पुनः उन्होंने कहा जिस प्रकार धान की रक्षा उसके छिलका के बिना असंभव है
चावल के बोने से धान का पौधा नहीं होता।।"
मनुष्य सदाचार से ही दीर्घायु मनोवांछित संतान तथा अक्षय धन प्राप्त करता है
और सदाचार व्यक्ति के अमंगल नष्ट करता है ।
आचार हिन मनुष्य को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते
भले ही उसने वेदों का छह अंग के साथ पाठ किया हो ।
मृत्यु के समय आचार हीन मनुष्य का साथ
वेद उसी प्रकार साथ छोड़ देता है जिस प्रकार
पंख निकलते ही पक्षी अपने घोसले को छोड़ देते हैं।
इस लोक में सील सदाचार ही मुख्य है
उसके ही आधार पर सब कुछ प्रतिष्ठित हैं
मनुष्य मन से जिस किसी वस्तु की इच्छा करता है
वह सील के द्वारा ही प्राप्त करता है
सील विहीन मनुष्य द्वारा की गई
साड़ी क्रियाएं विफल होती है।
इस प्रकार ज्ञानी मनुष्य को सिलवान होना चाहिए।
धर्म: सत्यं वृतं बलं चैवतथाप्यहम्।
शीलमूला महाप्रज्ञ सदा नास्त्यत्र संंशयः।।
श्री लक्ष्मी भक्त प्रहलाद से कहते हैं:-
हे महाप्रज्ञ धर्म का, सत्य का ,सदाचार का ,बल का ,तथा मेरा भी मूल शील में ही है
इसमें कोई संशय नहीं है ।
जिस कार्य में दूसरे का हित ना होता हो
तथा जिसे करने में स्वयं को लज्जा
अनुभव होता हो
ऐसा कार्य मनुष्य को किसी भी समय नहीं करना चाहिए ।।
संत कबीर साहब ने कहा है :-
शील क्षमा जब उपजे, अलख दृष्टि तब होय
बिना सील पहुंचे नहीं ,लाख कथे जो कोय।।
शीलवंत सबसे बड़ा ,सब रतनन की खानी
तीन लोक की संपदा ,रही शील में आनी ।।
जैसे पर्वत से नदियां निकलती है
उसी प्रकार सदाचार से
धर्म की उत्पत्ति होती है ।
सदाचार रूपी महान वृक्ष का मूल धर्म है
तना आयु है शाखा धन है पत्र कामना है पुष्प यस है
और फल पुण्य है।।
प्राचीन काल से ही महापुरुष सदाचार के बल पर
अपना और संसार का उपकार करते आए हैं ।।
शताम् अचारः सदाचारः।
श्रेष्ठ पुरुष जो बर्ताव या व्यवहार करते हैं
वही सदाचार कहलाता है।
अच्छा आचरण ।
सदाचार का सीधा अर्थ अच्छा आचरण है
सदाचारी महापुरुष में यह गुण होते हैं
"धर्म में तत्परता वाणी में मधुरता दान में उत्साह
मित्रों से निष्कपटता ,गुरुजनों के प्रति नम्रता,
चित में गंभीरता ,आचार में पवित्रता, गुण ग्रहण में रसिकता ,
शास्त्र में विद्वता ,रूप में सुंदरता ,और हरि भजन में लगन।
यह सब गुण सत पुरुषों में ही देखे जाते हैं।।"
(कल्याण अंक उपासना )
भगवान बुध के वचन :-
सदाचारी मनुष्य को सदाचरण के कारण
यह पांच प्रकार का लाभ मिलता है
(1).सदा चरण से उसकी संपत्ति की वृद्धि होती है
(2).लोक में उसकी कृति बढ़ती है
(3).हरेक सभा में उनका प्रभाव पड़ता है
(4).शांति से वह मृत्यु पाता है
(5).मरने के बाद सुगति को प्राप्त करता है ।
सील भ्रष्ट को पांच प्रकार से हानि होती है
(1) दूराचरण से उसकी संपत्ति का नाश होता है
(2).उसकी अब कीर्ति फैलती है ।
(3).किसी सभा में उसका प्रभाव नहीं पड़ता है।
(4). शांति से वह मृत्यु नहीं पाता है ।
(5).मरने के बाद वह दुर्गति को प्राप्त करता है।
आचार्य श्रीराम शर्मा ने बहुत ही अच्छा कहा है :-
धन बल जन बल बुद्धि बल अपार
सदाचार बिन सब बेकार ।
संत कबीर साहब ने भी कहा है:--
खोते हो क्यों ईमान साथ क्या ले जाओगे ।
निज कर्मों का श्वेत, श्याम रंग दे जाओगे।।
महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज ने कहा है :-
असन के लिए नाना प्रकार के फल, मेवा,
मिष्ठान ,दुग्ध ,घ्रित आदि से भरा भंडार हो।
वसन के लिए जाड़ा गर्मी वर्षा आदि रितुओ
के अनुकूल ऊनी सुती रेशमी मलमल मखमल
सभी भांती के वस्त्रों का आगाज हो।
सयन के लिए गगनचुंबी अट्टालिका
खिड़कियां हवादार हो।
मन बहलाव के लिए वातानुकूलित
अत्याधुनिक कार हो।
दरबार के सामने रंग-बिरंगे खिले अधखिले फूलों की कतार हजारों हजारों हो।
परिवार में परस्पर दंपति में प्यार हो
कामिनी के कंचन किंकिनी नूपुर एवं
पायल की झंकार हो ।
प्रांगण में नन्हे-मुन्ने की अहर्निश किलकार हो ।
सोने चांदी हीरे मोती जवाहरात आदि की तंकार
र्और झंकार हो ।
पद प्रतिष्ठा और पैसे के कारण संसार में
जय जय कार हो ।
लेकिन यदि पालन न सदाचार हो
एक बार पुज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के पास एक सज्जन आए और बोले महाराज जी बिना चमत्कार के नमस्कार नहीं
महर्षि जी बोले:-
आप चमत्कार किसे कहते हैं
वे सज्जन मोन रहे ।
तब महर्षि जी ने कहा
सदाचार पूर्वक अगर जीवन बीत जाए तो
इससे बड़ा चमत्कार दूसरा नहीं
रावन चमत्कारी था
लेकिन सदाचारी नहीं रहने के कारण दुर्गति हो गई ।।
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