नमस्कार मित्रों
आप लोगों को बहुत ही खुशी होगी कि
आज उपासना का भाग 2 खत्म हुआ
और अगले कड़ी में अगला विषय लेकर आऊंगा
इस कड़ी में आप उपासना पद्धति का भाग 2 पढ़ें
जिसे स्वामी योगानंद जी महाराज ने विस्तार से
और सरल सरल शब्दों में समझाएं हैं ।
आप सत्संगी बंधु शांत चित्त एकाग्र मन से
पूरी पूरी हर तथ्य को पढ़ें और अनुकरण करने का प्रयास करें
जीवन में उतारने का प्रयास करें तो आइए पढ़ें
👉भगवान श्री राम ने हनुमान जी को उपदेश दिया था
द्वे बीजे चित्तवृक्षस्य प्राणस्पंदनवासने।
एकस्मिंश्च तो क्षीण क्षेत्रों द्वे अपितु नश्यतः।।
(मुक्तिकोपनिषद)
भावार्थ:- चित रूप वृक्ष के दो बीज हैं प्राण स्पंदन और वासना इन दोनों में से एक के छीन हो जाने से दोनों ही नाश को प्राप्त होते हैं।
"अवासनत्वात्ससततं याद न मनुते मनः ।
अमनस्ता तदोदेति परमोपशमप्रदा।।"
भावार्थ:- मन जब वासना विहीन हो कर विषय को ग्रहण नहीं करता है तब मन का अस्तित्व नष्ट हो जाता है और परम शांति का उदय होता है।
एकतत्वदृढाभ्यासाद्यावन्न विजितं मनः।
👉 जब तक मन नहीं जीता गया हो
तब तक एक तत्व का दृढ़ ध्याना अभ्यास करना चाहिए।
संत कबीर साहब ने कहा है :-
सुमिरन सूरत लगाय कर मुख ते कछु न बोल।
बाहर का पट बंद कर अंतर का पट खोल ।।
सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज ने कहा है:-
दो नैन नजर जोड़ी के एक नोक बनाके।
अंतर में देख सुन सुन अंतर में खोजना।।
श्रीमद्भगवद्गीता में आया हैं:-
"समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः।
संप्रेक्ष्य नासिकाग्र स्व दिशश्चानवलोकयन।।"
धड़ ,गर्दन और सिर को एक सीध में अचल और स्थिर रखकर दिशाओं को नहीं देखते हुए
दृष्टि को ना सागर में जमावे।।
संत सूरदास ने कहा है:-
नैन नासिका अग्र है, तहां ब्रह्म को वास।
अविनाशी विनसे नहीं, हो सहज ज्योति प्रकाश।
धरणी दास जी ने कहा है:-
धरनी निर्मल नासिका, निरखो नैन के गुन कोर ।।सहजे चंदा उगीहें भवन होय उजियोर।।
सभी संतों का एक ही विचार है
, यह तीनों क्रियाएं मानस जप ,मानस ध्यान ,और दृष्टि योग की क्रिया एक साथ बतलाते हैं।
जब इन क्रियाओं में कुशल हो जाएंगे।
तब वह चौथी क्रिया आएगी
जिसको सुरत शब्द योग की क्रिया कहते हैं
जब सूरत शून्य में चली जाती है तब शब्द की बात होती है।
सुरत शब्द योग सार शब्द के अतिरिक्त दूसरे सब अनहद नाद ओं का ध्यान सूक्ष्म, कारण ,और महा कारण शगुन अरूप उपासना है ।
और सार शब्द का ध्यान निर्गुण निराकार उपासना है ।
सभी उपासनाओं कि यहां समाप्ति है।
उपासना ओं को संपूर्णता समाप्त किए बिना शब्दातीत पद अनाम तक अर्थात परम प्रभु सर्वेश्वर तक की पहुंच प्राप्त कर परम मोक्ष प्राप्त करना अर्थात अपना परम कल्याण बनाना पूर्ण असंभव है ।
"आंख, कान और मुंह बंद करके केंद्रीय शब्द को पकड़ने की क्रिया को सुरत शब्द योग कहते हैं ।"
सृष्टि के 5 मंडल है :-
स्थूल ,सूक्ष्म ,कारण ,महा कारण और कैवल्य है ।
इन पांचों मंडलों के पांच केंद्रीय शब्द है
इन पांचों केंद्रीय शब्दों के अतिरिक्त अंदर में विभिन्न प्रकार की असंख्य ध्वनियां हो रही है जिन्हें अनहद नाद कहते हैं ।
अनहद नाद के बीच निचले मंडल के केंद्रीय शब्द को करम करम से पकड़ते हुए अंततः कैवल्य मंडल के केंद्रीय शब्द सार शब्द को पकड़ना नादानुसंधान सुरत शब्द योग का लक्ष्य है ।
केंद्रीय शब्द को पकड़ने की युक्ति गुरु बतलाते हैं ।
दृष्टि योग पूरा होने पर और दृष्टि योग पूरा नहीं भी होने पर दोनों स्थितियों में नादानुसंधान किया जा सकता है
परंतु दोनों स्थितियों में नादानुसंधान की विधि अलग-अलग बताई जाती है ।
दृष्टि योग में पूर्ण साधक को सीधे केंद्रीय शब्द सुनाई पड़ती है
और जो दृष्टि योग साधन में पूर्णता प्राप्त किए बिना नादानुसंधान करते हैं
उनके लिए यह कोई आवश्यक नहीं है कि वे शीघ्र केंद्रीय शब्द को पकड़ ही ले ।
सार शब्द को नादानुसंधान के द्वारा पकड़ने पर साधक उसके आकर्षण से खींचकर परमात्मा पद को प्राप्त कर लेते हैं ।
तब वे दैहिक दैविक भौतिक इन तयतापो से मुक्त हो जाते हैं
तब वे आवागमन से छूट जाते हैं ।।
नादानुसंधान को फकीर लोग सुल्तान उलज कार कहते हैं ।
सदगुरु महाराज के वचन में आया है :-
सूक्ष्म सूरत सुष्मन होई इस शब्द में ,दृढ़ से धरो ठहराई।
सार शब्द परखो विधि यही, भव बंधन जर जाई।।
संत कबीर साहब ने कहा है:-
शब्द खोजी मन वश करें ,सहज योग है यही।
सत शब्द निज सार है ,यह तो झूठी देहि।।
गुरु नानक साहब ने कहा है :-
शब्द तत्तु बीर्ज संसार। शब्दू निरालमु अपर अपार ।।
शब्द बिचारि तरे बहु भेषा। नानक भेदु न शब्द अलेषा।।
सज्जनों इस पूरे आलेख को पढ़ने के बाद आप चाहे तो उपासना पद्धति भाग एक भी पढ़ सकते हैं और इसके अलावा मोक्ष दर्शन का अच्छा भाग अपनों के सामने पीछे में नजर आ रहा है जो गुरु महाराज की अनुभव वाणी है उसे भी आप पढ़ें
।।जय गुरु।।
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